WATCH VIDEO: दुनिया में इतने तरह की होती है नाव की रेस
अगर तुम्हारे कुछ दक्षिण भारतीय दोस्त हैं तो आज उनके घरों में खूब चहल-पहल होगी। आज ओणम जो है! ओणम दक्षिण भारत का प्रमुख त्योहार है। हालांकि यह दक्षिण भारत में मनाया जाता है, लेकिन इसे लेकर दुनिया भर...
अगर तुम्हारे कुछ दक्षिण भारतीय दोस्त हैं तो आज उनके घरों में खूब चहल-पहल होगी। आज ओणम जो है! ओणम दक्षिण भारत का प्रमुख त्योहार है। हालांकि यह दक्षिण भारत में मनाया जाता है, लेकिन इसे लेकर दुनिया भर के लोगों में उत्सुकता रहती है। जानते हो क्यों? दरअसल ओणम के मौके पर केरल में अद्भुत नाव की रेस का आयोजन किया जाता है। इस रेस को देखने के लिए दुनिया भर से काफी पर्यटक आते हैं। सजी-धजी नावों को खेते ढेर सारे नाविकों का उत्साह देखते ही बनता है। तो चलो आज तरह-तरह की नावों की रेसों के बारे में बात करते हैं।
सर्प नौका रेस
सर्प नौका रेस ओणम का विशेष आकर्षण है। दरअसल इस रेस में जिन नावों का इस्तेमाल किया जाता है, वे सांप की तरह पतली और काफी लंबी होती हैं। इनके आगे का भाग ऐसे उठा होता है जैसे किसी सांप का फन उठा हुआ हो। इस तरह की नावों की लंबाई लगभग 120 से 140 फुट तक होती है और इनके बीच का भाग काफी पतला होता है। यह नाव जब पानी में दौड़ती है तो उसे देखकर ऐसा लगता है जैसे कोई बड़ा सांप पानी में तेजी से रेंग रहा हो। इस नौका पर एक बार में 100 से 120 तक नाविक सवार होते हैं। सभी नाविक नाव को अपना चप्पू चलाते हुए तेजी से आगे बढ़ाते हैं। तुमने अगर इस रेस को एक बार देख लिया तो बार-बार तुम्हारा इसे देखने का दिल करेगा। इसे देखने के लिए हर साल खूब सारे लोग आते हैं। चलो इस रेस का एक मजेदार वीडियो देखते हैं।
यॉट रेसिंग
यॉट को पाल नौका या छोटी नौका भी कहा जाता है। यह दुनिया की सबसे पुरानी नौकाओं में से एक है। इस नौका के ऊपर तिकोने आकार का बड़ा सा पाल (सिंथेटिक कपड़े का टुकड़ा) लगा होता है। तुम अपनी इतिहास की किताबों में प्राचीन समय में इस्तेमाल होने वाली जिस नौका को देखते हो, यह बिल्कुल उसी तरह की नौका है। 17वीं सदी में इस तरह की नौका रेस की शुरुआत सबसे पहले नीदरलैंड में हुई थी। वर्तमान में इंग्लैड, अमेरिका और कई अन्य देशों में समय-समय पर यॉट रेसिंग होती रहती है।
डोंगी रेस (कैनोई स्प्रिंट)
डोंगी एक तरह की नौका यानी नाव होती है। यह काफी पतली और छोटी होती है। डोंगी नौका रेस में नाव पर सिर्फ एक ही नाविक होता है। इस तरह की प्रतियोगिता में सारे नाविक एक-दूसरे से आगे निकलने के लिए खुद ही अपने-अपने चप्पू से नाव को तेजी से आगे बढ़ाते हैं। कैनोई ्प्रिरंट कॉम्पिटीशन में 500 मीटर और 100 मीटर की नौका रेस होती है। यूएस, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया समेत कई देशों में ऐसी नौका रेस होती है।
100 नाविकों वाली रेस
दुनिया भर में कई तरह की नावों की रेस होती हैं। किसी रेस में हर नावपर केवल एक ही नाविक होता है तो किसी में दो तो किसी में तीन या चार, लेकिन भारत स्थित केरल में होने वाली सर्प नौका रेस और चीन में होने वाली ड्रैगन नौका रेस में एक नाव पर 100 और कई बार इससे भी ज्यादा नाविक होते हैं। इस तरह की रोमांचक नाव की रेस को लोग देखते ही रह जाते हैं।
दक्षिण भारत की प्रमुख नाव रेस
अरणमुला नौका रेस : केरल की सबसे प्राचीन नौका रेस है अरणमुला नौका रेस। ओणम के मौके पर अरणमुला नाम की जगह पर यह रेस आयोजित की जाती है। यह रेस अपने रोमांच के लिए दुनिया भर में मशहूर है। यह रेस पम्पा नदी में होती है।
नेहरू नौका रेस : केरल स्थित अलपुझा की पुन्नमडा झील में नेहरू नौका रेस का आयोजन हर साल अगस्त के महीने में किया जाता है। इस रेस में काफी संख्या में सर्प नौकाएं शामिल होती हंै, जिन्हें देखने के लिए दुनिया भर से लोग आते हैं।
पयप्पड़ नौका रेस : नेहरूनौका रेस के बाद केरल की और भारत की सबसे बेहतरीन नौका रेस है पयप्पड़ नौका रेस। इसका आयोजन केरल के अलपुझा में पयप्पड़ नदी में होता है।
चम्पाकुलम नौका रेस : केरल राज्य की सबसे लोकप्रिय नौका रेस है चम्पाकुलम नौका रेस। इस रेस में नाविकों के शानदार व रोमांचक करतबों के साथ ही अद्भुत शोभायात्रा भी देखने को
मिलती है।
कब शुरू हुई नाव की रेस
तुम्हारे मन में इस बात को जानने की उत्सुकता तो जरूर होगी कि नावें कब से चलनी शुरू हुईं। नावों का इस्तेमाल काफी पुराने समय से किया जाता रहा है। पुराने समय में पानी से यात्रा करने के लिए यह इकलौता साधन था। साल 1498 में वास्को-डि-गामा ने जब भारत की खोज की थी यानी जब वह पहली बार भारत आए थे, तब वह भी जलयान (एक तरह की नाव) के जरिए ही समुद्र के रास्ते आए थे। जहां नावों का इस्तेमाल प्राचीनकाल में ही शुरू हो गया था, वहीं नावों की रेस की शुरुआत 17वीं सदी में हुई थी। ऐसा माना जाता है कि सबसे पहली नौका रेस नीदरलैंड में हुई थी। उसके बाद इंग्लैंड, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और फिर धीरे-धीरे पूरी दुनिया में यह खेल होने लगा।