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सीबीआई के खिलाफ केंद्रीय सूचना आयोग के आदेश पर रोक

नई दिल्ली। वरिष्ठ संवाददाता। हाईकोर्ट ने केंद्रीय सूचना आयोग के उस आदेश पर रोक लगा दी है जिसमें सीबीआई को अपने अंदरूनी क्रियाकलाप को लेकर सूचनाएं सार्वजनिक करने को कहा गया था। जस्टिस विभु बाखरू ने...

सीबीआई के खिलाफ केंद्रीय सूचना आयोग के आदेश पर रोक
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 30 Sep 2014 12:56 AM
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नई दिल्ली। वरिष्ठ संवाददाता। हाईकोर्ट ने केंद्रीय सूचना आयोग के उस आदेश पर रोक लगा दी है जिसमें सीबीआई को अपने अंदरूनी क्रियाकलाप को लेकर सूचनाएं सार्वजनिक करने को कहा गया था। जस्टिस विभु बाखरू ने सीबीआई की ओर से आयोग के आदेश के खिलाफ दाखिल अपील पर यह आदेश दिया है। उन्होंने कहा कि आयोग के चार जून 2014 को जारी आदेश के अनुपालन पर रोक लगाई जाती है। सीबीआई ने आयोग के आदेश को यह कहते हुए चुनौती दी है कि सीबीआई जैसे संगठनों को सूचना के अधिकार कानून के दायरे से बाहर रखा गया है।

आयोग ने सीबीआई को सामाजिक कार्यकर्ता सुभाष अग्रवाल को इस आधार पर सूचना मुहैया कराने को कहा था कि उनकी ओर से मांगी गई जानकारी भ्रष्टाचार के आरोपों से जुड़ी है। मुख्य सूचना अधिकारी राजीव माथुर ने अपने आदेश में कहा था कि सूचना के अधिकार कानून की धारा 24 के तहत कुछ संगठनों को आरटीआई कानून के दायरे बाहर रखा गया है। लेकिन कथित भ्रष्टाचार और मानवाधिकार उल्लंघन से जुड़ी सूचनाओं को इससे अलग रखा गया है। उन्होंने कहा था कि सूचना मांगने वाले (अग्रवाल) की दलील में इसलिए उचित जान पड़ती है क्योंकि उनकी ओर से मांगी गई सूचना संगठन के अंदर भ्रष्टाचार से जुड़ी है।

आयोग ने सीबीआई और उसके अधिकारियों से तीन सप्ताह के संबंधित सूचना क्रमवार अग्रवाल को मुहैया कराने का निर्देश दिया था। आरोपी मो. नौशाद ने कहा है कि उसकी बेटी अब शादी योग्य हो गई है और उसके लिए योग्य लड़का खोजने के लिए तीन महीने की पैरोल मांगी है। हाईकोर्ट ने नौशद की मांग पर दिल्ली पुलिस से जवाब तलब किया है। जस्टिस प्रतिभा रानी ने दिल्ली पुलिस को नौशाद की अर्जी पर जवाब देने को कहा। नौशाद ने कहा है कि वह पिछले 18 साल से जेल में है और उसके बच्चों की देखरेख के लिए परिवार में कोई नहीं है।

उसने अपने वकील के जरिये हाईकोर्ट को बताया है कि उसकी बेटी अब 22 साल की हो गई है जिसकी उसे शादी करवानी है। इसलिए अच्छा लड़का खोजने के लिए उसे जेल से बाहर जाने की जरूरत है। नौशाद ने कहा है कि तीन माह में वह लड़का खोजकर बेटी की शादी कर देंगे। नवंबर 2012 में हाईकोर्ट ने 1996 के लाजपत नगर विस्फोट कांड के जुर्म में नौशाद को मिली मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया था। विस्फोट में 13 लोगों की मौत और 38 जख्मी हो गए थे।

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