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लाल आतंक: जानिए दोरनापाल-जगरगुंडा को क्यों कहा जाता है खूनी सड़क

  दक्षिण बस्तर के सुकमा जिले का जगरगुंडा गांव नक्सलियों का गढ़ है। जगरगुंडा में रहने वाले लोग काफी सालों से नक्सलियों के डर से यहां से पलायन कर रहे हैं। जगरगुंडा बस्तर सुकमा का एक ऐसा इल

लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 25 Apr 2017 03:45 PM

दक्षिण बस्तर के सुकमा जिले का जगरगुंडा गांव नक्सलियों का गढ़ है। जगरगुंडा में रहने वाले लोग काफी सालों से नक्सलियों के डर से यहां से पलायन कर रहे हैं। जगरगुंडा बस्तर सुकमा का एक ऐसा इलाका है जहां लोगों की संख्या कम है और जो लोग यहां रहते हैं वे जनबहुल इलाके से कटे रहते हैं। तीन जिले सुकमा, दंतेवाड़ा और बीजापुर बराबर 80 किलोमीटर के अंतराल में है। सुकमा जिले के दोरनापाल-जगरगुंडा के बीच 58 किलोमीटर की सड़क बन रही है।

ये सड़क बहुत ही संवेदनशील है। यहां के लिए सड़क दोरनापाल से होकर राष्ट्रीय राजमार्ग 30 से जुड़ती है। यह सड़क घने जंगलों से होकर गुजरती है। पोलमपल्ली, कांकेरलंका, तेमेलवाड़ा, चिंतागुफा, चिंतलनार, गोरगुंडा, पुसवाड़ा,
गोंदपल्ली, कोंडासावली, कुंदेड़, अरलमपल्ली, जगरगुंडा, सिलगेर, बुरकापाल,ताड़मेटला, नरसापुर मतिमिलवाड़ा, मोरपल्ली, सुरपनगुड़ा, पेंटा, गुमोड़ी, मुकरम जैसे गांव इसी सड़क पर के बीच आते हैं। दरअसल, जगरगुंडा को नक्सिलयों का गढ़ कहा जाता है। यहां नक्सली तांड के चलते लोग गांव से पलायन करते हैं।

पिछले कुछ सालों में हजारों की तादाद में लोग भाग चुके हैं। यहां प्रत्येक 5 से 10 किलोमीटर की दूरी पर सेना तैनात है, लेकिन सेना की जान को हमेशा खतरा बना रहता है। लगभग 25 हजार लोग इस गांव में रहते हैं। 

हर साल ये सड़क लेती है जवानों की जान

2012 से 2016 के बीच इसी मार्ग पर नक्सली हमले से 10 जवान शहीद, 24 घायल, और पांच नागरिकों की मौत हुई है। इसी वजह से इसे खूनी मार्ग कहा जाता है। इसी मार्ग में ताड़मेटला कांड हुआ था, जिसमें 76 जवानों की मौत हुई थी। ये जवान गश्त कर वापस चिंतलनार कैंप लौट रहे थे। इस सड़क का महत्व इसलिए भी है कि चिंतागुफा, चिंतलनार, जगरगुंडा किसी समय पर ईको पर्यटन का प्रमुख केंद्र हुआ करते थे। ब्रिटिश काल में यह क्षेत्र आखेट का प्रमुख स्थल रहा है। क्षेत्र के वनोत्पाद- शहद, गोंद, तिखुर, चिरोंजी के लिए जाना जाता था। 

नक्सलियों के आतंक से रूका है विकास का काम

अगर यहां सड़क निर्माण हो गया तो लोगों को स्कूल, स्वास्थ्य और अस्पताल जैसी जन कल्याणकारी सुविधाएं मिलने लगेगी। लेकिन ये सड़क बनाने का काम इतना भी आसान नहीं है। इस सड़क के लिए 2012-13 में पांच बार टेंडर हुआ, लेकिन नक्सल दहशत के चलते कोई आगे नहीं आया।

हालांकि सुरक्षा के भरोसे के बाद इस सड़क मार्ग का पुनर्निर्माण व चौड़ीकरण का कार्य 2014-15 से फिर से शुरू हुआ है। इस सड़क मार्ग के निर्माण से  भविष्य में सुकमा को अन्य राज्यों ओड़िशा और तेलंगाना से जोड़ा जा सकेगा। साथ ही, छत्तीसगढ़ की 12 ग्राम पंचायतों के 25 हजार ग्रामीणों को तथा लगभग चार हजार बच्चों पढ़ाई का मौका मिलेगा।

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लाल आतंक: जानिए दोरनापाल-जगरगुंडा को क्यों कहा जाता है खूनी सड़क

 

खूनी सड़क

किसी क्षेत्र का विकास उसके बुनियादी ढांचे के विकास से ही होता है। इसी के तहत सुकमा जिले के क्षेत्रों में सड़क निर्माण जैसे कार्य को पंख दिए जा रहे हैं। लेकिन ये इतना आसान नहीं है। इस सड़क की नींव जवानों के खून से रखी गई है। इसलिए इसे ‘खूनी सड़क’ कहा जाता है, क्योंकि इस सड़क के आसपास के क्षेत्र की रक्षा करते कई जवानों ने अपने प्राणों की आहूति दी है।

वर्तमान में प्रशासन के प्रयास से सुरक्षाबलों की निग़रानी में दोरनापाल से अर्थवर्क करते हुए सड़क निर्माण की प्रक्रिया प्रगतिरत हैं। 2006 से पूर्व इस क्षेत्र में परिवहन के सभी साधन उपलब्ध रहे, किन्तु सलवा जुडुम के बाद यह क्षेत्र विकास की धारा से विमुख हो गया। प्रशासन द्वारा इस सड़क के निर्माण के माध्यम से विकास की गति में पिछड़े इस क्षेत्र को विकास की धारा से जोड़कर इस क्षेत्र के जनता का सम्पर्क अन्यत्र स्थलों के जनता से हो।

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