सरकार इच्छामृत्यु पर अपना रुख बताए: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने इच्छामृत्यु देने के आग्रह को कानूनी दर्जा देने के मामले में केंद्र सरकार से रुख स्पष्ट करने को कहा है। साथ ही कहा कि वह सरकार के जवाब का इंतजार करेगा। जस्टिस एआर दवे की अध्यक्षता...
सुप्रीम कोर्ट ने इच्छामृत्यु देने के आग्रह को कानूनी दर्जा देने के मामले में केंद्र सरकार से रुख स्पष्ट करने को कहा है। साथ ही कहा कि वह सरकार के जवाब का इंतजार करेगा।
जस्टिस एआर दवे की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ इस मामले की शुक्रवार को सुनवाई की। इस दौरान अतिरिक्त साॠलिसीटर जनरल पीएस पटवालिया ने सक्षम प्राधिकार से निर्देश प्राप्त करने के लिए कुछ समय देने का आग्रह किया। उन्होंने पीठ को इस विषय पर विधि आयोग की 241वीं रिपोर्ट से अवगत कराया, जिसमें कहा गया है कि कुछ सुरक्षा उपायों के साथ इसकी अनुमति दी जानी चाहिए और इस संबंध में एक विधेयक प्रस्तावित है।
पटवालिया ने कहा, उनकी दलीलें भारतीय चिकित्सा परिषद कानून, 2002 के नियम 6.7 पर भी अधारित होंगी। इसमें कहा गया है कि इच्छामृत्यु की अनुमति देना अनैतिक आचरण माना जाएगा। हालांकि विशिष्ट मामले में मस्तिष्क मृत्यु के बाद भी हृदय और फेफड़े को चालू रखने वाले सहायक उपकरणों को हटाने के सवाल पर सिर्फ उपचार करने वाले चिकित्सक नहीं, बल्कि चिकित्सकों का दल निर्णय करेगा।
संविधान पीठ ने कहा कि वह इस रिपोर्ट पर सरकार के निर्णय की प्रतीक्षा करेगी। इसके साथ ही न्यायालय ने इस मामले की सुनवाई 1 फरवरी के लिए स्थगित कर दी। पीठ गैर सरकारी संगठन 'काॠमन काॠज' द्वारा 2005 में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
इस याचिका में कहा गया है कि जब चिकित्सीय विशेषज्ञ की यह राय हो कि असाध्य बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति अब मरणासन्न अवस्था में पहुंच गया है, तो उसे जीवन रक्षक प्रणाली पर रखे जाने से इंकार करने का अधिकार दिया जाना चाहिए, क्योंकि ऐसा नहीं करने से उसकी वेदना ही बढ़ेगी।
शीर्ष अदालत ने इस याचिका का केंद्र द्वारा विरोध किए जाने के बावजूद दो साल पहले राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को नोटिस जारी किए थे। सरकार का तर्क था कि यह एक तरह से आत्महत्या है जिसकी अनुमति नहीं दी जा सकती।