बॉम्बे HC का फैसला: हाजी अली दरगाह तक जाएंगी महिलाएं, पाबंदी हटाई
बॉम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए मुंबई में हाजी अली दरगाह के भीतरी भाग में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध को हटा दिया है और कहा है कि यह प्रतिबंध किसी भी व्यक्ति के मूलभूत...
बॉम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए मुंबई में हाजी अली दरगाह के भीतरी भाग में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध को हटा दिया है और कहा है कि यह प्रतिबंध किसी भी व्यक्ति के मूलभूत अधिकार का विरोधाभासी है।
हाजी अली दरगाह न्यास इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देना चाहता है और न्यास की ओर से दायर याचिका के कारण अदालत ने अपने इस आदेश पर छह हफ्ते के लिए रोक लगा दी है।
न्यायमूर्ति वी एम कानाडे और न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे की खंडपीठ ने कहा, हाजी अली दरगाह में महिलाओं के प्रवेश पर लगाया गया प्रतिबंध भारत के संविधान की धारा 14, 15, 19 और 25 का विरोधाभासी है।
#FLASH Haji Ali Dargah women entry case: Women allowed in inner sanctum
— ANI (@ANI_news) August 26, 2016
इन धाराओं के तहत किसी भी व्यक्ति को कानून के तहत समानता हासिल है और अपने मनचाहे किसी भी धर्म का पालन करने का मूलभूत अधिकार है। ये धाराएं धर्म, लिंग और अन्य आधारों पर किसी भी तरह के भेदभाव पर पाबंदी लगाती हैं और किसी भी धर्म को स्वतंत्र रूप से अपनाने, उसका पालन करने और उसका प्रचार करने की पूरी स्वतंत्रता देती हैं।
दरगाह के मजार वाले हिस्से में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी को जाकिया सोमन और नूरजहां नियाज ने चुनौती दी थी। खंडपीठ ने उनकी याचिका को भी स्वीकार कर लिया है।
हाईकोर्ट ने कहा, राज्य सरकार और हाजी अली दरगाह न्यास को दरगाह में प्रवेश करने वाली महिलाओं की सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम सुनिश्चित करना होगा।
इस साल जून में कोर्ट ने याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रखा था।
इस याचिका में कहा गया है कि कुरान में लैंगिग समानता अंतर्निहित है और पाबंदी का फैसला हदीस का उल्लंघन करता है जिसके तहत महिलाओं के मजारों तक जाने पर कोई रोक नहीं है।
महाराष्ट्र सरकार ने पहले अदालत में कहा था कि हाजी अली दरगाह के मजार वाले हिस्से में महिलाओं के प्रवेश पर रोक तभी होनी चाहिए जब कि कुरान में ऐसा उल्लेख किया गया हो।
दरगाह न्यास ने अपने फैसले का यह कहते हुए बचाव किया था कि कुरान में यह उल्लेख है कि किसी भी महिला को पुरूष संत की दरगाह के करीब जाने की अनुमति देना गंभीर गुनाह है।
न्याय की ओर से पेश अधिवक्ता शोएब मेमन ने पहले कहा था, सऊदी अरब में मस्जिदों में महिलाओं को प्रवेश करने की इजाजत नहीं है। इबादत करने के लिए उनके लिए अलग स्थान की व्यवस्था है। हमने (न्यास) उनके प्रवेश पर रोक नहीं लगाई है। यह नियम केवल उनकी सुरक्षा के लिए है। न्यास केवल दरगाह का प्रबंध ही नहीं देखता है बल्कि धर्म से संबंधित मामलों को भी देखता है।
भूमाता बिग्रेड की नेता तृप्ति देसाई ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि कोर्ट ने महिलाओं को समानता का अधिकार दिया है।