म्यूजिक से टीबी व फेफड़े के कैंसर पीड़ितों का इलाज
लखनऊ। कार्यालय संवाददाताटीबी व फेफड़े के कैंसर से जूझ रहे मरीजों का इलाज अब दवाओं के साथ म्यूजिक से होगा। केजीएमयू के रेस्पेटरी मेडिसिन विभाग में इलाज के इस अनोखे तरीके की बुधवार से शुरुआत हुई। नई...
लखनऊ। कार्यालय संवाददाता
टीबी व फेफड़े के कैंसर से जूझ रहे मरीजों का इलाज अब दवाओं के साथ म्यूजिक से होगा। केजीएमयू के रेस्पेटरी मेडिसिन विभाग में इलाज के इस अनोखे तरीके की बुधवार से शुरुआत हुई। नई व्यवस्था शुरू होने से मरीजों में खुशी व राहत महसूस की है।
केजीएमयू के रेस्पेटरी मेडिसिन विभाग में पांच वार्ड हैं। इसमें 140 बेड हैं। विभागाध्यक्ष डॉ. सूर्यकांत ने बताया कि टीबी व फेफड़े के कैंसर से पीड़ित मरीजों का इलाल लंबा चलता है। इसकी वजह से मरीजों में तनाव घर कर जाता है। मरीज में निराशा का भाव पैदा होने लगता है। इसकी वजह से एड्रनिलिन हार्मोन का स्राव बढ़ जाता है। जिससे मरीज के दिल की धड़कन बढ़ जाती है। ब्लड प्रेशर भी अनियंत्रित हो जाता है। मरीज को बार-बार पेशाब महसूस होती है। नतीजतन मरीजों को खासी दुश्वारियां महसूस होती हैं। मधुर संगीत से मरीज में सकारात्मक सोच पैदा होती है। वैज्ञानिक शोध में यह बात साबित भी हो चुकी है। संगीत से मरीज के दिमाग में डोपामीन नाम के हार्मोन का स्राव होता है। इस हार्मोन से मरीज की सोच में बदलाव आता है। मरीज अच्छा महसूस करता है। चौकन्ना भी रहता है। मरीज में फुर्ती भी आती है। जो मर्ज दूर करने में मददगार साबित होता है। दवाएं भी ऐसे मरीजों पर ज्यादा असर करती हैं। कार्यक्रम में केजीएमयू के सीएमएस डॉ. एसएन शंखवार, चिकित्सा अधीक्षक डॉ. विजय कुमार, कुलानुशासक डॉ. आरएएस कुशवाहा, डॉ. राजीव गर्ग, डॉ. आनन्द श्रीवास्तव, डॉ. संतोष कुमार व डॉ. दर्शन बजाज मौजूद थे।
मरीजों की फरमाइश पर बजेगा गाना
अभी एक वार्ड में म्यूजिक सिस्टम लगाए गए हैं। पहले दिन हनुमान चालिसा सुनाई गई। इसके अलावा स्टूमेंट म्यूजिक, गजल, मधुर गीत, पुराने व नए गीतों का भी संग्रह किया गया है। मरीजों की मांग के हिसाब से भी गाने सुनाए जाएंगे। डॉ. सूर्यकांत के मुताबिक जल्द ही सभी वार्डों में यह व्यवस्था शुरू की जाएगी।
ये भी हैं फायदे
दवाओं के साथ म्यूजिक से मरीज की सेहत में सुधार होता है
हॉस्पिटल से मरीज की जल्द छुट्टी होती है
ऑपरेशन वाले मरीजों के घाव जल्दी भरते हैं
दवाओं की डोज में कमी लाई जा सकती है
मरीज की सोचने-समझने की क्षमता का विकास होता है
निराशा का भाव खत्म होता है।