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बिहार का डॉन शहाबुद्दीन फिर गया जेल, जानिए कैसे बना था 'बाहुबली'

फिर जेल गया शहाबुद्दीन बिहार के बाहुबली नेता मोहम्मद शहाबुद्दीन को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने शहाबुद्दीन की ज़मानत रद्द कर दी है जिसके बाद अब उसे एक बार फिर जेल भेज दिय

लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 30 Sep 2016 07:00 PM

फिर जेल गया शहाबुद्दीन

बिहार के बाहुबली नेता मोहम्मद शहाबुद्दीन को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने शहाबुद्दीन की ज़मानत रद्द कर दी है जिसके बाद अब उसे एक बार फिर जेल भेज दिया गया। शहाबुद्दीन को पटना हाईकोर्ट से राजीव रोशन की हत्या मामले में जमानत दी गई थी। जस्टिस पिनाकी घोष और जस्टिस अमिताव रॉय की बेंच ने निचली अदालत को सख्ती से इस केस के ट्रायल को जल्दी पूरा करने के निर्देश दिए हैं। गौरतलब हो कि सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान पिछले दिनों शहाबुद्दीन की ओर से कहा गया कि उन्हें बार-बार हिस्ट्रीशीटर कहा जाता है लेकिन इसके कोई साक्ष्य नहीं हैं तो उन्हें भी जमकर फटकार पड़ी।

कैसे एक थप्पड़ ने शाहबुद्दीन को बनाया डॉन
एक समय राजद के पूर्व सांसद मो। शहाबुद्दीन अपने समर्थकों व विरोधियों के बीच रॉबिनहुड के रूप में जाने जाते थे। तब सीवान में कानून का राज नहीं बल्कि शहाबुद्दीन का शासन चलता था। आपको बताते चलें कि 15 मार्च 2001 में ही पुलिस जब राजद के एक नेता के खिलाफ एक वारंट पर गिरफ्तारी करने दूसरे दिन दारोगा राय कॉलेज में पहुंची तो शहाबुद्दीन ने गिरफ्तार करने आए अधिकारी संजीव कुमार को ही थप्पड़ मार दिया था। उनके सहयोगियों ने पुलिस वालों की जमकर पिटाई कर दी थी। इसके बाद बिहार पुलिस शहाबुद्दीन पर कार्रवाई की कोशिश में उनके प्रतापपुर वाले घर पर छापेमारी की, लेकिन अंजाम बेहद ही दुखद रहा था।

शहाबुद्दीन समर्थक व पुलिस के बीच करीब तीन घंटे तक दोनों तरफ से हुई गोलीबारी में आठ ग्रामीण मारे गए थे। इसके बाद पुलिस को खाली हाथ बैरंग लौटना पड़ा था। तभी से शहाबुद्दीन की गिनती सीवान की नहीं बल्कि प्रदेश व देश स्तर पर भी एक राजनेता से इतर बाहुबली के रूप में होने लगी। हालांकि इस संगीन वारदात के बाद भी शहाबुद्दीन के खिलाफ कोई मजबूत केस नहीं बनाया गया था। यह अलग बात है कि तत्कालीन डीएम सीके अनिल व एसपी रत्न संजय ने 2005 के अप्रैल में शहाबुद्दीन के खिलाफ कार्रवाई करते हुए उन्हें कानून के शिकंजे में कस दिया था।

2003 में डीपी ओझा ने कसा था शिकंजा शहाबुद्दीन पर
मो. शहाबुद्दीन को लंबे समय तक राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद का राजनीतिक संरक्षण मिलता रहा और आज भी उनके साथ ही है। हालांकि 2003 में डीपी ओझा ने डीजीपी बनने के साथ ही शहाबुद्दीन पर शिंकजा कसना शुरू कर दिया। उन्होंने शहाबुद्दीन के खिलाफ सबूत इकट्टे कर कई पुराने मामले फिर से खोल दिए।

इन मामलों की जांच का जिम्मा सीआईडी को सौंपा गया था, उनकी भी समीक्षा कराई गई। माले कार्यकर्ता मुन्ना चौधरी के अपहरण व हत्या के मामले में शहाबुद्दीन के खिलाफ वारंट जारी हुआ और उन्हें अदालत में आत्मसर्पण करना पड़ा। शहाबुद्दीन के आत्मसमर्पण करते ही सूबे की सियासत गरमा गई और मामला आगे बढ़ता देख राज्य सरकार ने डीपी ओझा को ही डीजीपी पद से हटा दिया गया।

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चार बार सांसद और दो बार रहे विधायक

एक बाहुबली से राजनेता बनने का मोहम्मद शहाबुद्दीन का सफर बड़ा ही दिलचस्प रहा है। बिहार में कभी अपराध का बड़ा नाम रहे शहाबुद्दीन का जन्म 10 मई1967 को सीवान जिले के हुसैनगंज प्रखंड के प्रतापपुर गांव में हुआ था। सीवान के चार बार सांसद और दो बार विधायक रहे शहाबुद्दीन ने कॉलेज के दौरान अपराध की दुनिया का दामन थाम लिया था।

1980 में डीएवी कॉलेज से राजनीति में कदम रखने वाले इस नेता ने माकपा व भाकपा (मार्क्सवादी - लेनिनवादी) के खिलाफ जमकर लोहा लिया और इलाके में ताकतवर राजनेता के तौर अपनी मौजूदगी दर्ज कराई। भाकपा माले के साथ उनका तीखा टकराव रहा। सीवान में दो ही राजनीतिक धुरिया थीं तबएक शहाबुद्दीन व दूसरा भाकपा माले। 1993 से 2001 के बीच सीवान में भाकपा माले के 18 समर्थक व कार्यकर्ताओं को अपनी जान गंवानी पड़ी। जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष चंद्रशेखर व वरिष्ठ नेता श्यामनारायण भी इसमें शामिल थे। इनकी हत्या सीवान शहर में 31 मार्च 1997 को कर दी गई थी। इस मामले की जांच सीबीआई ने की थी।

1986 में दर्ज हुआ पहला केस
सीवान के बाहुबली नेता शहाबुद्दीन पर 1986 में हुसैनगंज थाने में पहला आपराधिक केस दर्ज हुआ। फिर तो इसके बाद उनके खिलाफ लगातार मामले दर्ज होते चले गए। इस वजह से देश की क्रिमिनल हिस्ट्रीशीटरों की लिस्ट में वे शामिल हो गए। 1990 में निर्दलीय विधायक बनने के बाद शहाबुद्दीन लालू प्रसाद के नजदीक चले गए। फिर विधायक और सांसद भी बने।

एसपी पर भी चलाई थी गोली
1996 में लोकसभा चुनाव के दिन ही एक बूथ पर गड़बड़ी फैलाने के आरोप में उन्हें गिरफ्तार करने निकले तत्कालीन एसपी एसके सिंघल पर गोलियां चलाई गई। आरोप था कि खुद शहाबुद्दीन ने गोलियां दागी और सिंघल को जान बचाकर भागना पड़ा। इस कांड में शहाबुद्दीन को दस वर्ष की सजा हो चुकी है।

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आखिर क्यों खौफ का दूसरा नाम था शहाबुद्दीन 

एक समय था जब सीवान और आसपास के इलाके में शहाबुद्दीन खौफ का दूसरा नाम हुआ करता था। लोग उनके नाम से थर्राते थे। इलाके लोग उन्हें साहब नाम से बुलाते थे। एक दशक तक शहाब का सीवान पर ऐसा राज रहा है कि कोई उनकी इजाजत के बगैर जुलूस भी नहीं निकाल सकता था। 

दरिंदगी की हद: तेजाब से नहलाया
जिस ताजा मामले में पूर्व सांसद शहाबुद्दीन को दोषी करार दिया गया है वह 2004 का है। शहाबुद्दीन के अड्डे प्रतापपुरा में दो भाइयों गिरीश और सतीश को तेजाब से इस कदर नहलाया कि कुछ ही मिनटों में उनका शरीर झुलसने लगा। वे चिल्ला कर रहम की गुहार करते रहे और वहांं मौजूद लोग देखते रहे। थोड़ी देर में दोनों भाइयों की मौत हो गई। 

जरायम की दुनिया में 
1967 में 10 मई को जन्मे शहाबुद्दीन कच्ची उम्र में ही अपराध की दुनिया में कदम रख चुके थे। 
18 साल की उम्र में उनके ऊपर पहला मुकदमा 1985 में दर्ज हुआ। 
56 मुकदमे दर्ज हैं शहाबुद्दीन पर आज की तारीख में।
07 मामलों में सजा पा चुके हैं राजद के पूर्व सांसद शाहबुद्दीन।
35 मामलों में शहाबुद्दीन को अब तक मिल चुकी है जमानत।
18 भाकपा माले की कार्यकर्ताओं की हत्या हुई 1993 से 2001 के बीच, जिसका आरोप शहाबुद्दीन गुट पर है।
2001 में एक परीक्षा केंद्र पर डीएसपी को खुलेआम थप्पड़ मारा। 

छात्र नेता चंद्रशेखर हत्याकांड में आया था नाम 
1997 के मार्च में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष रहे चंद्रशेखर को सीवान में तब गोलियों से छलनी कर दिया गया था, जब वह सीवान में नुक्कड़ सभा को संबोधित कर रहे थे। शहर के जेपी चौक पर हुए हमले में शहाबुद्दीन के बेहद करीबी रहे रुस्तम मियां को सजा हो चुकी है।

2005 गिरफ्तारी 
24 अप्रैल, 2005 को शहाबुद्दीन के पैतृक गांव प्रतापपुर में एसपी रत्न संजय की अगुवाई में की गई छापेमारी में भारी संख्या में आग्नेयास्त्र, अवैध हथियार, चोरी की गाडि़यां, विदेशी मुद्रा आदि की बरामदगी हुई। इस प्रकरण में 6 मामले दर्ज हुए। 6 नवंबर 2005 को गिरफ्तार होने के बाद से शहाबुद्दीन जेल में हैं। 

इन मामलों में सजा हुई 
- 2007 में छोटेलाल अपहरण कांड में उम्र कैद की सजा हुई
- 2008 में विदेशी पिस्तौल रखने के मामले में 10 साल की सजा 
- 1996 में एसपी एसके सिंघल पर गोली चलाई थी, 10 साल की सजा
- 1998 में माले कार्यालय पर गोली चलाई थी, दो साल की सजा हुई
- 2011 में सरकारी मुलाजिम राजनारायण के अपहरण मामले में 3 साल की सजा 
- 03 साल की सजा हुई है चोरी की बाइक बरामद में 
- 01 साल की सजा हुई जीरादेई मंे थानेदार को धमकाने के मामले में

इन मामलों में बरी
- डीएवी कॉलेज में बमबारी 
- दारोगा संदेश बैठा के साथ मारपीट के मामले में

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शहाबुद्दीन के इर्द-गिर्द ही रही सीवान की राजनीति

एक बाहुबली से राजनेता बने मो. शहाबुद्दीन के राजनीतिक जीवन में प्रवेश से लेकर अबतक सीवान की राजनीति उनके ही इर्द-गिर्द आकार लेती रही है। फिर चाहे वह पंचायत चुनाव हो या विधानसभा व लोकसभा का चुनाव, शहाबुद्दीन ही सबके निशाने पर रहे।

देश व प्रदेश में फिर चाहे कोई और मुद्दा क्यों न हो लेकिन सीवान में बस एक ही मुद्दा छाया रहा शहाबुद्दीन और उनका अपराध। यहां तक कि हाल के दिनों में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की जिले में हुई चुनावी सभाओं में भी पूर्व सांसद शहाबुद्दीन निशाने पर रहे। किसी ने यह कहा कि जेल से टिकट का बंटवारा होता है तो किसी ने यह कहकर शहाबुद्दीन पर तंज कसा कि सीवान में राजद की जीत पर पाकिस्तान में पटाखे फूटेंगे।

यहां तक कि विरोधी भी यह कहकर राजनीति करते रहे कि शहाबुद्दीन का है जंगलराज। लोगों का कहना है कि सीवान की राजनीति में अगर शहाबुद्दीन न हों तो फिर चुनाव का मुद्दा चाहे जो भी हो उसमें उबाल नहीं आयेगा।

1980 में शहर के डीएवी कॉलेज में पढ़ाई करने के दौरान राजनीति के क्षेत्र में कदम रखने वाले शहाबुद्दीन तब भाकपा व माले से जमकर भिड़ते रहे। उन दिनों भाकपा के साथ उनका राजनीतिक टकराव यहां तक बढ़ गया कि सीवान की राजनीति में दो धु्र्रव बन गये। एक शहाबुद्दीन तो दूसरा भाकपा माले। बहरहाल 1990 में लालू प्रसाद के राजद में शामिल होकर राजनीतिक सफर शुरू करने वाले शहाबुद्दीन ने दो बार विधायक व चार बार संसद में सीवान संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया।

मुसलमानों के साथ-साथ अन्य वोटरों पर है पकड़
मुसलमान वोटरों पर प्रभाव की वजह से शहाबुद्दीन की तूती बोलती है। मुसलमान वोटरों के अलावा अन्य वोटरों में शहाबुद्दीन की पकड़ है। जीरादेई विधानसभा सीट से 1990 और 1995 में जीत हासिल कर शहाबुद्दीन विधायक बने। 2001 में 16 मार्च वह तारीख है जब शहाबुद्दीन ने राजद नेता मनोज कुमार की गिरफ्तारी के दौरान पुलिस अफसर को थप्पड़ मारा था। इस घटना ने बिहार पुलिस को झकझोर कर रख दिया था। 

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अक्सर लालू से नाराज होते थे शहाबुद्दीन

1990 से लेकर 2005 तक राजद की सरकार में शहाबुद्दीन के रिश्ते लालू से बनते बिगड़ते रहे हैं। बावजूद शहाबुद्दीन ने कभी पार्टी नहीं छोड़ी। तत्कालीन डीजीपी डीपी ओझा ने शहाबुद्दीन पर कार्रवाई करनी शुरू कर दी तो सरकार और शहाबुद्दीन के बीच सीधी जंग छिड़ने की नौबत आ गई थी।

अंतत: डीपी ओझा ने शहाबुद्दीन पर मुन्ना चौधरी अपहरण कांड में गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिया। नतीजतन शहाबुद्दीन को इस केस में 13 अगस्त 2003 को मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के कोर्ट में सरेंडर करना पड़ा था। उसी की मार आज शहाबुद्दीन झेल रहे हैं। इसी क्रम में 2004 में लालू से शहाबुद्दीन नाराज हो गए।

शहाबुद्दीन ने मीडिया के सामने बयान दे दिया था कि उन्होंने राजद से नाता तोड़ लिया। नतीजतन लालू को सीवान सदर अस्पताल में भर्ती के दौरान शहाबुद्दीन से मिलना पड़ा था। इसके बाद शहाबुद्दीन ने पार्टी छोड़ने से मीडिया से इनकार कर दिया। फिर उसके बाद से दोनों में मधुर रिश्ते बन गए।

लालू ने उस मनमुटाव को दूर करने के लिए सीवान पहुंचने पर सिर्फ इतना ही कहा था कि सीवान का सांसद मेरा छोटा भाई है, मिलने आया था। सरकार बदलने के बाद भी लालू शहाबुद्दीन से मिलने जेल के अंदर गए थे। 16 मार्च 2001 को प्रतापपुर कांड के दौरान भी शहाबुद्दीन लालू से नाराज हो गए थे। उस दौरान इस घटना के बाद भाजपा शहाबुद्दीन को अपनी पार्टी में मिलाने के लिए आतुर थी।

तभी भाजपा के एक बड़े नेता ने बयान दिया था कि सांसद के घर पर हमला नहीं बल्कि लोकतंत्र पर हमला है। उसके बाद लालू सात दिन के बाद शहाबुद्दीन के गांव पहुंचे और सभी मामलों को सीआईडी कंट्रोल के हवाले कर दिया और तत्काल प्रभाव से सीवान के एसपी बच्चू सिंह मीणा व डीएम रसीद अहमद खां का तबादला कर दिया। तब जाकर मामला शांत हुआ था।

हालांकि जेल से बाहर आ लालू को को ही बताया था नेता
जमानत पर बाहर आने के बाद शहाबुद्दीन ने नीतीश कुमार को परिस्थितियों का मुख्यमंत्री बताया था। उन्होंने कहा था कि 27 साल से लालू हमारे नेता हैं और रहेंगे, मैं उन्हीं को अपना नेता मानता हूं। जेल से बाहर निकलने के बाद मीडिया से बात करते हुए शहाबुद्दीन ने यह बातें कही थी। ग्यारह साल से जेल में था लेकिन जेल में रहकर भी लोगों के सुख-दुख का ख्याल रखता था। आज लोगों की भीड़ और सहानुभूति मेरे साथ हैं।

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