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मार्च में बारिश, ठंड और बर्फबारी से मौसम वैज्ञानिक हैरान, ये है वजह

भारत से लेकर यूरोप-अमेरिका तक मार्च में मौसम का बदलाव लोगों को हैरान कर रहा है। यही कारण है कि सर्दी का अहसास कराने वाली बारिश, तेज हवाएं, ओलावृष्टि, बर्फबारी अभी भी जारी है।  मौसम...

मार्च में बारिश, ठंड और बर्फबारी से मौसम वैज्ञानिक हैरान, ये है वजह
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 15 Mar 2017 08:01 AM
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भारत से लेकर यूरोप-अमेरिका तक मार्च में मौसम का बदलाव लोगों को हैरान कर रहा है। यही कारण है कि सर्दी का अहसास कराने वाली बारिश, तेज हवाएं, ओलावृष्टि, बर्फबारी अभी भी जारी है। 

मौसम विज्ञानियों के अनुसार, सामान्य परिस्थितियों में फरवरी मध्य तक ये गतिविधियां थमने लगती हैं, लेकिन इस बार मार्च के तीसरे सप्ताह तक बारिश, तेज हवाएं और बर्फबारी देखने को मिल सकती है। इसी कारण दिल्ली समेत उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में अभी भी सर्दी का अहसास हो रहा है। होली के दिन भी सर्द हवाएं चलीं।

कायम रहेगा बदलाव

मौसम विभाग के महनिदेशक केजे रमेश के अनुसार अभी एक सप्ताह तक और ऐसा मौसम रहेगा। एक सप्ताह के भीतर एक मजूबत पश्चिमी विक्षोभ आ रहा है, जिससे एक बार थोड़ा तापमान बढ़ेगा, बारिश होगी और फिर पारे में गिरावट आएगी। उसके बाद स्थिति में क्या बदलाव आएंगे, उसका पूर्वानुमान अभी संभव नहीं है। लेकिन अलबत्ता बदलाव इस प्रकार के हैं कि कभी फरवरी में गर्मी हो जाती है तो कभी मार्च में भी नहीं होती। लेकिन यह मौसम का मिजाज है।

मौसम के मिजाज के विश्लेषण की जरूरत

विश्व मौसम संगठन के प्रतिनिधि डा. एल. एस. राठौर का कहना है कि जलवायु परिवर्तन से दुनिया भर का मौसम प्रभावित हुआ है। लेकिन मौसम विज्ञानियों को ऐसे अप्रत्याशित बदलावों का विश्लेषण करना चाहिए। साथ ही इसके पूर्वानुमान की क्षमता विकसित होनी चाहिए।

अमेरिका के पूर्वी तट पर तूफान

अमेरिका के पूर्वी तटीय क्षेत्र में बारिश, बर्फबारी और तूफानी स्थिति के कारण मंगलवार की सुबह स्कूल-कॉलेज बंद कर दिए गए। हजारों फ्लाइटें स्थगित करनी पड़ीं।करीब सवा लाख घरों में बिजली कट गई है। न्यूयॉर्क और पेनसिलवेनिया जैसे प्रांतों में चार से आठ इंच मोटी बर्फ की परत जम हो गई है।

ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में देरी से बर्फबारी

ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में बर्फबारी देर से शुरू हो रही है। कई बार तो यह जनवरी के आखिरी या फरवरी में ही शुरू होती है।बर्फ को ठोस रूप में जमने के लिए लगातार सर्द मौसम चाहिए। लेकिन देर से गिरी बर्फ अचानक गर्मी बढ़ने से पिघल जाती है। नतीजा यह है कि ग्लेशियर सिकुड़ने की सूचनाएं मिल रही हैं।

पश्चिमी विक्षोभ का असर

पश्चिमी देशों से आने वाली हवाएं जिन्हें पश्चिमी विक्षोभ कहा जाता है वह पहले अक्तूबर, नवंबर में आने शुरू होते थे। लेकिन इनका पैटर्न बदल रहा है। ये अक्टूबर नवंबर में या तो आते ही नहीं या बेहद कम आते हैं। इसलिए सर्दियों के पीक सीजन में बारिश नहीं होती है। फरवरी एवं मार्च में पहले पश्चिम विक्षोभ कम आते थे लेकिन अब बढ़ रहे हैं।

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