पद्म विभूषण लेखिका और एक्टिविस्ट महाश्वेता देवी का कोलकाता में निधन
हिंदी और बांग्ला की मशहूर लेखिका और सोशल एक्टिविस्ट महाश्वेता देवी का 90 वर्ष की उम्र में कोलकाता के बेलव्यू अस्पताल में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और...
हिंदी और बांग्ला की मशहूर लेखिका और सोशल एक्टिविस्ट महाश्वेता देवी का 90 वर्ष की उम्र में कोलकाता के बेलव्यू अस्पताल में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उनके निधन पर शोक जाहिर किया है। महाश्वेता देवी काफी दिनों से बीमार थीं और उनका अस्पताल में इलाज चल रहा था।
Mahashweta Devi wonderfully illustrated the might of the pen. A voice of compassion, equality & justice, she leaves us deeply saddened. RIP.
— Narendra Modi (@narendramodi) July 28, 2016
उन्हें 22 मई को कोलकाता के बेल व्यू नर्सिंग होम में भर्ती कराया गया था। नर्सिंग होम के सीईओ पी टंडन ने बताया कि उनके शरीर के कई महत्वपूर्ण अंगों ने काम करना बंद कर दिया था और गुरुवार को दिल का दौरा पड़ने के बाद दोपहर 3 बजकर 16 मिनट पर उनका निधन हो गया। टंडन ने कहा, 'उनकी हालत अपराहन 3 बजे बिगड़ने लगी। हमने हरसंभव कोशिश की लेकिन उनकी तबीयत बिगड़ती चली गई और 3.16 बजे उनका निधन हो गया।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उनके निधन पर शोक जताते हुए कहा कि देश ने एक महान लेखक खो दिया। ममता ने टवीट किया, 'भारत ने एक महान लेखक खो दिया। बंगाल ने एक ममतामयी मां खो दी। मैंने अपनी एक मार्गदर्शक गंवाई। महाश्वेता दी को शांति मिले'।
महाश्वेता देवी का जन्म अविभाजित भारत में साल 1926 में वर्तमान ढाका, बांग्लादेश में हुआ था। उनके पिता मनीष घटक एक कवि और उपन्यासकार थे जबकि मशहूर बंगाली फिल्मकार ऋत्विक घटक उनके चाचा थे। महाश्वेता देवी एक जीवन भर सामाजिक कार्यकर्ता भी रहीं और देश के कई बड़े आन्दोलनों से जुड़ी रहीं। उन्होंने अपने जीवन में बतौर पत्रकार, लेखक, साहित्यकार और आंदोलनधर्मी के रूप में देश को अमूल्य योगदान दिया।
India has lost a great writer. Bengal has lost a glorious mother. I have lost a personal guide. Mahashweta Di rest in peace
— Mamata Banerjee (@MamataOfficial) July 28, 2016
महाश्वेता देवी ने शांतिनिकेतन से बीए (Hons) अंग्रेजी में किया और फिर कोलकाता विश्वविद्यालय में एमए अंग्रेजी में किया। मास्टर की डिग्री प्राप्त करने के बाद उन्होंने शिक्षक और पत्रकार के रूप में करियर शुरू किया। हालांकि साल 1984 में लेखन पर ध्यान केंद्रित करने के लिए उन्होंने नौकरी छोड़ दी।
पुरस्कार:
1979 साहित्य अकेडमी अवार्ड (बंगाली) – अरनिर अधिकार (उपन्यास)
1986: पद्मश्री
1996: ज्ञानपीठ पुरस्कार
1997: रमन मेगसेसे अवार्ड – पत्रकारिता, साहित्य और क्रिएटिव कम्युनिकेशन आर्ट्स के लिए
2006: पद्म विभूषण
2010:यशवंत राव चव्हान नेशनल अवार्ड
2011: बंगाबीभूषन– बंगाल सर्कार का सबसे बड़ा अवार्ड
प्रमुख रचनाएं और फ़िल्में
उनकी प्रमुख रचनाओं में अक्लांत कौरव, अग्निगर्भ, अमृत संचय, आदिवासी कथा, ईंट के ऊपर ईंट, उन्तीसवीं धारा का आरोपी, उम्रकैद, कृष्ण द्वादशी, ग्राम बांग्ला, घहराती घटाएँ, चोट्टि मुंडा और उसका तीर, जंगल के दावेदार, जकड़न, जली थी अग्निशिखा, झाँसी की रानी, टेरोडैक्टिल, दौलति, नटी, बनिया बहू, मर्डरर की माँ, मातृछवि, मास्टर साब, मीलू के लिए, रिपोर्टर, रिपोर्टर, श्री श्री गणेश महिमा, स्त्री पर्व, स्वाहा और हीरो-एक ब्लू प्रिंट आदि प्रमुख है। उनकी कहानियों और उपन्यासों पर कई फ़िल्में भी बनीं जिनमें गंगोर, हज़ार चौरासी की मां, संघर्ष, ए ग्रेव कीपर्स टेल और गुड़िया प्रमुख हैं।