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जस्टिस काटजू सुप्रीम कोर्ट में पेश होने को तैयार

जस्टिस (सेवानिवृत्त) मार्कंडेय काटजू ने बुधवार को कहा कि वह सौम्या दुष्कर्म मामले के फैसले को लेकर की गई टिप्पणी पर सफाई देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में पेश होने को तैयार हैं। हालांकि, इसके साथ ही...

जस्टिस काटजू सुप्रीम कोर्ट में पेश होने को तैयार
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 19 Oct 2016 09:05 PM
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जस्टिस (सेवानिवृत्त) मार्कंडेय काटजू ने बुधवार को कहा कि वह सौम्या दुष्कर्म मामले के फैसले को लेकर की गई टिप्पणी पर सफाई देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में पेश होने को तैयार हैं। हालांकि, इसके साथ ही उन्होंने कहा कि वह चाहते हैं कि शीर्ष अदालत विचार करे कि क्या संविधान के अनुच्छेद 124(7) के तहत क्या यह उचित है। बता दें कि जस्टिस काटजू ने फेसबुक पर सौम्या मामले के फैसले पर टिप्पणी की थी। 

सुप्रीम कोर्ट ने 17 अक्तूबर को जस्टिस काटजू को उन बुनियादी खामियों को इंगित करने के लिए निजी तौर पर पेश होने को कहा जिनके बारे में उन्होंने सौम्या बलात्कार मामले में दावा किया है। इसपर जस्टिस काटजू ने लिखा, मुझे खुली अदालत में मामले में पेश होने और विचार-विमर्श करने पर खुशी होगी। लेकिन केवल इतना चाहता हूं कि न्यायाधीश इस बारे में विचार कर लें कि क्या शीर्ष अदालत का पूर्व न्यायाधीश होने के नाते संविधान के अनुच्छेद 124 (7)के तहत मेरा पेश होना निषिद्ध तो नहीं है। अगर न्यायाधीश कहते हैं कि यह अनुच्छेद मुझे नहीं रोकता, तो अदालत में मुझे अपने विचार रखने में खुशी होगी।

जस्टिस काटजू ने साथ ही दावा किया कि सुप्रीम कोर्ट से अब तक उन्हें औपचारिक समन नहीं आया है। केवल केरल सरकार के वकील ने अनौपचारिक रूप से सूचना दी है कि 11 नवंबर को समन किया गया है। उन्होंने, अपने ताजा पोस्ट में कहा कि वह अपना विस्तृत जवाब तैयार कर रहे हैं। इसकी प्रति फेसबुक पर भी अपलोड की जाएगी। 

विवाद की जड़ 
केरल के त्रिशूर की एक अदालत ने 1 फरवरी 2011 को 23 वर्षीय सौम्या से दुष्कर्म के मामले में गोविंदाचामी नामक आरोपी को मौत की सजा सुनाई। हाईकोर्ट ने भी इसे बरकरार रखा। लेकिन शीर्ष अदालत ने इसे उम्रकैद में तब्दील कर दिया। जस्टिस काटजू ने इस फैसले की आलोचना करते हुए पुनर्विचार करने की बात कही थी। 

अनुच्छेद 124 का पेंच 
संविधान के अनुच्छेद 124 सुप्रीम कोर्ट की स्थापना और गठन से संबंधित है। इसका खंड सात कहता है, सुप्रीम कोर्ट के जज पर नियुक्त रहा कोई भी व्यक्ति भारत के क्षेत्र में किसी अदालत या किसी प्राधिकरण के समक्ष दलील नहीं देगा या कार्रवाई नहीं करेगा।

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