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जस्टिस काटजू को सुप्रीम कोर्ट से खरी-खरी सुनने को मिली

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस मार्कंडेय काटजू को सुप्रीम कोर्ट से ही भारी धक्का लगा है। शीर्ष कोर्ट ने संसद की निंदा प्रस्ताव के खिलाफ दायर उनकी रिट याचिका पर उन्हें खरी खरी सुनाई और याचिका...

जस्टिस काटजू को सुप्रीम कोर्ट से खरी-खरी सुनने को मिली
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 03 Aug 2015 06:18 PM
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सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस मार्कंडेय काटजू को सुप्रीम कोर्ट से ही भारी धक्का लगा है। शीर्ष कोर्ट ने संसद की निंदा प्रस्ताव के खिलाफ दायर उनकी रिट याचिका पर उन्हें खरी खरी सुनाई और याचिका लगभग खारिज ही कर दी। कोर्ट ने उनसे पूछा कि उन्हें संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत याचिका दायर करने की सलाह किसी ने दी है या उन्होंने स्वयं यह याचिका दायर की है।

इस सवाल पर जस्टिस काटजू के वकील पूर्व सालिसिटर जनरल तथा सुप्रीम कोर्ट में जज बनने से रह गए गोपाल सुब्रहमण्यम थोड़ा असहज हो गए। उन्होंने कहा कि यह गोपनीय है, वह उसे कोर्ट से साझा नहीं कर सकते। हालांकि कोर्ट ने कहा कि प्रथमदृष्टया हम याचिका से सहमत नहीं है लेकिन आग्रह पर सुनवाई दो हफ्ते टाल रहे हैं और अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी व वरिष्ठ न्यायविद फाली एस नारीमन से आग्रह करते हैं कि वह इस मुद्दे पर कोर्ट की सहायता करें।

जस्टिस टीएस ठाकुर, गोपाल गोड़ा और आर भानुमति की पीठ ने उनसे पूछा कि जब वे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को ब्रिटिश एजेंट और सुभाष चंद्र बोस को जापानी एजेंट बता रहे हैं तथा अपने इस विचार को सार्वजनिक कर रहे हैं तो उन्हें उससे असहमत होने वाले लोगों के विचारों के लिए भी तैयार रहना चाहिए। संसद ने भी यही किया है और उसने असहमत होकर उनकी निंदा की है। इसमें उनका अपमान कैसे हो गया। क्या इस अपमान पर आईपीसी की धारा 499 लगाई जा सकती है। इसमें उनके क्या अधिकार प्रभावित हो गए। उन्हें बोलने और लिखने की आजादी से रोक तो नहीं गया है। कल कोई अदालत में आ जाए और कहे कि गांधी के खिलाफ जस्टिस काटजू की टिप्पणियां मानहानि है तो क्या हम इसे खारिज कर देंगे। जाहिर है यह मानहानि माना जाएगा। 

जस्टिस ठाकुर याचिका खारिज ही करने जा रहे थे कि गोपाल सुब्रहमण्यन ने कहा कि वह उन्हें सुना जाना चाहिए क्योंकि संसद कोई व्यक्ति नहीं है एक संस्थान है। जब वह किसी की निंदा करता है तो उसे इससे पूर्व उस व्यक्ति पक्ष भी सुनना चाहिए। उन्होंने कहा कि ऐसा न करके संसद ने उनके कानून के समक्ष बराबरी तथा जीवन व व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकारों (अनुच्छेद 14 और 21) का उल्लंघन किया है। उन्होंने कहा कि संसद के प्रस्ताव को न्यायिक समीक्षा से छूट हासिल नहीं है।

कोर्ट ने कहा कि ऐसा तब किया जाता जब प्रस्ताव का उनके दीवानी अधिकारों पर कोई असर होता। प्रस्ताव एक विचार है जिसे संसद ने उनके खिलाफ व्यक्त किया है। आप लोगों को असहमत होने से नहीं रोक सकते। काई आपसे असहमत होगा तो क्या वह आपको पहले नोटिस देगा। चाहे व्यक्ति या संस्थान हमें इसमें कोई अंतर नजर नहीं आता। इस प्रस्ताव से आप नैतिक रूप से भ्रष्ट नहीं हो गए।

जस्टिस काटजू ने कहा था कि गांधी ब्रिटिश एजेंट थे क्योंकि उन्होंने धर्म का मुद्दा बार बार उठाया जिससे अंग्रेजों को बांटो और राज को का मौका मिला। नेताजी सुभाष चंद्र बोस जापानी एजेंट थे।

जस्टिस टीएस ठाकुर ने कहा कि यदि कोई व्यक्ति राष्ट्रपिता के खिलाफ की गई टिप्पणियों को लेकर कोर्ट आए तो क्या यह मानहानि का मामला नहीं बनेगा। हमारी राय में यह निश्चित रूप से बनेगा।

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