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शहाबुद्दीन का नीतीश से है छत्तीस का आंकड़ा, लालू से खट्टे-मीठे रिश्ते

चर्चित तेजाब कांड में सुप्रीम कोर्ट से जमानत रद्द् होने के बाद सीवान के बाहुबली और पूर्व राजद सांसद शहाबुद्दीन को आज शाम बेउर जेल से दिल्ली के तिहाड़ जेल में शिफ्ट किया जाएगा। डॉन से नेता बने शह

लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 18 Feb 2017 11:29 AM

चर्चित तेजाब कांड में सुप्रीम कोर्ट से जमानत रद्द् होने के बाद सीवान के बाहुबली और पूर्व राजद सांसद शहाबुद्दीन को आज शाम बेउर जेल से दिल्ली के तिहाड़ जेल में शिफ्ट किया जाएगा। डॉन से नेता बने शहाबुद्दीन का बिहार के सीएम नीतीश कुमार से छत्तीस का आंकड़ा रहा है वहीं राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव से खट्टे-मीठे रिश्ते रहे हैं। 

तेजाब कांड में पटना हाईकोर्ट से जमानत मिलने के बाद 10 सितंबर को जब शहाबुद्दीन जेल से बाहर आया था तो उसने सीधे नीतीश पर निशाना साधा था। उसने नीतीश कुमार को परिस्थितियों का सीएम बताया था, जबकि लालू को अपना नेता कहा था।     

लालू ही मेरे नेता
11 साल बाद जब जेल से वह बाहर आया था मो उसने कहा था कि लालू यादव ही हमारे नेता हैं। उसने कभी भी बैकडोर पॉलीटिक्स नहीं की है। कोई उससे क्यों डरेगा? वह कोई डरावनी चीज तो है नहीं। ये सब कहना गलत है कि लोग उउसे डरे हुए हैं। उसे आतंक का पर्याय कहना गलत है। वह 13 साल बाद अपने घर जा रहा है। पिछले 10 साल से उसने किसी से मुलाकात नहीं की और न कोई पब्लिक मीटिंग की है।

नीतीश को बताया परिस्थिति का सीएम
जेल भेजने के पीछे नीतीश सरकार के हाथ के सवाल पर शहाबुद्दीन ने कहा था कि नीतीश कुमार परिस्थितिवश सीएम बने हैं। सभी जानते हैं कि उसे फंसाया गया है।

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शहाबुद्दीन का नीतीश से है छत्तीस का आंकड़ा, लालू से खट्टे-मीठे रिश्ते


 

नीतीश से 36 के आंकड़ें के पीछे ये है 5 वजहें

1- शहाबुद्दीन को लंबे समय तक लालू का राजनीतिक संरक्षण मिलता रहा और आज भी उनके साथ ही है। हालांकि 2003 में डीपी ओझा ने डीजीपी बनने के साथ ही शहाबुद्दीन पर शिंकजा कसना शुरू कर दिया। माले कार्यकर्ता मुन्ना चौधरी के अपहरण व हत्या के मामले में शहाबुद्दीन के खिलाफ वारंट जारी हुआ और उसे 2003 में अदालत में आत्मसर्पण करना पड़ा। 2005 में उसकी दोबारा गिरफ्तारी हुई तो उसने यह नहीं सोचा था कि जमानत मिलने में 11 साल लग जाएंगे। नीतीश का जब राजद से गठबंधन नहीं था उस दौर के शासन काल में नीतीश सरकार ने हमेशा उसकी जमानत याचिका का विरोध किया। नीतीश से नाराजगी की यह एक बड़ी वजह है। 

2- सिवान जेल के भीतर विशेष अदालत का गठन किया गया, जिसमें शहाबुद्दीन के खिलाफ कई मामलों पर सुनवाई हुई। सात केसों में उसे दोषी ठहराया गया, जिनमें से दो में आजीवन कारावास और दो में 10-10 साल की कैद की सजा हुई। 

3- 11 सालों के दौरान शहाबुद्दीन सीवान या फिर भागलपुर जेल में रहा, इस दौरान उसके सेल और वार्ड में बार-बार छापे पड़ते रहे। कई मोबाइल फोन जब्त किए गए। उससे मिलने  लिए आने वालों के लिए नियमों में ढील देने के कारण कई अफसर सस्पेंड भी किए गए। 

4- तमाम मुकदमों की वजह से शहाबुद्दीन को लिखित रूप में देना पड़ा था कि उनके पास केस लड़ने के लिए पैसे नहीं हैं। इससे उसका काफी मजाक बना था। 

5- जिस सीवान में शहाबुद्दीन की तूती बोलती थी, वहीं से इन 11 सालों में उसकी पत्नी लगातार दो संसदीय चुनाव हार गयी। इन हारों ने शहाबुद्दीन की अकड़ ढीली कर दी।

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अक्सर लालू से नाराज होते थे शहाबुद्दीन

1990 से लेकर 2005 तक राजद की सरकार में शहाबुद्दीन के रिश्ते लालू से बनते बिगड़ते रहे हैं। बावजूद शहाबुद्दीन ने कभी पार्टी नहीं छोड़ी। तत्कालीन डीजीपी डीपी ओझा ने शहाबुद्दीन पर कार्रवाई करनी शुरू कर दी तो सरकार और शहाबुद्दीन के बीच सीधी जंग छिड़ने की नौबत आ गई थी।

अंतत: डीपी ओझा ने शहाबुद्दीन पर मुन्ना चौधरी अपहरण कांड में गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिया। नतीजतन शहाबुद्दीन को इस केस में 13 अगस्त 2003 को मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के कोर्ट में सरेंडर करना पड़ा था। उसी की मार आज शहाबुद्दीन झेल रहे हैं। इसी क्रम में 2004 में लालू से शहाबुद्दीन नाराज हो गए।

शहाबुद्दीन ने मीडिया के सामने बयान दे दिया था कि उन्होंने राजद से नाता तोड़ लिया। नतीजतन लालू को सीवान सदर अस्पताल में भर्ती के दौरान शहाबुद्दीन से मिलना पड़ा था। इसके बाद शहाबुद्दीन ने पार्टी छोड़ने से मीडिया से इनकार कर दिया। फिर उसके बाद से दोनों में मधुर रिश्ते बन गए।

लालू ने उस मनमुटाव को दूर करने के लिए सीवान पहुंचने पर सिर्फ इतना ही कहा था कि सीवान का सांसद मेरा छोटा भाई है, मिलने आया था। सरकार बदलने के बाद भी लालू शहाबुद्दीन से मिलने जेल के अंदर गए थे। 16 मार्च 2001 को प्रतापपुर कांड के दौरान भी शहाबुद्दीन लालू से नाराज हो गए थे। उस दौरान इस घटना के बाद भाजपा शहाबुद्दीन को अपनी पार्टी में मिलाने के लिए आतुर थी।

तभी भाजपा के एक बड़े नेता ने बयान दिया था कि सांसद के घर पर हमला नहीं बल्कि लोकतंत्र पर हमला है। उसके बाद लालू सात दिन के बाद शहाबुद्दीन के गांव पहुंचे और सभी मामलों को सीआईडी कंट्रोल के हवाले कर दिया और तत्काल प्रभाव से सीवान के एसपी बच्चू सिंह मीणा व डीएम रसीद अहमद खां का तबादला कर दिया। तब जाकर मामला शांत हुआ था।

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शहाबुद्दीन का नीतीश से है छत्तीस का आंकड़ा, लालू से खट्टे-मीठे रिश्ते