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#StopChildMarriage : जब छोटे से गांव की सांतना ने थामा UN में माइक

बाल विवाह आज भी कानूनन जुर्म है, लेकिन आंकड़ों पर ध्यान दें तो भारत में 8.5 लाख से भी ज्यादा लड़कियां बाल विवाह का शिकार हैं। प्राथमिक शिक्षा और खुशियों से वंचित करके उनके जीवन को छोटी सी उम्र में ही...

#StopChildMarriage : जब छोटे से गांव की सांतना ने थामा UN में माइक
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 24 Sep 2016 11:21 AM
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बाल विवाह आज भी कानूनन जुर्म है, लेकिन आंकड़ों पर ध्यान दें तो भारत में 8.5 लाख से भी ज्यादा लड़कियां बाल विवाह का शिकार हैं। प्राथमिक शिक्षा और खुशियों से वंचित करके उनके जीवन को छोटी सी उम्र में ही किसी और के हाथों में सौंप दिया जाता है। लेकिन कुछ ऐसी भी लड़कियां हैं जिन्होंने इस दर्द से उबरकर अपनी एक पहचान बनाई और बस एक पीड़िता बनकर नहीं रहीं।

जी हां, हमारे सामने भी एक ऐसा ही उदाहरण है। पश्चिम बंगाल के सुबर्नापुर गांव की रहने वाली सांतना मुर्मू ने गांव की हजारों महिलाओं के लिए आगे बढ़ने की रास्ता बनाया और आज वह अपने गांव की जानीमानी शख्सियत बन गई हैं।

पिछले दिनों सांतना को यूएन बुलाया गया और सम्मानित किया गया। अपने छोटे से गांव की धरती से उठकर सांतना ने विदेश में अपनी सफलता का परचम लहराया। सांतना के मुंह से ही सुनते ही उसके सफर की कहानी

बंगाल से तय किया यूएन का सफर

मैं 20 साल की हूं। मैं बहुत बीमार रहती थी। एक हफ्ते खाना बनाती थी, दूसरे हफ्ते बिस्तर पर पड़ी रहती थी। मेरे दो बच्चे हैं। मैंने बहुत छोटी उम्र में ही बच्चों को जन्म दिया था, अगर आज की उम्र में मैंने अपने पहले बच्चे को जन्म दिया होता, तो आज मेरा स्वास्थ्य इतना खराब नहीं होता। मुर्मू ने ये सारी बातें कोलकाता में हाल ही में आयोजित एक सम्मेलन में कही। 

पिछले साल की बात है जब सांतना ने सुर्खियां बंटोरी थी। जब यूएन में सांतना की सफलता के चर्चे हुए। बंगाल के एक छोटे से गांव की लड़की को यूएन में बोलने का मौका मिला लेकिन आज सांतना को हर कोई भूल गया है। इसके बावजूद उसकी मुहिम जारी है। सांतना आज भी अपने गांव की 200 लड़कियों को शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए जागरूक करती हैं।

कोलकाता में सम्मेलन के दौरान हजारों लोगों की आंखों में आंखे डालकर सांतना अपना यूएन सफर बयां कर रही थी। 

15 साल की उम्र से ही सांतना समाजसेविका का काम कर रही हैं। सांतना बचनप से ही एक जुझारू महिला है। वे कभी ये बर्दाश्त नहीं कर पाती थी कि जो उनके साथ हुआ वो हर उस औरत के साथ हो जो चुप रहती है। क्यों हर बार एक लड़की को उसकी उम्र से पहले ही दूसरों को सौंप दिया जाता है, क्यों अपना जीवन जीने से पहले ही वे मां बन जाती हैं और उन्हें एक परिवार और बच्चे की जिम्मेदारी दे दी जाती है। 

स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक एक लड़की जब तक 20 की नहीं हो जाती है, उसका शरीर बच्चा पैदा करने में सक्षम नहीं होता है, अगर छोटी उम्र में शादी हो और बच्चा 15 साल की उम्र से पहले ही हो जाए, ऐसे में औरत का स्वास्थ्य टूट जाता है। उसका स्वास्थ्य बच्चा लेने में अक्षम होता है। ऐसी कितनी ही गांव की औरतें हैं, जिनकी शादी छोटी उम्र में हो तो जाती है, लेकिन बाद में कुपोषण और स्वास्थ्य संबंधी और कई तरह की शिकायतों के बाद उसकी जान चली जाती है। 

बंगाली सांतना, बहुत मीठी बंगाली बोलती हैं, सांतना गांव में आदिवासियों के लिए काम करती हैं। औरतों के विकास और शिक्षा के हक के लिए लड़ाई करती हैं। सांतना की भाई की पढ़ाई बहुत जरूरी थी, इसलिए उसकी पढ़ाई बीच में ही रोक दी गई। दसवीं भी पास करना उसके लिए मुश्किल था। पहले मुझे कुछ समझ नहीं आया, लेकिन कुछ साल बाद एक गैर सरकारी संस्था ने मुझे पहले से ही सावधानी बरतने को कहा। उसके बाद से सांतना ने एनजीओ के साथ मिलकर दक्षिण दिनाजपुर के सभी ब्लॉक में महिलाओं को बाल विवाह के खिलाफ लड़ना सिखाया। 

सांतना ने बताया कि किस तरह से उसके परिवार और पड़ोसियों ने उसका विरोध किया। लेकिन वो हारी नहीं। अपने पति के साथ से उसने बंगाल से यूएत तक का सफर तय किया। जब यूएन में उससे चाइल्ड मैरेज से जुड़ी बातें पूछी गईं तो उसने बंगाली में जवाब दिया। सांतना को इतने बड़े प्लैटफॉर्म पर कुछ कहने के लिए ट्रेंनिंग देने की जरूरत नहीं पड़ी, उसका सफर और अनुभव ही सबका दिल जीतने के लिए काफी था। 

सांतना ने बताया कि चाइल्ड मैरेज के पीछे कई कारण होते हैं। कई बार गरीबी की वजह से तो कई बार घर परिवार की दिक्कतें, कई बार लड़कियों को जल्दी स्कूल छोड़ने पर मजबूर किया जाता है। कई बार वे किसी के प्यार में होती हैं और घर में दिक्कतें शुरू हो जाती हैं। ऐसे में उनकी जल्दी शादी कर दी जाती है।सांतना हजारों ऐसी औरतों के लिए प्रेरणा का सबब है। 

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