प्रख्यात शायर पद्मश्री बेकल उत्साही का निधन, पढ़ें उनकी 5 ग़जलें
राम मनोहर लोहिया अस्पताल में हुआ निधन पूर्व राज्यसभा सदस्य और प्रख्यात शायर बेकल उत्साही का आज नई दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में निधन हो गया। उन्हें ब्रेन हैमरेज के बाद अस्पताल में भर
राम मनोहर लोहिया अस्पताल में हुआ निधन
पूर्व राज्यसभा सदस्य और प्रख्यात शायर बेकल उत्साही का आज नई दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में निधन हो गया। उन्हें ब्रेन हैमरेज के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
एक जून, 1928 को उतरौला के गांव रमवापुर में जन्में बेकल उत्साही ने गजल व शेरों-शायरी में कई प्रयोग किए। उनके ये प्रयोग श्रोताओं के सिर चढ़कर बोले। बेकल उत्साही को उत्साही का उपनाम पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने दिया था। बेकल उत्साही की ये पंक्तियां सिद्ध करती हैं कि वे गंगा-जमुनी तहज़ीब के प्रतीक थे।
'धर्म मेरा इस्लाम है,
भारत जन्म स्थान।
वुजू करूँ अजमेर में,
काशी में स्नान।'
अगली स्लाइड में पढ़ें बेकल उत्साही की पांच गजलें-
प्रख्यात शायर पद्मश्री बेकल उत्साही का निधन, पढ़ें उनकी 5 ग़जलें
उधर वो हाथों के पत्थर बदलते रहते हैं
उधर वो हाथों के पत्थर बदलते रहते हैं
इधर भी अहल-ए-जुनूं सर बदलते रहते हैं
बदलते रहते हैं पोशाक दुश्मन-ए-जानी
मगर जो दोस्त हैं पैकर बदलते रहते हैं
हम एक बार जो बदले तो आप रूठ गए
मगर जनाब तो अक्सर बदलते रहते हैं
ये दबदबा ये हुकूमत ये नश्शा-ए-दौलत
किराया-दार हैं सब घर बदलते रहते हैं
प्रख्यात शायर पद्मश्री बेकल उत्साही का निधन, पढ़ें उनकी 5 ग़जलें
वो तो मुद्दत से जानता है मुझे
वो तो मुद्दत से जानता है मुझे
फिर भी हर इक से पूछता है मुझे
रात तनहाइयों के आंगन में
चांद तारों से झाँकता है मुझे
सुब्ह अख़बार की हथेली पर
सुर्ख़ियों मे बिखेरता है मुझे
होने देता नही उदास कभी
क्या कहूं कितना चाहता है मुझे
मैं हूं बेकल मगर सुकून से हूं
उसका ग़म भी संवारता है मुझे
प्रख्यात शायर पद्मश्री बेकल उत्साही का निधन, पढ़ें उनकी 5 ग़जलें
ये दुनिया तुझसे मिलने का वसीला काट जाती है
ये दुनिया तुझसे मिलने का वसीला काट जाती है
ये बिल्ली जाने कब से मेरा रस्ता काट जाती है
पहुँच जाती हैं दुश्मन तक हमारी ख़ुफ़िया बातें भी
बताओ कौन सी कैंची लिफ़ाफ़ा काट जाती है
अजब है आजकल की दोस्ती भी, दोस्ती ऐसी
जहाँ कुछ फ़ायदा देखा तो पत्ता काट जाती है
तेरी वादी से हर इक साल बर्फ़ीली हवा आकर
हमारे साथ गर्मी का महीना काट जाती है
किसी कुटिया को जब "बेकल"महल का रूप देता हूं
शंहशाही की ज़िद्द मेरा अंगूठा काट जाती है
प्रख्यात शायर पद्मश्री बेकल उत्साही का निधन, पढ़ें उनकी 5 ग़जलें
मैं जब भी कोई अछूता कलाम लिखता हूं
मैं जब भी कोई अछूता कलाम लिखता हूं
तो पहले एक ग़ज़ल तेरे नाम लिखता हूं
बदन की आंच से संवला गए हैं पैराहन
मैं फिर भी सुब्ह के चेहरे पे शाम लिखता हूं
चले तो टूटें चट्टानें रुके तो आग लगे
शमीम-ए-गुल को तो नाज़ुक-ख़िराम लिखता हूं
घटाएं झूम के बरसीं झुलस गई खेती
ये हादसा है ब-सद-ए-एहतिराम लिखता हूं
ज़मीन प्यासी है बूढ़ा गगन भी भूका है
मैं अपने अहद के क़िस्से तमाम लिखता हूं
चमन को औरों ने लिक्खा है मय-कदा बर दोश
मैं फूल फूल को आतिश-ब-जाम लिखता हूं
न राब्ता न कोई रब्त ही रहा 'बेकल'
उस अजनबी को मगर मैं सलाम लिखता हूं
प्रख्यात शायर पद्मश्री बेकल उत्साही का निधन, पढ़ें उनकी 5 ग़जलें
हम को यूं ही प्यासा छोड़
हम को यूं ही प्यासा छोड़
सामने चढ़ता दरिया छोड़
जीवन का क्या करना मोल
महंगा ले-ले, सस्ता छोड़
अपने बिखरे रूप समेट
अब टूटा आईना छोड़
चलने वाले रौंद न दें
पीछे डगर में रुकना छोड़
हो जाएगा छोटा क़द
ऊंचाई पर चढ़ना छोड़
हमने चलना सीख लिया
यार, हमारा रस्ता छोड़
ग़ज़लें सब आसेबी हैं
तनहाई में पढ़ना छोड़
दीवानों का हाल न पूछ
बाहर आजा परदा छोड़
बेकल अपने गांव में बैठ
शहरों-शहरों बिकना छोड़
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