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रेलवे क्रासिंग हाद:आही गांव में नहीं चूल्हे, गम में डृबे लोग

कछवां क्षेत्र के आही बंधवा गांव के लोगों ने रविवार को एक साथ पांच लोगों को अंतिम विदाई दी। इसमें किसी के घर का बेटा था, तो किसी का पिता और पति। घटना की सूचना पर पहुंचे रिश्तेदार,परिचित और आस-पास के...

रेलवे क्रासिंग हाद:आही गांव में नहीं चूल्हे, गम में डृबे लोग
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 24 Apr 2017 12:40 AM
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कछवां क्षेत्र के आही बंधवा गांव के लोगों ने रविवार को एक साथ पांच लोगों को अंतिम विदाई दी। इसमें किसी के घर का बेटा था, तो किसी का पिता और पति। घटना की सूचना पर पहुंचे रिश्तेदार,परिचित और आस-पास के गांवों के लोग भी अपने आंसू रोक नहीं पाए। गांव में शायद ही कोई घर हो जिसके यहां चूल्हा जला हो।

गांव निवासी बालकृष्ण त्रिपाठी की बेटी का तिलक लेकर परिवार और गांव के लोग शनिवार को चील्ह थाना क्षेत्र के पखवइयां निवासी दीनानाथ शुक्ला के घर जा रहे थे। औराई थाना क्षेत्र के गोरीडीह में मानव रहित रेलवे क्रासिंग पर विभूति एक्सप्रेस की चपेट में आयी कार से चार चेचेरे भाइयों, सतीश त्रिपाठी,अजीत त्रिपाठी, विपुल त्रिपाठी, प्रदीप त्रिपाठी और तीर्थपुरोहित रामसजीवन मिश्र की मौत हो गई। घटना की सूचना मिलते ही पूरा पखवइयां और आही बंधवा गांव के लोग घटना स्थल पर पहुंच गए। मौके पर पहुंचे अधिकारियों, जन प्रतिनिधियों ने रात में शवों का पोस्टमार्टम कराकर शवों को गांव भेज दिया गया। आधी रात में शवों पहुंचने पर परिवार की महिलाओं को रोता देखकर आसपास के लोग भी खुद को नहीं रोक सके। पत्नी अपने बच्चों और खुद की परवरिश और सुरक्षा की दुहाई देकर सिर पीटती रही तो बहन ने राखी की कसम तोड़ने का आरोप लगाया। कहाकि अब वह किसकी कलाई में राखी बांधेगी। सभी शवों को पकड़कर विलाप करती रहीं। वहीं जिनके बेटे दुनिया में नहीं रहे वह तो यही कहते रहे कि उनका सबकुछ छीन गया। किसी तरह पूरे गांव ने रतजगा किया। सुबह होते ही शवों के अंतिम संस्कार की तैयारी होने लगी। नौ बजे के करीब सभी शवों को तीन सौ मीटर दूर आही चट्टी पर लाया गया। यहां से दो ट्रैक्टरों पर शवों पर वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर अंमित संस्कार के लिए ले जाया गया। पूरे गांव की पल पर भर के लिए नहीं झपकी आंखें आही बंधवा गांव के ग्रामीणों की आंख शनिवार की रात पल भर के लिए भी नहीं झपकी। शाम को पांच बजे तक गांव में घटना की सूचना मिलने पर अधिकांश पुरुष घटना स्थल पर पहुंच गए थे। गांव में सिर्फ महिलाएं रहीं। यहां पीड़ित परिवार की महिलाओं को गांव की महिलाएं ढांढस बंधाने के लिए जुटी रहीं। महिलाओं की ओर से फोन करके पुरुषों के घर आने का पता लगाया जाता रहा। सभी से यही जानकारी मिली कि आधीरात तक घर आ जाएंगे। रात में शवों के साथ लौटे ग्रामीणों का पीड़ित परिवार के शांत कराने,समझाने में पूरी रात बीत गयी। यहां तक गांव की महिलाएं भी पीड़ित परिवारों के यहां ही रहीं। सभी होनी के बहाने लोगों को शांत कराते रहे। लेकिन आंसुओं का सैलाब कहां रुकने वाला था। शाम से ही शुरू हुई आंसुओं की धारा रविवार की शाम तक नहीं रुक पायी थी।

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