पढ़ें ये मजेदार कहानी: जंगल की सैर
एक बार राजा कृष्णदेव ने तेनालीराम से कहा, ‘‘आज की शाम हम तुम्हारे साथ जंगल घूमने चलेंगे।’’ तेनालीराम ने उत्तर दिया, ‘‘महाराज, पर एक निवेदन है कि हम आज...
एक बार राजा कृष्णदेव ने तेनालीराम से कहा, ‘‘आज की शाम हम तुम्हारे साथ जंगल घूमने चलेंगे।’’
तेनालीराम ने उत्तर दिया, ‘‘महाराज, पर एक निवेदन है कि हम आज घोड़ों पर बैठकर जंगल की सैर करें तो ज्यादा मजा आएगा।’’ राजा कृष्णदेव ने हंसकर तेनालीराम की बात मान ली।
राजा कृष्णदेव ने अपना सबसे कीमती और तेज घोड़ा कसवाया और सैर के लिए तैयार हो गए। थोड़ी देर में तेनालीराम भी एक मरियल से टट्टू पर सवार होकर महल के द्वार पर आ पहुंचे।
टट्टू को देखकर राजा कृष्णदेव बोले, ‘‘यह क्या मरियल सा टट्टू ले आए। यह तो तुम्हें जंगल की बजाय सीधे स्वर्गलोक की सैर कराएगा।’’
तेनालीराम ने हाथ जोड़कर कहा, ‘‘महाराज, जो काम यह टट्टू कर सकता है, आपका घोड़ा कभी नहीं कर सकता।’’ राजा कृष्णदेव बोले,‘‘सौ-सौ स्वर्ण मोहरों की शर्त रही।’’
जब वे जंगल के बीचोबीच पहुंचे। तेनालीराम ने अपने टट्टू को कसकर चाबुक लगाए। वह हिनहिनाता हुआ भागा और जंगल में गायब हो गया।
तेनालीराम ने हाथ जोड़कर कहा, ‘‘महाराज, यही तो मेरे टट्टू का कमाल था। अब आप भी अपने घोड़े का यही कमाल दिखलाइए।’’
राजा कृष्णदेव अपना कीमती घोड़ा जंगल में कैसे छोड़ सकते थे? उन्होंने ना की तो तेनालीराम ने कहा, ‘‘तब फिर महाराज, सोने की सौ मोहरें लाइए। आप शर्त हार गए।’’
अब राजा कृष्णदेव तेनालीराम की चाल समझ चुके थे, उन्होंने झेंपते हुए अपनी हार मान ली। तेनालीराम ने कहा, ‘‘महाराज, कोई भी चीज बेकार नहीं होती। चतुर आदमी मिट्टी को भी सोना बना देते हैं।’’