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परंपरा कायम रहेगी या इतिहास रचेंगे मतदाता?

विधानसभा क्षेत्र/हथीन फरीदाबाद। पंजाब से अलग होकर हरियाणा जब से राज्य के वजूद में आया है, तब से लेकर अब तक हथीन विधानसभा क्षेत्र के साथ भौगोलिक लिहाज से कई बार छेड़खानी की गई है। कभी इसको जिला...

परंपरा कायम रहेगी या इतिहास रचेंगे मतदाता?
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 10 Oct 2014 12:09 AM
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विधानसभा क्षेत्र/हथीन फरीदाबाद। पंजाब से अलग होकर हरियाणा जब से राज्य के वजूद में आया है, तब से लेकर अब तक हथीन विधानसभा क्षेत्र के साथ भौगोलिक लिहाज से कई बार छेड़खानी की गई है। कभी इसको जिला फरीदाबाद के साथ जोड़ा जाता है तो कभी जिला मेवात के साथ। वहां से भी हटाकर अब इसको जिला पलवल का हिस्सा बना दिया गया है। बावजूद इसके यहां के लोगों ने सियासी क्षेत्र में कभी किसी एक राजनीति पार्टी व किसी व्यक्ति विशेष को ज्यादा तरजीह नहीं दी।

एक बार जिस प्रत्याशी को विधायक बना दिया, अगली बार उसको दोबारा लगातार विधायक बनने का मौका नहीं दिया। यानी हर बार नए व्यक्ति को चुनना यहां के मतदाताओं की आदत में शुमार है। वर्ष 1967 से लेकर अब तक के चुनाव इस बात की तस्दीक करते हैं। क्या यहां के मतदाता इस परंपरा को बरकरार रखेंगे या फिर नया इतिहास रचेंगे? यह बात तो चुनाव के नतीजे सामने आने के बाद ही स्पष्ट हो पाएगी, क्योंकि अगर जलेबा जीतते हैं तो वह यह इतिहास बनाने वाले पहले नेता होंगे़ इन्होंने पिछली दफा यहां से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीत दर्ज की थी और हरियाणा सरकार में मुख्य संसदीय सचिव रहे।

अगर कोई दूसरा नेता जीतता है तो फिर परंपरा कायम रहेगी। हालांकि इस बार भी यहां त्रिकोणीय मुकाबला होने के आसार हैं।

मूलभूत सुविधाओं से जुड़े मुद्दों की भरमार जिला पलवल मुख्यालय से करीब 17 किलोमीटर दूर हथीन विधानसभा क्षेत्र में वैसे तो हमेशा से बुनियादी जरूरतों के मुद्दे उठते रहे हैं, लेकिन युवा पीढ़ी इस बार इनको मजबूती से उठा रही है। मेवात से जुड़े हुए इस हल्के में विकास के नाम पर कोई निशानी ऐसी नहीं है, जिसको कोई पार्टी अपनी कामयाबी की फेहरिस्त में शामिल कर सके।

लाखों की आबादी वाला यह हल्का हर तरफ से मुख्य शहरों से कटा हुआ है। रोजगार के लिहाज से कृषि पर निर्भर रहने वाले यहां के अधिकांश लोग शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार आदि जरूरत पूरी करने के लिए पलवल, फरीदाबाद, दिल्ली, गुड़गांव या फिर उत्तर प्रदेश के शहर कोसी का रुख करते हैं। एक तरफ जिला मेवात इसकी सीमा से पूरी तरह सटा हुआ है। मेवात का पिछड़ापन किसी से छुपा नहीं है। वहां के लोग खुद ही गुड़गांव, दिल्ली, फरीदाबाद जैसे शहरों पर निर्भर हैं।

बहरहाल, कृषि के लिए यहां पानी की जरूरत है। आसपास के रजवाहों में पर्याप्त पानी नहीं पहंुच पाता है। इन रजवाहों का गला तर करने के लिए गुड़गांव नहर एक मात्र साधन है, मगर उसमंे पहले ही पानी काफी कम है और जो है वो इतना प्रदूषित है कि उसको इस्तेमाल करने से किसान भी परहेज करते हैं। भूजल पर ही किसानों को ज्यादा निर्भर रहना पड़ता है। कनेक्टिविटी की बात करें तो एक ही रोड है जो जिला पलवल से इसको जोड़ता है।

वाहनों के दबाव को देखा जाए तो वो आज के वक्त में काफी छोटा है। थोड़ी सी दूरी पर गांवों बसे हुए हैं। जहां वो रोड संकरा हो जाता है। डबल रोड की इस क्षेत्र को सख्त जरूरत है। पानी की बात करें तो खारा पानी इस इलाके में आता है। रेनीवेल एक प्रोजेक्ट इस क्षेत्र के लिए कई वर्ष पहले तैयार किया गया था, मगर उसका अधिकांश पानी मेवात को सप्लाई कर दिया जाता है। परिवहन व्यवस्था भी माकूल नहीं है। लोग इतने परेशान हैं, कि उनको प्राइवेट वाहनों के सहारे सफर तय करना पड़ता है।

निर्दलीय उम्मीदवारों ने मारी है ज्यादा बार बाजी वैसे इस क्षेत्र के साथ एक रोचक बात और जुडी है। अब तक चुनावों के आंकडों पर नजर डाली जाए तो सबसे ज्यादा तीन बार यहां निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की है। इनमें एक बार हर्ष कुमार, जो इस बार भाजपा की टिकट पर मैदान में हैं और दूसरी दफा जलेबा खान, जो इस बार कांग्रेस पार्टी की टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं।

दोनों एक-एक बार निर्दलीय विधायक बने हैं। इनसे पहले वर्ष 1967 एक निर्दलीय विजयी हुए थे, मगर इस बार निर्दलीय के आसार कम लग रहे हैं, क्योंकि दो बार निर्दलीय बनने वाले नेता ही इस बार पार्टियों की टिकट पर मैदान में हैं। इनेलो के उम्मीदवार केहर सिंह रावत ने भी पिछली दफा करीब 21 हजार वोट हासिल किए थे, वो तीसरे नंबर पर थे, दूसरे नंबर पर कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ने वाले हर्ष कुमार थे।

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