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मेरठ में 30 फीसदी लोग हैं डिप्रेशन के शिकार

मेरठ। भूपेश उपाध्याय/नवनीत शर्मा। काम के दौरान सिरदर्द या अकारण गुस्सा, महिलाओं का कामवाली के लेट हो जाने पर घर सिर पर उठा लेना या फिर बच्चे का अत्यधिक चुप या सक्रिय हो जाना। हो सकता है कि इसे आप...

मेरठ में 30 फीसदी लोग हैं डिप्रेशन के शिकार
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 10 Oct 2014 12:13 AM
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मेरठ। भूपेश उपाध्याय/नवनीत शर्मा। काम के दौरान सिरदर्द या अकारण गुस्सा, महिलाओं का कामवाली के लेट हो जाने पर घर सिर पर उठा लेना या फिर बच्चे का अत्यधिक चुप या सक्रिय हो जाना। हो सकता है कि इसे आप सामान्य घटनाएं मानकर अनदेखा कर देते हों लेकिन यह सचेत होने का समय है। हो सकता है कि आप जाने-अनजाने अवसाद का शिकार हो रहे हों।

जी हां, मनोचिकित्सक मान रहे हैं कि मेरठ में विभिन्न मानसिक परेशानियों को लेकर आने वाले लोगों में 30 फीसदी मामले अवसाद या इससे जुड़ी बीमारियों के हैं। इसके अलावा शादीशुदा जिंदगी में असंतोष और अकेलेपन के कारण भी मनोसमस्याएं बढ़ रही हैं।

मनोचिकित्सकों के मुताबिक युवाओं में नशे की बढ़ती लत भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश की एक बड़ी समस्या के रूप में सामने आ रही है। लाला लाजपत राय मेडिकल कॉलेज के मनोरोग विभाग के चिकित्सकों ने डॉ.रवि कुमार राणा के नेतृत्व में यहां आने वाले मरीजों की समस्याओं का अध्ययन करके इनका वर्गीकरण किया है।

ये परिणाम चौंकाने वाले तो हैं ही साथ ही सचेत करने वाले भी हैं कि वक्त रहते मानसिक स्वास्थ्य की परवाह न करना घातक रूप ले सकता है। अध्ययन के मुताबिक बीते दो माह में ओपीडी में आए करीब तीन सौ मामलों में सबसे अधिक 30 फीसदी मामले गंभीर अवसाद और इसके कारण होने वाले सीवियर माइग्रेन के थे। दूसरे नंबर पर 20 फीसदी मामले एंग्जाइटी डिसआर्डर के निकले। इसमें मरीज को अचानक ही काफी बेचेनी और घबराहट होने लगी।

करीब15 फीसदी मामले स्क्रीजोफेनिया के निकले। इसके अलावा करीब 10-10 फीसदी मामले बाईपोलर डिसआर्डर और नशे के कारण होने वाले इल्युजन और डिप्रेशन के थे। बाइपोलर डिसआर्डर में व्यक्ति कुछ समय के लिए काफी खुश तो कुछ समय के लिए काफी निराश हो जाता है। अध्ययन के मुताबिक नशे के अधिकतर मामले 35 वर्ष से कम आयु के थे। इन लोगों में नशे के कारण डिप्रेशन और विभ्रम का स्तर काफी बढ़ गया था। खास ये कि नशे में शराब और भांग से अधिक मेडिसिनल ड्रग्स लेने के थे।

किनमें कौन सी समस्या सबसे बड़ी पुरुष : नौकरी और वेतन को लेकर असंतोष महिलाएं: वैवाहिक जीवन में तालमेल का अभाव बच्चे: स्कूल का बोझ, अकेलापन बुजुर्ग: अकेलापन, खालीपन इस बार स्कीजोफ्रेनिया पर रहेगा ध्यान इस बार विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस की थीम लिविंग विथ स्कीजोफ्रेनिया रखी गई है। इसके तहत सभी मनोवैज्ञानिक और मनोचिकित्सक इस बीमारी से पीडि़त लोगों को सामान्य जीवन जीने के लिए प्रेरित करेंगे और इसमें उनकी मदद करेंगे। यह बीमारी दरअसल एक ऐसी जटिल बीमारी है जिसमें मरीज को अजीबो-गरीब आवाजें सुनाई देने लगती हैं।

उसे हर किसी पर शक होने लगता है। पीडि़त को लगता है कि हर दूसरा आदमी उसके साथ बुरा करना चाहता है। स्वभाव में बेचैनी और अचानक गुस्सा काफी बढ़ जाता है। हर सौ में से एक व्यक्ति को स्कीजोफ्रेनिया होने का खतरा रहता है।

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