स्कॉर्पियन Leak से इंडियन नेवी को बड़ा झटका, चीन-पाक के हैकर्स पर शक
जानिए लीक से होगा कितना नुकसान इंडियन नेवी को एक भारी झटका लगा है। नेवी का ड्रीम प्रोजेक्ट मेड इन इंडिया 'स्कॉर्पियन सबमरीन' का संवेदनशील डाटा इसे नौसेना में शामिल होने से पहले
जानिए लीक से होगा कितना नुकसान
इंडियन नेवी को एक भारी झटका लगा है। नेवी का ड्रीम प्रोजेक्ट मेड इन इंडिया 'स्कॉर्पियन सबमरीन' का संवेदनशील डाटा इसे नौसेना में शामिल होने से पहले ही लीक हो गया है। आपको बता दें कि भारत फ्रांस की कंपनी DCNS के साथ मिलकर ऐसी 6 सबमरीन बना रहा है। पहली सबमरीन INS Kalvari बनकर तैयार है और उसका 1मई 2016 से ही समुद्र में ट्रायल चल रहा है। बता दें कि ये सौदा भारत को करीब 3.5 बिलियन डॉलर में पड़ा था यानी एक सबमरीन की कीमत करीब 33, 526 करोड़ रुपए (500 मिलियन डॉलर) से भी ज्यादा है।
First step is to identify if its related to us, and anyway its not all 100% leak: Manohar Parrikar on submarine leak pic.twitter.com/6FG8M09HZv
— ANI (@ANI_news) August 24, 2016
कब शुरू हुआ निर्माण
पहली स्कॉर्पियन सबमरीन को केंद्रीय रक्षा मंत्री ने कुछ ही महीने पहले ट्रायल के लिए लॉन्च किया था और इसे जल्द ही नौसेना में शामिल किया जाना था। बता दें कि स्कॉर्पियन सबमरीन' का निर्माण यूपीए सरकार के कार्यकाल में शुरू हुआ था। मझगांव डॉक लिमिटेड की देखरेख में इसे बनाया जा रहा था। साल 2005 में ये सौदा हुआ ये सौदा इंडियन नेवी के लिए काफी अहम् माना जाता है।
Its bad,must find out how leak happened & the extent: Rear Admiral(Retd) Raja Menon on scorpene submarine leak pic.twitter.com/VDaPsPJIpj
— ANI (@ANI_news) August 24, 2016
प्रोजेक्ट 75 का क्या होगा?
बता दें कि इंडियन नेवी ने अपनी पुरानी सबमरीन जैसे कि सिंधुघोष (Kilo) और शिशुमार (U209) को रिटायर कर नई सबमरीन की इच्छा करीब 10 साल पहले से जाहिर की हुई थी। इस प्रोजेक्ट को प्रोजेक्ट-75 नाम दिया गया था। स्कॉर्पियन ने एक अन्य U214 सबमरीन को हराकर ये कॉन्ट्रैक्ट हासिल किया था। स्कॉर्पियन में भारत को Exocet anti-ship missiles और 2 सबमरीन पर Air-independent propulsion (AIP) की सुविधाएं ज्यादा मिल रहीं थीं। ये सौदा इसी शर्त पर हुआ था कि DRDO इन्हें अपने हिसाब से उन्नत कर सके साथ ही P75I सबमरीन पर भी AIP सिस्टम चालू किया जाए। पहली सबमरीन का निर्माण 23 मई 2009 को शुरू हुआ था न और प्रोजेक्ट पहले ही लक्ष्य से चार साल पीछे चल रहा था।
It appears that the source of leak is from overseas and not in India: Navy statement on Scorpene submarine project leak
— ANI (@ANI_news) August 24, 2016
प्रधानमंत्री मोदी ने भी किया था रिव्यू
साल 2014 में सत्ता में आने के बाद पीएम नरेंद्र मोदी ने भी इस प्रोजेक्ट का रिव्यू किया था और इसकी गति बढ़ाने के आदेश जारी किये थे। पहली सबमरीन 1 मई से समुद्र में ट्रायल पर है और INS Khanderi भी लॉन्च के लिए तैयार बताई जा रही है। स्कॉर्पियन कालवारी की लंबाई 216 फीट है। इसकी चौड़ाई 20 फीट है। 6 स्कॉर्पियन सबमरींस बनाने के लिए दोनों पक्षों में 3.6 बिलियन (करीब 22741 करोड़ रुपए) में करार हुआ था। 75 सबमरींस प्रोग्राम के तहत DCNS के लाइसेंस में मझगांव डॉकयॉर्ड लिमिटेड ऐसी और पांच जहाज बना रहा है।
नौसेना को हुआ है बड़ा नुक्सान
बता दें कि नेवी ने इन सबमरीन के लिए करीब 2000 करोड़ रुपए खर्च कर WASS से 98 तारपीडो भी खरीदे थे। लेकिन बाद में अगस्त वेस्टलैंड घोटाले के चलते ये खरीदारी भी होल्ड पर चली गई। स्कॉर्पियन प्रोजेक्ट से नौसेना को काफी उम्मीदें थीं और कहा जा रहा था कि इन पनडुब्बियों के नौसेना में शामिल होने से भारतीय सेना समुद्र में 50 साल आगे हो जाएगी। बता दें कि ऑस्ट्रेलियन मीडिया के मुताबिक सबमरीन से जुड़ा करीब 22,400 पेज का अहम् डाटा लीक हो गया है। इस डाटा में सबमरीन की युद्ध क्षमता और बाकी टेक्नीकल डीटेल भी शामिल हैं। इस डाटा में सबमरीन के अंडरवाटर सेंसर, कॉम्बेट मैनेजमेंट सिस्टम, तारपीडो लॉन्च सिस्टम और कम्युनिकेशन/नेविगेशन सिस्टम की पूरी जानकारी है।
इसमें उन आवत्तियों का भी जिक्र है, जिन पर ये खुफिया जानकारी जुटाती हैं। इसके अलावा इस डाटा में यह भी दर्ज है कि ये पनडुब्बियां गति के विभिन्न स्तरों पर कितना शोर करती हैं और किस गहराई तक गोता लगा सकती हैं और इनकी रेंज और मजबूती कितनी है। ये सभी संवेदनशील और बेहद गोपनीय जानकारी हैं।
इसमें कहा गया कि ये आंकड़े पनडुब्बी के चालक दल को यह बताते हैं कि नौका पर वे किस स्थान पर जाकर दुश्मन की नजर से बचते हुए सुरक्षित तरीके से बात कर सकते हैं आंकड़े चुंबकीय, विद्युत चुंबकीय और इन्फ्रारेड डाटा का भी खुलासा करते हैं । इसके साथ ही ये पनडुब्बी के तारपीडो प्रक्षेपण तंत्र और युद्धक तंत्र की विशिष्ट जानकारी भी देते हैं।इस डाटा में पेरिस्कोप का इस्तेमाल करने के लिए जरूरी गति और स्थितियों का भी विवरण है। इसके अलावा पनडुब्बी के पानी की सतह पर आने के बाद प्रोपेलर से होने वाले शोर और तरंगों के स्तर का जिक्र भी इसमें है।
चीन-पाकिस्तान पर भी है शक
बता दें कि ऐसी खबर है कि चीन और पाकिस्तान को इंडियन नेवी की इस बढ़त से खासी परेशानी थी और ये डाटा लीक होने के पीछे इनका भी हाथ हो सकता है। दक्षिणी चीन सागर में भारत की उपस्थिति से चीन पहले ही परेशान था और स्कॉर्पियन सबमरीन आने के बाद उसकी मुश्किलें और बढ़ जाती। उधर इस सौदे के बाद इंडियन नेवी को पाकिस्तानी नौसेना पर करीब 50 सालों की बढ़त मिलना तय माना जा रहा था।
भारतीय नौसेना ने कहा, उपलब्ध जानकारी की जांच रक्षा मंत्रालय के मुख्यालय पर की जा रही है और संबंधित विशेषज्ञों द्वारा विश्लेषण किया जा रहा है। उन्होंने कहा, ऐसा लगता है कि लीक का स्रोत विदेश में है न कि भारत में। ऑस्ट्रेलियाई मीडिया की खबर के अनुसार, इस लीक के बाद ऑस्ट्रेलिया में उसकी अपनी नौसेना के भावी बेड़े से जुड़ी बेहद गोपनीय जानकारी की सुरक्षा को लेकर डर पैदा हो गया है। क्योंकि फ्रांसीसी कंपनी ने ऑस्ट्रेलिया की पनडुब्बियों के बेड़े को डिजाइन करने की 50 अरब ऑस्ट्रेलियाई डॉलर की निविदा में जीत हासिल की है।
स्कॉर्पियन Leak से इंडियन नेवी को बड़ा झटका, चीन-पाक के हैकर्स पर शक
जांच के आदेश दिए गए
ऑस्ट्रेलियन मीडिया की इस रिपोर्ट के बाद बुधवार को रक्षामंत्री ने नेवी चीफ एडमिरल सुनील लांबा को जांच के आदेश दे दिए हैं। बता दें कि फ्रांस की इस कंपनी के पास भारत के अलावा मलेशिया, चिली और ऑस्ट्रेलिया के लिए नई जनरेशन की सबमरीन्स बनाने का कॉन्ट्रैक्ट है। उधर फ्रांस ने इस लीक के लिए भारत को जिम्मेदार ठहराया है जबकि भारत ने इससे साफ़ इनकार करते हुए फ्रांस से लीक होने की बात कही है। बता दें कि ऑस्ट्रेलियन मीडिया की ख़बरों में हैकिंग के जरिये डाटा लीक किये जाने की बात भी सामने सा रही है।
अखबार द्वारा हासिल किए गए आंकड़ों में, पनडुब्बी के पानी के अंदर वाले संसूचकों के बारे में जानकारी देने वाले 4457 पन्ने, पानी के उपर लगे संसूचकों पर 4209 पन्ने, तारपीडो दागने के तंत्र से जुड़े 493 पन्ने, पनडुब्बी की संचार व्यवस्था पर 6841 पन्ने और इसके दिशासूचक तंत्रों से जुड़े 2138 पन्ने हैं।
पर्रिकर ने यहां संवाददाताओं को बताया, मैंने नौसेना प्रमुख से कहा है कि वह पूरे मामले का अध्ययन करें और पता लगाएं कि क्या लीक हुआ है उसमें हमारे बारे में क्या जानकारी है और कितनी जानकारी है मुक्षे पता चला है कि यह रात लगभग 12 बजे हुआ। मुक्षे लगता है कि यह हैकिंग है। हम इस सबका पता लगा लेंगे। रक्षा मंत्री ने कहा कि वह इस लीक को 100 फीसदी नहीं मानते क्योंकि अंतिम एकीकरण का एक बड़ा हिस्सा भारत के पास है। उन्होंने कहा कि आने वाले कुछ दिनों में तस्वीर साफ हो जाएगी। नौसेना ने एक बयान में कहा, स्कॉर्पीन पनडुब्बियों से जुड़े दस्तावेजों की संदिग्ध लीक की जानकारी विदेशी मीडिया हाउस द्वारा दी गई है।
नौसेना ने कहा, उपलब्ध जानकारी की जांच रक्षा मंत्रालय के मुख्यालय पर की जा रही है और संबंधित विशेषज्ञों द्वारा विश्लेषण किया जा रहा है। उन्होंने कहा, ऐसा लगता है कि लीक का स्रोत विदेश में है न कि भारत में। ऑस्ट्रेलियाई मीडिया की खबर के अनुसार, इस लीक के बाद ऑस्ट्रेलिया में उसकी अपनी नौसेना के भावी बेड़े से जुड़ी बेहद गोपनीय जानकारी की सुरक्षा को लेकर डर पैदा हो गया है। क्योंकि फ्रांसीसी कंपनी ने ऑस्ट्रेलिया की पनडुब्बियों के बेड़े को डिजाइन करने की 50 अरब ऑस्ट्रेलियाई डॉलर की निविदा में जीत हासिल की है।
स्कॉर्पियन Leak से इंडियन नेवी को बड़ा झटका, चीन-पाक के हैकर्स पर शक
क्या कहा ऑस्ट्रेलिया ने
ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री मैलकॉम टर्नबुल ने कहा कि यह बात ध्यान देने योग्य है कि डीसीएनएस जो पनडुब्बी भारत के लिए बना रही थी, वह उस मॉडल से पूरी तरह अलग है, जो वह ऑस्ट्रेलिया के लिए बनाएगी। जो जानकारी लीक की गई, वह कई साल पुरानी है। उनके हवाले से कहा गया, फिर भी, कोई भी गोपनीय जानकारी लीक होना चिंता का विषय है। द ऑस्ट्रेलियन की खबर के अनुसार, डीसीएनएस ने कल ऑस्ट्रेलिया को एकबार फिर यह आश्वासन देने की कोशिश की कि भारतीय स्कॉर्पियन पनडुब्बी के बारे में जो जानकारी लीक हुई है, ऐसा ऑस्ट्रेलिया के लिए
प्रस्तावित पनडुब्बी के साथ नहीं होगा। कंपनी ने यह भी कहा कि यह लीक संभवत: फ्रांस नहीं बल्कि भारत की ओर से हुई होगी।
कंपनी ने कहा, ऑस्ट्रेलियाई व्यवस्था में तकनीकी जानकारी का अनियंत्रित होना संभव नहीं है। उसने कहा, जानकारी तक अनाधिकत पहुंच को रोकने के लिए डीसीएनएस के बीच कई और स्वतंत्र नियंत्रण व्यवस्थाएं हैं। हर डेटा का लेन-देन कूट भाषा में है और यह रिकॉर्ड रहता है। भारत के मामले में, डीसीएनएस डिजाइन का निर्माण एक स्थानीय कंपनी ने किया है। डीसीएनएस प्रदाता है लेकिन तकनीकी जानकारी का नियंत्रक नहीं है। द ऑस्ट्रेलियन को बताया गया कि भारत के लिए स्कॉर्पियन का डेटा वर्ष 2011 में फ्रांस में लिखा गया था। ऐसा संदेह है कि फ्रांस में उसी साल इसे फ्रांसीसी नौसेना के एक पूर्व अधिकारी ने निकाल लिया था। यह अधिकारी उस समय डीसीएनएस का सबकॉन्ट्रैक्टर था।
उसने कहा, ऐसा माना जा रहा है कि उसके बाद डेटा को दक्षिणपूर्वी एशिया की कंपनी में ले जाया गया। शायद एक क्षेत्रीय नौसेना की व्यावसायिक शाखा की मदद के लिए ऐसा किया गया। इसके बाद इसे एक तीसरे पक्ष द्वारा क्षेत्र की किसी दूसरी कंपनी को दे दिया गया। इसे बाद में ऑस्ट्रेलिया की एक कंपनी को मेल के जरिए डाटा डिस्क पर भेज दिया गया। कंपनी ने कहा, यह बात स्पष्ट नहीं है कि एशिया में यह डेटा किस हद तक साक्षा किया गया है और क्या इसे विदेशी खुफिया एजेंसियों ने हासिल किया है हालांकि कुछ दस्तावेजों पर 2013 की तारीख है। द ऑस्ट्रेलियन द्वारा जुटाए गए डेटा में डीसीएनएस की कुछ अलग गोपनीय फाइलें भी हैं, जो चिली को फ्रांसीसी पोत बेचने की योजना और रूस को मिस्ट्रल श्रेणी के पोत बेचने के बारे में हैं। डीसीएनएस की इन परियोजनाओं का भारत से कोई संबंध नहीं है।
स्कॉर्पियन Leak से इंडियन नेवी को बड़ा झटका, चीन-पाक के हैकर्स पर शक