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मुंह की लार से होगी काला जार बुखार की जांच

 नई दिल्ली, प्रमुख संवाददाता।  काला जार बुखार की जांच के लिए अब एक नई तकनीक का इस्तेमाल हो सकेगा। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद द्वारा इस बावत दो नई तकनीक दो सितंबर का लांच की जाएगी। ...

मुंह की लार से होगी काला जार बुखार की जांच
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 29 Aug 2014 11:35 PM
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 नई दिल्ली, प्रमुख संवाददाता।  काला जार बुखार की जांच के लिए अब एक नई तकनीक का इस्तेमाल हो सकेगा। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद द्वारा इस बावत दो नई तकनीक दो सितंबर का लांच की जाएगी। जिसमें काला जार के लिए अब तक इस्तेमाल की जाने वाली पारंपरिक तकनीक की जगह अब यूरीन और मंुह के लार के सैंपल से बुखार की जांच की जा सकेगी।

अब तक एलाइजा और पीसीआर से काला जार की जांच होती थी। आईसीएमआर से मिली जानकारी के अनुसार संक्रामक बीमारियों में शामिल पूर्वी भारत के कई राज्यों में हर साल बड़ी संख्या में काला जार के मरीज सामने आते हैं। जानवरों के शरीर मंे पाया जाना वाला एक तरह का डीएनए थ्री प्रोटोजोआ को इसके लिए जिम्मेदार माना गया है। बीमारी के कारण अब तक ऐसे 21 प्रोटोजोआ खोजे जा चुके हैं जो काला जार संक्रमण को बढ़ाते हैं। संस्थान से मिली जानकारी के काला जार बुखार की जांच के लिए लंबे समय से किए गए शोध के बाद दो सितंबर को नई तकनीक को सार्वजनिक किया जाएगा।

इसमें मरीज के मुंह के लार और पेशाब के सैंपल से भी प्रोटोजोआ की जांच की जा सकेगी। दरअसल काला जार की जांच के लिए अब तक इस्तेमाल की जाने वाली तकनीक को शत प्रतिशत सही नहीं माना गया है। इस बावत वर्ष 2005 में एम्स के लैबोरेटरी मेडिसन विभाग के डॉ. सरमन सिंह द्वारा किए गए शोध के अनुसार काला जार के लक्षण, मलेरिया, लिम्फोमा, हिस्टोप्लाज्मोसिस और टाइफायड बुखार से मिलते हैं, इसलिए अब तक बुखार की जांच के लिए की जाने वाली स्पीज जांच, एफएनएसी, बोन मैरो और लिवर बायोस्पी को सही नहीं कहा जा सकता।

कल्चर और मॉलीक्यूलर जांच के तहत अब काला जार बुखार की जांच के लिए मुकोसल बायोस्पी की जाएगी, जिसमें इनविट्रो विधि से सैंपल में संक्रमण के कारण प्रोटोजोआ की उपस्थिति जांची जाएगी। इसी तरह यूरीन सैंपल की कल्चर जांच भी बुखार की सही पहचान के लिए बेहतर मानी गई है। दो सितंबर को लांच होने वाली तकनीक के बाद इसके वितरण का पेटेंट दिया जाएगा। हालांकि तकनीक को लांच करने के बाद ही आईपीआर की औपचारिकताएं होगी। संभव है कि तकनीक किसी भारतीय पेटेंट कंपनी को ही दिया जाएगा, जिसकी जांच के लिए देश में ही सस्ती किट तैयार हो सके।

हर साल कितने मरीज नेशनल वेक्टर बोर्न डिसीज कंट्रोल प्रोग्राम के अनुसार देशभर के नौ राज्यों के 33 जिलों में हर साल काला जार बड़ी संख्या में बच्चांे सहित व्यस्कों को प्रभावित करता है। जिसमें मरीज का शरीर शुरूआत में कुपोषण का शिकार लगता है, संक्रमण होने के छह से सात महीने के अंदर प्रोटोजोआ मरीज की मांसपेशियों को कमजोर कर देता है। काजा जार के कुल मरीजांे में 65 प्रतिशत मरीज बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल के देखे जाते हैं।

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