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उर्दू कवयित्रियों ने गजल के जरिए उठाए सामाजिक मुददे

मशहूर महिला कवयित्रियों परवीन शाकिर, किश्वर नहीद, जेहरा निगार और कार्यकर्ता फाहमिदा रियाज ने 20 वीं सदी के अंत में पुरूष वर्चस्व वाली उर्दू गजल के क्षेत्र में कदम रखा और इसके परिदश्य को बदलकर रख...

उर्दू कवयित्रियों ने गजल के जरिए उठाए सामाजिक मुददे
एजेंसीWed, 30 Jul 2014 03:30 PM
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मशहूर महिला कवयित्रियों परवीन शाकिर, किश्वर नहीद, जेहरा निगार और कार्यकर्ता फाहमिदा रियाज ने 20 वीं सदी के अंत में पुरूष वर्चस्व वाली उर्दू गजल के क्षेत्र में कदम रखा और इसके परिदश्य को बदलकर रख दिया।
     
पाकिस्तान की महिलावादी कवयित्रियों और कार्यकर्ताओं ने गजलों का इस्तेमाल महिला भ्रूण हत्या, लिव-इन संबंधों, वैश्यावृत्ति, दहेज और शादी को मूर्त रूप देने जैसे विभिन्न मुददों पर अपनी बात रखने के लिए किया। इसके साथ-साथ उन्होंने हर तरह के लैंगिक भेदभाव के खिलाफ भी गजलों के माध्यम से आवाज उठाई।
     
तब तक उर्दू गजलों और कविताओं को औरतों की खूबसूरती की तारीफ करने के लिए पुरूष प्रधान समाज का ही माध्यम माना जाता था। इसमें महिलाओं को अक्सर क्रूर प्रेमिका की छवि दी जाती थी। पाकिस्तान में महिलाओं की तकलीफों में सुधार लाने में महिला कवयित्रियों के योगदान को हाल ही में दक्षिणी एशिया साहित्य, कला और संस्कति गठबंधन (एसएएएलएआरसी) के सैफ महमूद ने याद किया।

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