फोटो गैलरी

Hindi Newsधुंधली हो गई तस्वीर, अब ‘नुक्कड़ पर खड़ा मुजफ्फरपुर का रंगमंच

धुंधली हो गई तस्वीर, अब ‘नुक्कड़ पर खड़ा मुजफ्फरपुर का रंगमंच

बिहार की अघोषित सांस्कृतिक राजधानी मुजफ्फरपुर के रंगमंच का अतीत जितना गौरवशाली रहा है, वर्तमान उतना ही संघर्षशील व चुनौतियों से भरा है। शहर के नाट्य कलाकारों की राय में जिले का रंगमंच आज नुक्कड़ पर...

धुंधली हो गई तस्वीर, अब ‘नुक्कड़ पर खड़ा मुजफ्फरपुर का रंगमंच
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 28 Mar 2017 02:12 AM
ऐप पर पढ़ें

बिहार की अघोषित सांस्कृतिक राजधानी मुजफ्फरपुर के रंगमंच का अतीत जितना गौरवशाली रहा है, वर्तमान उतना ही संघर्षशील व चुनौतियों से भरा है। शहर के नाट्य कलाकारों की राय में जिले का रंगमंच आज नुक्कड़ पर खड़ा है। कभी शहर के नाट्य संगठन दूसरे जिलों व राज्यों में जाकर नाटक का मंचन करते थे। आज शहर में नाटक के मंचन पर आफत है।

रंगालय के नाम पर 1907 में निर्मित वीणा कंसर्ट अपने अस्तित्व को ही बचाने का संघर्ष कर रहा है। वहीं खादी ग्रामोद्योग व जिला स्कूल का प्रेक्षागृह जो कभी नाटकों मंचन से हमेशा गुलजार रहता था, आज शून्यता का शिकार है। शहर में नाट्य प्रस्तुति के नाम पर कोई इंफ्रास्ट्रक्चर ही नहीं है। नगर निगम का आम्रपाली ऑडिटोरियम का किराया ही इतना है कि यहां नाटक का मंचन करना रंगकर्मियों के बूते से बाहर है।

एमपीएस साइंस कॉलेज के हिन्दी विभागाध्यक्ष सह नाट्य समीक्षक डॉ. शेखर शंकर मिश्र ने बताया कि वैसे तो मुजफ्फरपुर में 1907 में वीणा कंसर्ट का निर्माण हुआ, लेकिन यहां अधिकांश बांग्ला नाटक का ही मंचन होता था। कभी-कभी बांग्ला नाटक का हिंदी रुपांतरण कर मंचन होता था। वर्ष 1913 में सामाजिक, साहित्यिक गतिविधियों के लिए श्रीनवयुवक समिति ट्रस्ट की स्थापना हुई। रंगकर्मी ललित कुमार सिंह नटवर ने इससे जुड़कर हिन्दी के सैकड़ों नाटकों का मंचन कर इसे काफी प्रसिद्धि दिलायी। छोटा मुंह बड़ी बात नाटक ने स्व. नटवर को हरेक की जुबान पर ला दिया। होली पर रंग जुलूस देखने को शहर उमड़ पड़ता था। लेकिन उनके बाद एक विराम सा लग गया। वर्ष 1985-90 के बीच संरचना आर्ट थियेटर, कायाकल्प, इप्टा, जनवादी सांस्कृति मोर्चा के आने से रंगमंच संगठित हुआ, लेकिन सरकार की उदासीनता के कारण आज रंगमंच की स्थिति काफी निरश है।

रंगकर्मी राजकिशोर उप्पल ने बताया कि टीवी, फिल्म व मोबाइल की वजह से छोटे शहरों के लोग रंगमंच से दूर हो रहे हैं, वहीं बड़े शहरों में आज भी थियेटर की डिमांड है। गौरवशाली अतीत वाले मुजफ्फरपुर में प्रेक्षागृह का अभाव है। उन्होंने बताया कि विनोबा भावे के भूदान यज्ञ के लिए मारवाड़ी हाईस्कूल में नाटक का मंचन हुआ था। लेकिन आज के योजनाओं के प्रचार-प्रसार के लिए टेलीविजन आदि का प्रयोग करते हैं। उन्होंने बताया कि पहले हर पर्व त्योहार पर नाटक का आयोजन होता था।

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें