Hindi Newsअफजल गुरू को राजनीतिक कारणों से दी गई थी फांसी: उमर
अफजल गुरू को राजनीतिक कारणों से दी गई थी फांसी: उमर
जम्मू—कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने आज कहा कि संप्रग सरकार द्वारा राजनीतिक कारणों से संसद हमले के दोषी अफजल गुरू को फांसी दी गई और उन्हें (उमर को) फांसी से कुछ ही घंटे पहले सूचित...
एजेंसीSun, 24 May 2015 02:59 PM
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जम्मू—कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने आज कहा कि संप्रग सरकार द्वारा राजनीतिक कारणों से संसद हमले के दोषी अफजल गुरू को फांसी दी गई और उन्हें (उमर को) फांसी से कुछ ही घंटे पहले सूचित किया गया।
उमर अपनी बहन के साथ दिल्ली के एक रेस्तरां में रात का भोजन कर रहे थे और उसी दौरान तत्कालीन गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे का फोन आया कि उन्होंने गुरू के कागजात पर हस्ताक्षर कर दिए हैं और अगली सुबह उसे फांसी दी जाएगी तथा ऐसे में वह जम्मू—कश्मीर में कानून—व्यवस्था बनाए रखने का इंतजाम करें। उस समय उमर मुख्यमंत्री थे।
उमर ने कहा, मैंने उस वक्त गृह मंत्री से पूछा कि क्या वह पूरी तरह निश्चित हैं कि अब कुछ नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि नहीं क्योंकि वह कागजात पर हस्ताक्षर कर चुके हैं और वारंट जारी किया जा चुका है तथा मुझे इसके बाद के प्रभावों से निपटने के लिए कहा।
उन्होंने यह संकेत करते हुए कि राजीव गांधी और बेअंत सिंह के हत्यारों के मामलों को अलग अलग ढंग से निपटाया गया, कहा, सच यह है, चाहें हम इसे पसंद करें या नहीं, कि उसे राजनीतिक कारणों से फांसी दी गई।
उन्होंने कहा, मैंने कहा था कि मैं तब तक इस पर कोई टिप्पणी नहीं करूंगा जब तक यह नहीं देख लेता कि सरकार ने दूसरे मामलों को कैसे निपटाया। मैंने दूसरे मामलों को देखा। देखिए कि उन्होंने बेअंत सिंह और राजीव गांधी के हत्यारों के मामलों को कैसे निपटाया और किस तरह इस व्यक्ति को बिना बारी के फांसी दे दी।
जम्मू—कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा, स्पष्ट रूप से आप इसके अलावा दूसरा निष्कर्ष क्या निकाल सकते हैं कि वे भाजपा के हाथों अपनी हार से बचना चाहते थे और इसलिए दो लोगों को फांसी दिया जाना सबसे आसान था। पहला अजमल कसाब को फांसी दी क्योंकि वह विदेशी नागरिक था और दूसरा अफजल गुरू था। चाहे मैं इसे पसंद करूं या नहीं लेकिन उन्होंने ऐसा किया।
गुरू को नौ फरवरी, 2013 को फांसी दी गई। मौत की सजा पाए कैदियों की सूची में उसका नंबर 28वां था। फांसी को लेकर विवाद खड़ा हो गया क्योंकि परिवार को टेलीविजन पर खबर के जरिए फांसी की जानकारी मिली।
उमर ने कहा कि गुरू का मुद्दा उनपर लटकने वाली खतरे की तलवार की तरह था और वह समय समय पर गुरू को फांसी दिए जाने के प्रभावों के बारे में केंद्र को सूचित कर रहे थे।
उन्होंने कहा, अफजल गुरू को फांसी दिया जाना कुछ ऐसा था जिसको लेकर मेरे पूरे कार्यकाल के दौरान चर्चा हुई। क्योंकि हम जानते थे कि यह हमारे उपर लटकने वाली खतरे की तलवार की तरह था। ऐसे में समय समय पर इसके प्रभावों के बारे में पी चिदंबरम और शिंदे को सूचित किया जाता रहा।
उमर ने कहा कि प्रभावों के बारे में हमेशा केंद्र को सूचित किया गया लेकिन चिंताए उस वक्त कई गुना बढ़ गईं जब मुंबई हमले के एकमात्र जीवित बचे हमलावर आतंकवादी कसाब को फांसी दी गई।
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा, आम भावना यह थी कि जब उन्होंने यह कर दिया है तो फिर अगला नंबर गुरू का होने जा रहा है। मैंने इस बारे में रिकार्ड पर अपने आपत्ति दर्ज कराईं कि इसके क्या प्रभाव हो सकते हैं। मुझे बताया गया कि फैसला नहीं हुआ है लेकिन इस पर विचार किया जा रहा है।
उमर अपनी बहन के साथ दिल्ली के एक रेस्तरां में रात का भोजन कर रहे थे और उसी दौरान तत्कालीन गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे का फोन आया कि उन्होंने गुरू के कागजात पर हस्ताक्षर कर दिए हैं और अगली सुबह उसे फांसी दी जाएगी तथा ऐसे में वह जम्मू—कश्मीर में कानून—व्यवस्था बनाए रखने का इंतजाम करें। उस समय उमर मुख्यमंत्री थे।
उमर ने कहा, मैंने उस वक्त गृह मंत्री से पूछा कि क्या वह पूरी तरह निश्चित हैं कि अब कुछ नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि नहीं क्योंकि वह कागजात पर हस्ताक्षर कर चुके हैं और वारंट जारी किया जा चुका है तथा मुझे इसके बाद के प्रभावों से निपटने के लिए कहा।
उन्होंने यह संकेत करते हुए कि राजीव गांधी और बेअंत सिंह के हत्यारों के मामलों को अलग अलग ढंग से निपटाया गया, कहा, सच यह है, चाहें हम इसे पसंद करें या नहीं, कि उसे राजनीतिक कारणों से फांसी दी गई।
उन्होंने कहा, मैंने कहा था कि मैं तब तक इस पर कोई टिप्पणी नहीं करूंगा जब तक यह नहीं देख लेता कि सरकार ने दूसरे मामलों को कैसे निपटाया। मैंने दूसरे मामलों को देखा। देखिए कि उन्होंने बेअंत सिंह और राजीव गांधी के हत्यारों के मामलों को कैसे निपटाया और किस तरह इस व्यक्ति को बिना बारी के फांसी दे दी।
जम्मू—कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा, स्पष्ट रूप से आप इसके अलावा दूसरा निष्कर्ष क्या निकाल सकते हैं कि वे भाजपा के हाथों अपनी हार से बचना चाहते थे और इसलिए दो लोगों को फांसी दिया जाना सबसे आसान था। पहला अजमल कसाब को फांसी दी क्योंकि वह विदेशी नागरिक था और दूसरा अफजल गुरू था। चाहे मैं इसे पसंद करूं या नहीं लेकिन उन्होंने ऐसा किया।
गुरू को नौ फरवरी, 2013 को फांसी दी गई। मौत की सजा पाए कैदियों की सूची में उसका नंबर 28वां था। फांसी को लेकर विवाद खड़ा हो गया क्योंकि परिवार को टेलीविजन पर खबर के जरिए फांसी की जानकारी मिली।
उमर ने कहा कि गुरू का मुद्दा उनपर लटकने वाली खतरे की तलवार की तरह था और वह समय समय पर गुरू को फांसी दिए जाने के प्रभावों के बारे में केंद्र को सूचित कर रहे थे।
उन्होंने कहा, अफजल गुरू को फांसी दिया जाना कुछ ऐसा था जिसको लेकर मेरे पूरे कार्यकाल के दौरान चर्चा हुई। क्योंकि हम जानते थे कि यह हमारे उपर लटकने वाली खतरे की तलवार की तरह था। ऐसे में समय समय पर इसके प्रभावों के बारे में पी चिदंबरम और शिंदे को सूचित किया जाता रहा।
उमर ने कहा कि प्रभावों के बारे में हमेशा केंद्र को सूचित किया गया लेकिन चिंताए उस वक्त कई गुना बढ़ गईं जब मुंबई हमले के एकमात्र जीवित बचे हमलावर आतंकवादी कसाब को फांसी दी गई।
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा, आम भावना यह थी कि जब उन्होंने यह कर दिया है तो फिर अगला नंबर गुरू का होने जा रहा है। मैंने इस बारे में रिकार्ड पर अपने आपत्ति दर्ज कराईं कि इसके क्या प्रभाव हो सकते हैं। मुझे बताया गया कि फैसला नहीं हुआ है लेकिन इस पर विचार किया जा रहा है।