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संसाधनों पर मेहनतकशों का नहीं रह गया हक : मेधा पाटकर

सत्याग्रह मुख्यत: भूमि के मुद्दे को ही लेकर हुआ था। आजादी से पहले भूमि को लेकर जो काम अंग्रेजों ने किया आज वहीं अडानी, अम्बानी सरीखे पूंजीपति कर रहे हंै। सत्ता पर आसीन दलों की साठगांठ से नव...

संसाधनों पर मेहनतकशों का नहीं रह गया हक : मेधा पाटकर
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 23 Mar 2017 11:48 PM
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सत्याग्रह मुख्यत: भूमि के मुद्दे को ही लेकर हुआ था। आजादी से पहले भूमि को लेकर जो काम अंग्रेजों ने किया आज वहीं अडानी, अम्बानी सरीखे पूंजीपति कर रहे हंै। सत्ता पर आसीन दलों की साठगांठ से नव उपनिवेशवाद हम पर थोपा जा रहा है। देश के मेहनतकश मजदूरों और किसानों का बुरा हाल है। उनसे काम लिया जा रहा है। लेकिन उनकी बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति के हद तक भी संसाधन पर हक नहीं दिया जा रहा है।

विकास को तंत्र और मंत्र बनाकर लोगों में भ्रम फैलाया जा रहा है। इतना ही नहीं गांव तेजी खत्म हो रहे हैं और गांव की संस्कृतियां खत्म हो रही हंै। केवल महाराष्ट्र में दो हजार से अधिक गांवों का स्वरूप खत्म हो गया। उक्त बातें नर्मदा बाचाओ आन्दोलन की प्रणेता समाजसेवी मेधा पाटकर ने चम्पारण सत्याग्रह शताब्दी समारोह के दूसरे सत्र में ‘चम्पारण सत्याग्रह और नव उपनिवेशवाद विषयक गोष्ठी को संबोधित करते हुए कहीं। उन्होंने कहा कि भू दान के रूप में मिली लाखों एकड़ भूमि का आवंटन अब तक सरकार नहीं कर पायी है। भू दान की बातों को सब सराहते हैं। लेकिन भूमि आवंटन की प्रक्रिया केवल कागजी होती है। उन्होंने कहा कि आज भूमि से संबंधित जो संघर्ष चल रहा है उस पर विमर्श की जरूरत है। क्योंकि भूमि के उपयोग से संबंधित नीतियां इतनी विकृत हो रही है। जनतंत्र के स्तंभों में घुसपैठ हो रही है।

ऐसे में अब केवल भीख मांगने की बात नहीं हो सकती। अपनी जमीन, अपना जंगल और जलभूमि के लिए आग्रह की राह पकड़नी ही पडे़गी। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक संपदा पर पूंजीपतियों का कब्जा है। वर्तमान सरकारें 18 से 30 पैसे एकड़ जमीन पूंजीपतियों को दे रही है। जो स्थिति गांव में अडानी और अंबानी को जमीन देने की है, वही मामला शहरों में बिल्डरों को जमीन देने का है। सरकार की गलत नीति के चलते महाराष्ट्र, आंध्रा, उड़ीसा और पंजाब में रोज दर्जनों किसान आत्महत्या कर रहे हैं। सरकार को इसकी चिंता नहीं। उन्होंने कहा झूठे राष्ट्रवाद के नाम पर विद्यार्थी आन्दोलन को कुचला जा रहा है।

ऐसे में जन आन्दोलन व जनशक्ति को नया आयाम प्रदान करने की जरूरत है। वहीं भूमि व आदिवासियों की लड़ाई लड़ने वाले राजगोपाल जी ने नारो दृष्टि में इतिहास की चर्चा की। उन्होंने कहा कि देश की 57 फीसदी यानी 97 लाख 73 हजार परिवार भूमिहीन है। जिसमें 23 लाख अनुसूचित जाति व जनजाति, 9 लाख महिलाएं शामिल हैं। मौके पर गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे डा. रामजी प्रसाद ने स्वतंत्रता सेनानी लक्ष्मी बाबू के तीन पौत्र और बहू को अंग वस्त्रम् देकर सम्मानित किया। मौके पर अशोक कुमार, विजय कुमार, गुलरेज शहजाद आदि थे।

भाईचारे के बिना सबका सबका साथ सबका विकास संभव नहीं : मोतिहारी। भाईचारा के बिना इस देश में सबका साथ सबका विकास हो ही नहीं सकता। आज गोवा स्टाइल समन्वय नहीं बल्कि विचारों के आधार पर समन्वय चाहिए। इसलिए सर्वधर्म संभाव और संवैधानिक अधिकारों को मानने वाले राजनीतिक पार्टियां एक हो जाए तो हम जन आन्दोलनों की राजनीति तो बाहर से आगे बढ़ायेंगे।

लेकिन, हमें खुशी होगी कि इस देश के संविधान में समाजवाद और धर्म निरपेक्षवाद है। उक्त बातें मेधा पाटकर ने एक विशेष भेंट में कहीं। उन्होंने कहा कि देश में आज तक चुनाव सुधार नहीं हो सका है। जिसके चलते 24 प्रतिशत से 30 प्रतिशत वोट लेकर पार्टियां सत्ताधीश बन जाती है। उन्होंने समान स्कूलिंग प्रणाली को लागू करने और भूमि का बंटरवार के लिए लैण्ड यूज पॉलिसी भी बनाने पर बल दिया। एक प्रश्न के जवाब में पाटेकर ने कहा कि गांधी जी को मध्य में रखकर विचार करने की जरूरत है। उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा राष्ट्रीय विमर्श की पहल की सराहना करते हुए कहा कि राष्ट्रीय विमर्श अगर विकास की अवधारना पर और आगे के भविष्य के सपनों का उजागर करने के लिए बुलाते हैं तो यह एक बड़ी राष्ट्रीय पहल होगी। जिसकी अभी बड़ी जरूरत है। यह यागी आदित्यनाथ नहीं कर सकते नीतीश कुमार कर सकते हैं।

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