हिमालयी राज्यों पर बाढ़ का खतरा बढ़ा
पिछले कुछ साल में हिमालय क्षेत्र के राज्यों में कई बार प्रलंयकारी बाढ़ आ चुकी है। कश्मीर घाटी में सितंबर 2014 में विनाशकारी बाढ़ आई थी। इसमें 200 लोगों की मौत हुई थी। 2010 में लेह में तबाही मचाने...
पिछले कुछ साल में हिमालय क्षेत्र के राज्यों में कई बार प्रलंयकारी बाढ़ आ चुकी है। कश्मीर घाटी में सितंबर 2014 में विनाशकारी बाढ़ आई थी। इसमें 200 लोगों की मौत हुई थी। 2010 में लेह में तबाही मचाने वाली बाढ़ आई थी। उत्तराखंड में जून 2013 में बाढ़ से हजारों लोगों की मौत हुई थी।
क्यों आ रही बार-बार बाढ़
मौसम की अति
उत्तराखंड और कश्मीर में एक साल के अंतर पर आई दो विनाशकारी बाढ़ों की कई वजहें हैं। पहली यह कि यहां जरूरत से ज्यादा पानी बरसा। इसका कारण था दो विपरीत मौसमी हवाओं का मिलना। उत्तराखंड में मानसूनी और पश्चिमी विक्षोभ की हवायें मिलीं। इससे मूसलाधार बारिश हुई। कश्मीर में सितंबर में आई बाढ़ के पीछे यही वजह रही। 2010 लेह में भी दो विपरीत हवाएं मिली थीं। इन्हें विशेषज्ञ ग्लोबल वार्मिग या जलवायु परिवर्तन से जोड़कर देख रहे हैं।
युवा पर्वत
विशेषज्ञ मानते हैं कि हिमालय पृथ्वी का सबसे युवा पर्वत है। इसलिए यह प्राकृतिक आपदाओं मसलन बादल फटने, भूस्लखन, फ्लैश फ्लड, ग्लेशियर झीलों के फटने और भूकंप के लिहाज से बेहद संवेदनशील है।
बढ़ती मानवीय गतिविधियां
युवा पहाड़, जलवायु परिवर्तन और मानवीय गतिविधियों के कारण आपदाएं बढ़ रही हैं। विनाशकारी बाढ़ ये बताती हैं कि मानव का हस्तक्षेप स्थिति को गंभीर बना रहा है।
योजनाविहीन विकास
चेतावनी और आपदा प्रणाली की कमी या नाकामी से जानें ज्यादा जा रही हैं। लेकिन स्थानीय नदियों के किनारे असुरक्षित, अनियमित, योजनाविहीन ढांचागत विकास, बिजली परियोजनाओं और बढ़ती आबादी से खतरा बढ़ा।
नदियों में जमी गाद
नदियों के फ्लडप्लेन गायब हो चुके हैं। नदियों में गाद जम गई है। सफाई बिल्कुल भी नहीं हो पा रही है। 2010 में जम्मू-कश्मीर में झेलम की गाद सफाई पर योजना कछुआ चाल से चली।
यहां भी बरपा था कहर
उत्तराखंड
विकास ने आपदा संकट को दिया न्योता
उत्तराखंड में 2012 में उत्तरकाशी और रुद्रप्रयाग में मानूसन के कारण आपदायें आईं थीं। ऐसी ही आपदा 2013 में इन्हीं स्थानों पर फिर घटी।
बिहार
चेतावनी-निगरानी तंत्र पर हो जोर
हर मानसून में बिहार पर मंडराता है। मूसलाधार बरसात तिब्बत/नेपाल में होती हैं और वहां की नदियां राज्य के आबादी वाले इलाकों में कहर बरपाती हैं। 1978, 1987, 1998, 2004 और 2007 में वहां प्रलंयकारी बाढ़आईं थीं।
विश्व बैंक ने 2011 में एक अध्ययन में कहा था कि नेपाल से बाढ़ के खतरे को नेपाल में बांध बनाकर नहीं रोका जा सकता।