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अंग्रेजी की अनिवार्यता और परीक्षा के लिए महज चार अवसर देने का विरोध

विधि के प्रतियोगी छात्रों ने यूपी न्यायिक सेवा की परीक्षा में अंग्रेजी की बाध्यता का विरोध शुरू कर दिया है। छात्रों का कहना है कि 200 नम्बर के अंग्रेजी के प्रश्नपत्र की अनिर्वायता से हिन्दी माध्यम के...

अंग्रेजी की अनिवार्यता और परीक्षा के लिए महज चार अवसर देने का विरोध
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 16 Nov 2014 10:05 PM
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विधि के प्रतियोगी छात्रों ने यूपी न्यायिक सेवा की परीक्षा में अंग्रेजी की बाध्यता का विरोध शुरू कर दिया है। छात्रों का कहना है कि 200 नम्बर के अंग्रेजी के प्रश्नपत्र की अनिर्वायता से हिन्दी माध्यम के छात्र यूपी न्यायिक सेवा की परीक्षा में मात खा रहे हैं। उन्हें इस प्रश्नपत्र में औसतन 50 से 60 नम्बर से ज्यादा नहीं मिल पाते हैं जबकि अंग्रेजी माध्यम के छात्र 150 से ज्यादा नम्बर हासिल कर मेरिट में बाजी मार ले जाते हैं। अंग्रेजी की बाध्यता के खिलाफ प्रतियोगी छात्रों ने रविवार को गोरखपुर विश्वविद्यालय के विवेकानंद छात्रवास में बैठक कर इस मुहिम में प्रदेश के अन्य विश्वविद्यालय के छात्रों को भी जोड़ने की कवायद शुरू कर दी है। वह इस मुद्दे पर राज्यपाल और मुख्यमंत्री से भी मिलने की रणनीति बना रहे हैं।


स्वामी विवेकानंद छात्रवास में हुई बैठक में अंग्रेजी के प्रश्नपत्र की अनिवार्यता और यूपी न्यायिक सेवा की परीक्षा में महज चार अवसर देने का विरोध जताया गया। छात्रों ने तय लिया कि आंदोलन को व्यापक रूप देने के लिए बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के अलावा इलाहाबाद और लखनऊ में भी विश्वविद्यालय के छात्रों से सम्पर्क साधा जाएगा। इसके लिए सोशल मीडिया का भी सहारा लिया जाएगा।


प्रतियोगी छात्र चंद्रभूषण तिवारी ने कहा कि न्यायिक सेवा में चयन का आधार विधि का ज्ञान होना चाहिए। अंग्रेजी को जानकारी तक ही सीमित किया जाए। इसके अंक जुड़ने से हिन्दी माध्यम के छात्रों को नुकसान होता है। अभय मल्ल ने कहा कि चयन की अन्तिम प्रक्रिया में अंग्रेजी के नम्बर हिन्दी माध्यम छात्रों को पीछे कर देते हैं। बीते दिन आए यूपी न्यायिक सेवा की परीक्षा के परिणाम में भी यह बात देखने को मिली।


अश्वनी सिंह कहते हैं कि यूपी के न्यायिक सेवा में चयन के आंकड़े देखे तों अंग्रेजी माध्यम के छात्रों को ज्यादा चयन हो रहा है। रितेश तिवारी कहते हैं कि बिहार और उत्तराखण्ड जैसी व्यवस्था अपने प्रदेश में भी लागू की जानी चाहिए। विपिन शुक्ला कहते हैं कि महज चार अवसर की वाध्यता भी खत्म होनी चाहिए। बैठक में अनिल वर्मा, अरविंद पाण्डेय, साधुशरण पटेल, अश्वनी कुमार सिंह, अनूप सिंह, संतोष कुमार प्रजापति, विवेक त्रिपाठी, धर्मेन्द्र प्रताप, अंकित मिश्र, अरुण त्रिपाठी, शैलेश यादव आदि प्रतियोगी छात्र शामिल हुए।
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अंकों का गणित
1000 अंक का होता है पूर्णाक यूपी न्यायिक परीक्षा में
200 अंक अंग्रेजी के प्रश्नपत्र के
200 नम्बर सामान्य अध्ययन के प्रश्नपत्र के
600 अंक कानून के अलग-अलग विषयों के प्रश्नपत्र के होते हैं
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अंग्रेजी प्रश्नपत्र
40 अंक अंग्रेजी से हिन्दी अनुवाद के
40 अंक हिन्दी से अंग्रेजी अनुवाद के
60 अंक अंग्रेजी के निबंध का
60 अंक प्रेसी के
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अंग्रेजी के विरोध पर तर्क
अंग्रेजी प्रश्नपत्र का विरोध करने वाले विधि के छात्रों का तर्क है कि यूपी न्यायिक सेवा से चयनित होने वाले छात्रों को यूपी में ही नौकरी करनी है और यहां कोर्ट का कामकाज अंग्रेजी नहीं हिन्दी में होती है। इसलिए अंग्रेजी प्रश्नपत्र की अनिर्वायता खत्म होनी चाहिए। दूसरा तर्क यह है कि बिहार में अंग्रेजी के अंक नहीं जोड़े जाते हैं। वहीं, उत्तराखण्ड में अंग्रेजी प्रश्नपत्र के नम्बर की अनिवार्यता नहीं है।
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अंग्रेजी के पक्ष में तर्क
अंग्रेजी प्रश्नपत्र के पक्ष में तर्क देने वाले छात्र और कानूनविद कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट का कामकाज अंग्रेजी में होता है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला नेट पर आता है। अंग्रेजी की जानकारी में छात्र कमजोर रहेंगे तो उसे फैसले की प्रक्रिया को पढ़ने और समझने में दिक्कत आएगी। आगे बढ़ने के लिए किसी भी जज को सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट का कामकाज पढ़ना और समझना अनिवार्य है।

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