फोटो गैलरी

Hindi Newsप्रियांशु का लैपटॉप

प्रियांशु का लैपटॉप

शाम ढल चुकी थी। रात होने को आई थी। समय बढ़ने के साथ-साथ प्रियांशु की बेचैनी भी बढ़ रही थी। बार-बार उसकी नजर घड़ी पर चली जाती। लेकिन घड़ी की सुइयां थीं कि सात बजे से आगे ही नहीं बढ़ रही थीं। वह कई बार मां...

प्रियांशु का लैपटॉप
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 20 Jul 2016 01:25 PM
ऐप पर पढ़ें

शाम ढल चुकी थी। रात होने को आई थी। समय बढ़ने के साथ-साथ प्रियांशु की बेचैनी भी बढ़ रही थी। बार-बार उसकी नजर घड़ी पर चली जाती। लेकिन घड़ी की सुइयां थीं कि सात बजे से आगे ही नहीं बढ़ रही थीं। वह कई बार मां से भी पूछ चुका था कि मां कहीं घड़ी धीरे तो नहीं चल रही है। उसकी बात सुनकर मां सिर्फ मुस्करा दीं। थोड़ी देर बाद वह फिर मां के पास आया और पूछने लगा, ‘आज पापा को ऑफिस से आने में देर क्यों हो रही है?’ मां ने उसे जवाब देते हुए कहा, ‘न तो घड़ी धीरे चल रही है और न ही पापा को ऑफिस से आने में देर हो रही है। तुम्हें ही आज कुछ जल्दी है। वरना रोज तुम पापा का ऐसे इंतजार नहीं करते।’ मां की बात सुनकर प्रियांशु वहां से चला गया। प्रियांशु की इस बेसब्री का कारण मां को पता था। कारण था, प्रियांशु के पापा ने सुबह उससे कहा था कि वह आज ऑफिस से लौटते समय उसके लिए लैपटॉप लेते आएंगे। बस, यही कारण था कि प्रियांशु पापा का इतनी बेसब्री से इंतजार कर रहा था। 

आठवीं क्लास में पढ़ने वाला प्रियांशु खेल-कूद के साथ-साथ पढ़ाई में भी होशियार है। हमेशा अच्छे नंबरों से पास होता है। पापा ने उससे कहा था कि अगर वह आठवीं क्लास में फर्स्ट आएगा तो वह उसे लैपटॉप लाकर देंगे। बस, फिर क्या प्रियांशु ने ठान लिया कि इस बार वह क्लास में फर्स्ट आकर रहेगा और इनाम में पापा से लैपटॉप लेगा। उसकी मेहनत रंग लाई और इस बार वह क्लास में फर्स्ट आया। बस उसी दिन से ही वह पापा से उनका वादा पूरा करने की रट लगाए हुए था। आज सुबह जब पापा ने उससे कहा कि आज शाम को उसका लैपटॉप आ जाएगा तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। आज स्कूल में भी उसका मन नहीं लग रहा था।

उसे तो बस इसी बात का इंतजार था कि जल्दी से रात हो और पापा उसका लैपटॉप लेकर आएं। यह इंतजार अब उसके लिए लंबा होता जा रहा था। वह अपने ख्यालों में डूबा हुआ था कि दरवाजे की घंटी बजी। इस घंटी ने मानो उसे जगा दिया। वह दौड़कर गया और दरवाजा खोला। लेकिन यह क्या? सामने तो शर्मा अंकल खड़े थे। उसकी तो जैसे उम्मीदों पर ही पानी फिर गया। शर्मा अंकल ने प्यार से उसके  सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा, ‘बेटा क्या पापा घर पर हैं?’ प्रियांशु ने ‘न’ में सिर हिलाते हुए कहा, ‘नहीं अंकल अभी पापा ऑफिस से नहीं आए हैं।’ अच्छा जब पापा आ जाएं तो मुझे फोन कर देना, यह कहकर शर्मा अंकल चले गए। थोड़ी देर बाद दरवाजे पर फिर घंटी बजी। एक बार तो प्रियांशु कुर्सी से दरवाजा खोलने के लिए उठा, लेकिन फिर यह सोचकर बैठ गया कि कहीं पापा की जगह फिर कोई और न हो। जब दोबारा घंटी बजी तो मां ने दरवाजा खोला। तभी उसे पापा की आवाज सुनाई दी। वे मां से पूछ रहे थे, ‘प्रियांशु कहां है?’ इससे पहले कि मां कुछ कहती प्रियांशु दौड़कर कमरे में आ गया।

पापा के हाथ में लैपटॉप देखकर वह उनसे खुशी से लिपट गया। पापा ने डिब्बे की पैकिंग खोली और उसे लैपटॉप पकड़ा दिया। प्रियांशु की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। लैपटॉप आने की खुशी में उसे रात को ढंग से नींद भी नहीं आई। अगले दिन सुबह संडे था। छुट्टी का दिन। सुबह पापा जब उसके कमरे में आए तो वह देखकर दंग रह गए कि प्रियांशु तो पहले से ही लैपटॉप पर गेम खेल रहा है। पापा ने उससे पूछा, ‘तुमने लैपटॉप चलाना कहां से सीखा?’ प्रियांशु ने कहा, ‘पापा मेरे दोस्त रोहित के पास पहले से ही लैपटॉप है, उसी से मैंने यह सीखा है।’ यह सुनकर पापा मुस्करा दिए। 

जब से प्रियांशु के पास लैपटॉप आया, वह उसमें ही व्यस्त रहने लगा। और तो और उसने अपना फेसबुक अकांउट भी खोल लिया। स्कूल से आने के बाद वह दिनभर लैपटॉप पर या तो गेम खेलता या फिर फेसबुक पर अपने दोस्तों के साथ चैटिंग करता रहता। शुरू-शुरू में तो उसके मम्मी-पापा को लगा कि नया-नया शौक है इसलिए प्रियांशु सारा दिन इसी पर लगा रहता है। लेकिन जब काफी दिन बीत जाने पर भी प्रियांशु में कोई बदलाव नहीं आया तो उन्होंने उसे टोकना शुरू कर दिया। लेकिन प्रियांशु पर उनकी बातों का कोई भी असर नहीं हुआ। दिनभर लैपटॉप पर रहने के कारण वह पढ़ाई पर भी ध्यान नहीं दे पा रहा था। इधर उसके फाइनल एग्जाम की तारीख भी पास आती जा रही थी। लेकिन वह इस सबसे बेखबर था। मम्मी-पापा के बहुत कहने पर उसने लैपटॉप पर ध्यान देना कम किया, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी। उसने जैसे-तैसे कम समय में अपनी परीक्षा की तैयारी की और पेपर भी दिए। वह जानता था कि इस बार उसके पेपर बहुत अच्छे नहीं हुए हैं। लेकिन अब हो भी क्या सकता है? इस डर से अब उसका मन न तो लैपटॉप पर गेम खेलने का करता था और न ही दोस्तों से फेसबुक पर चैटिंग करने का।

आखिर परीक्षा परिणाम का दिन भी आ गया। उसके सभी दोस्तों में उत्साह था, लेकिन वह दुखी और डरा हुआ था। उसे लग रहा था कि कहीं वह फेल न हो जाए! खैर प्रियांशु अपने दोस्तों के साथ परीक्षा परिणाम सुनने स्कूल पहुंचा। परीक्षा परिणाम आया। यह देखकर उसका दिल धक से रह गया कि इस बार पहली तीन पोजीशन में उसका नंबर नहीं है। टीचर्स के साथ-साथ उसके दोस्तों को भी आश्चर्य हुआ कि आठवीं क्लास में फर्स्ट आनेवाले प्रियांशु को आखिर नौवीं में क्या हो गया? प्रियांशु ने जब अपना रिपोर्ट कार्ड देखा तो वह सन्न रह गया। उसे बहुत ही कम नंबर मिले थे। वह नौवीं में जैसे-तैसे पास हो पाया था। वह सबसे मुंह चुराकर वहां से घर की ओर चल दिया। अब उसे समझ आ रहा था कि क्यों उसके मम्मी-पापा उसे दिनभर लैपटॉप पर खेलने से रोकते थे? अगर उसने मम्मी-पापा की बात समय रहते मान ली होती तो आज यह नौबत नहीं आती।

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें
अगला लेख पढ़ें