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पवन-चेतक

किसी जंगल में दो घोड़े के बच्चे रहते थे। थे तो दोनों भाई, लेकिन रूप-रंग और गुण में एक-दूसरे से एकदम उलट थे। एक झक सफेद था तो दूसरा गहरा काला। बड़े भाई का नाम पवन था और छोटे का चेतक। पवन काफी सुंदर और...

पवन-चेतक
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 10 Aug 2016 03:14 PM
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किसी जंगल में दो घोड़े के बच्चे रहते थे। थे तो दोनों भाई, लेकिन रूप-रंग और गुण में एक-दूसरे से एकदम उलट थे। एक झक सफेद था तो दूसरा गहरा काला। बड़े भाई का नाम पवन था और छोटे का चेतक। पवन काफी सुंदर और बलशाली था। उसकी सुंदरता और ताकत की चर्चा जंगल में दूर-दूर तक फैली हुई थी, जबकि चेतक बदसूरत और काला था।

पवन को अपने बल का बहुत घमंड था, जिससे वह शरारती हो गया था। वह अपनी ताकत दिखाने के लिए पशु-पक्षियों का नुकसान करने से भी नहीं चूकता था। एक दिन अपनी शक्ति दिखाने के लिए वह एक पेड़ के तने पर जोर-जोर से टक्कर मारने लगा। उसी पेड़ पर मधुमक्खियों ने छत्ता बना रखा था। मधुमक्खियों ने उससे विनती की कि वह पेड़ न उखाड़े। इस पेड़ पर हम लोगों ने छत्ता लगा रखा है।

मधुमक्खियों ने उसे इस बात की भी दुहाई दी कि छत्ते में रानी मधुमक्खी के साथ ढेर सारी नवजात मधुमक्खियां भी हैं, जिन्होंने अभी तक आंखें भी नहीं खोली है। अगर पेड़ गिर गया या टक्कर से सिर्फ छत्ता भी उजड़ गया तो वो बेचारी मर ही जाएंगी। महीनों की मेहनत से हमने अपने खाने के लिए शहद इकट्ठा किया है। फिर इतना शहद इकट्ठा करने में महीनों लग जाएंगे, तब तक भूख से और कई बड़ी मधुमक्खियां भी मर जाएंगी। अगर शहद खाना चाहते हो तो कहो, हम देंगे तुम्हें स्वादिष्ट शहद। बस पेड़ न गिराओ।

पर पवन पर मधुमक्खियों की विनती का असर नहीं हुआ। उसने उन मधुमक्खियों से कहा-तुम जो कर सकती हो, करो। मैं आज इस पेड़ को गिरा कर ही रहूंगा। तभी भाई को ढूंढ़ता वहां चेतक आ गया। उसने भाई को पेड़ उखाड़ने से मना किया। इसके बावजूद जब पवन नहीं माना तो चेतक अपने भाई से ही लड़ पड़ा और कहा, ‘ठीक है, अगर मधुमक्खियों और पेड़ को नुकसान ही पहुंचाना है तो आपको पहले मुझसे लड़ना होगा। मुझे हराकर ही आप ऐसा कर पाएंगे।’

चाहे जो भी हो, बड़ा भाई पवन अपने भाई चेतक से बहुत प्यार करता था और वह उसे नुकसान नहीं पहुंचा सकता था, इसलिए मान गया। पवन ने भाई को वायदा तो दे दिया, लेकिन माना नहीं। अब भाई से छिप-छिपकर पशु-पक्षियों को परेशान करने लगा। अगले ही दिन जिस पेड़ पर लकी कबूतर-कबूतरी ने घोंसला बना रखा था, उसे टक्कर मारने लगा। टक्कर से उनके घोंसले उजड़ गए। लकी कबूतर-कबूतरी के अंडे भी गिरकर फूट गए। अपने बच्चों की ये हालत देख वे रोने लगे।

जंगल के सभी पशु-पक्षियों ने पवन को शरारत न करने के लिए समझाया, पर वह न माना। इस वजह से सभी छोटे जानवरों के दिन डर-डरकर बीत रहे थे। एक सुबह तो उसने हद ही कर दी। उसने देखा कि चूहे अपनी बिल से निकलकर भोजन तलाश रहे हैं। बस क्या था, वह अपनी टापों से उन्हें रौंदने लगा। तभी चेतक उधर आ निकला। भाई को ऐसा करते देख उसे बहुत गुस्सा आया। वह बोला, ‘लगता है भइया आप नहीं सुधरेंगे। ठीक है, मैं ही घर छोड़कर चला जाता हूं।’ और गुस्से में पांव पटकता चला गया।

पीछे से पवन ने उसे बहुत आवाज लगाई। कहा, भाई चेतक मान जा, लौट आ। अब मैं हरगिज ऐसा नहीं करूंगा, लेकिन चेतक ने पलटकर भी नहीं देखा। घंटे-दो घंटे तो उसने चेतक के लौटने का इंतजार किया,  पर जब नहीं लौटा तो बदहवास-सा सुबह से शाम तक पूरे जंगल में भाई को ढूंढ़ता रहा,  पर वह नहीं मिला। थककर वह एक चट्टान पर बैठ गया और रोने लगा। तभी लकी कबूतर-कबूतरी वहां आए और उन्होंने आवाज देकर चूहों को बिल से निकलने को कहा। इसके बाद चूहे झुंड बनाकर उनके साथ कहीं चले गए।

इस वक्त दुखी पवन का पूरा ध्यान भाई पर लगा था,  इसलिए उसके मन में चूहों को परेशान करने का ख्याल नहीं आया। कुछ देर बाद पवन ने देखा कि सामने से उसका भाई चेतक हाथी दादा,  उन चूहों और मधुमक्खियों के साथ आ रहा है। वह खुशी से झूम उठा। लपककर भाई के गले लग गया और रुआंसा होकर बोला, ‘भाई! तुम अब कहीं मत जाना। आज से जो तुम कहोगे, मैं वही करूंगा। किसी पशु-पक्षी को परेशान नहीं करूंगा। ये मेरा सच्चा और पक्का वाला वादा है।’

थोड़ी देर बाद पवन ने चेतक से पूछा, ‘तुम कहां चले गए थे?’

चेतक ने बताया, ‘मैं दुखी होकर दिन भर जंगल में इधर-उधर मंडराता रहा। भूख और प्यास का एहसास हुआ तो घास खाने और पानी पीने के लिए नदी किनारे चला गया। पानी पीकर आराम करने के लिए वहीं एक पेड़ के नीचे बैठा ही था कि उसी पेड़ पर घात लगाए शिकारियों ने मुझ पर जाल फेंक दिया। मैं जाल में फंस गया। वहीं सामने फूलों पर उसी पेड़ वाली कुछ मधुमक्खियां बैठी थी, जिनका घर आप उजाड़ रहे थे। जाल में मुझे फंसा देख वे समझ गईं कि गड़बड़ है। बस अपनी सारी सहेली मधुमक्खियों को लेकर वे तुरंत वहां पहुंच गर्इं। रास्ते में लकी कबूतर-कबूतरी को भी सारा माजरा बताकर चूहों को लेकर नदी किनारे आने के लिए कहती हुई आईं। तब तक शिकारियों ने बेहोश करने वाली गन से मुझे बेहोश कर दिया था और जाल सहित गाड़ी में मुझे बैठाने ही वाले थे कि मधुमक्खियों ने उन पर एक साथ हमला बोल दिया। वे अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भागे, तब तक लकी कबूतर-कबूतरी चूहों के साथ वहां पहुंच गईं, साथ में हाथी दादा को भी ले आई। हाथी दादा सूंढ़ में नदी से पानीभर कर मेरे ऊपर फुहारें मारने लगे, ताकि मुझे होश आ जाए। इसी बीच चूहों ने जाल काट दिया। जब तक शिकारी दोबारा वहां आते, तब तक हम लोग वहां से निकल भागे।

इसके बाद चेतक बड़े भाई पवन से मुखातिब होकर बोला, ‘देख लिया भइया, जिन्हें तुम रोज-रोज परेशान किया करते थे, उन्हीं लोगों ने आज मेरी जान बचाई।’

पवन शर्मिंदा-सा उनके सामने सिर झुकाए खड़ा था। उसने उन सबसे माफी मांगी और तय किया कि अब वह कभी किसी को तंग नहीं करेगा।

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