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शहीदों को 157 साल बाद मिली गंगा की गोद

1857 की आजादी की पहली बगावत के 282 शहीदों को 157 साल बाद हरिद्वार मां गंगा की गोद नसीब हुई। इसी वर्ष फरवरी-मार्च माह में पंजाब के अजनाला कस्बे के एक कुएं से निकाली गई इन शहीदों की अस्थियों को कनखल...

शहीदों को 157 साल बाद मिली गंगा की गोद
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 24 Aug 2014 07:51 PM
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1857 की आजादी की पहली बगावत के 282 शहीदों को 157 साल बाद हरिद्वार मां गंगा की गोद नसीब हुई। इसी वर्ष फरवरी-मार्च माह में पंजाब के अजनाला कस्बे के एक कुएं से निकाली गई इन शहीदों की अस्थियों को कनखल स्थित सती घाट पर गंगा में विसजिर्त किया गया। इन शहीदों ने मेरठ की बगावत से प्रेरणा लेते हुए लाहौर छावनी में विद्रोह किया था।

30 जुलाई 1857 को मेरठ में हुई बगावत के बाद लाहौर की मियां मीर छावनी में बंगाल नेटिव इंफ्रेंट्री में तैनात 500 सिपाहियों से हथियार लेकर उन्हें बैरकों में बंद कर दिया गया। 31 जुलाई को सभी सिपाही बगावत करते हुए वहां से भाग निकले और अमृतसर की तहसील दरिया रावी के पास गांव डंडिया पहुंच गए। जमीदारों की सूचना पर अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर फैड्रिक हेनरी कूपर के सिपाहियों ने इनमें से करीब 218 सैनिकों को गोलियां बरसाकर शहीद कर दिया। शेष 282 में 237 को अजनाला लाकर गोलियां मारी गईं। इन शहीदों के साथ बचे 45 सैनिकों को जिंदा ही अजनाला के एक पानी रहित कुएं में फेंककर उसे हमेशा के लिए बंद कर दिया। इतिहासकार सुरेंद्र कोछड़ की पहल पर पांच वर्ष की मशक्कत के बाद इसी वर्ष फरवरी-मार्च में उस कुएं की खुदाई कर अब तक के गुमनाम शहीदों की अस्थियों को निकाला गया। जानकारी के मुताबिक कुएं से 90 खोपड़ियां, 170 जबड़े, 5000 से ज्यादा दांत और सैकड़ों हड्डियां बरामद हुईं।

रविवार सुबह अमृतसर के अजनाला से सुरेंद्र कोछड़ के नेतृत्व में 80 लोगों का दल अस्थियों को लेकर हरिद्वार पहुंचा। कनखल के सतीघाट पर गंगा सभा के सदस्यों, संत महंतों की उपस्थिति में विधि विधान के साथ अस्थियां गंगा में विसजिर्त की गईं।

हरिद्वार के लोगों ने भी दी श्रद्धांजलि
शहीदों की अस्थियां हरिद्वार पहुंचने की सूचना दो दिन पूर्व ही मीडिया के माध्यम से लोगों को मिल गई थी। रविवार सुबह कई स्थानीय लोगों ने सती घाट पहुंचकर शहीदों को श्रद्धांजलि दी। हालांकि कोई बड़ा अधिकारी या नेता शहीदों को श्रद्धांजलि देने नहीं पहुंचा।

कैसे हुआ खुलासा
इतिहास में नया अध्याय जोड़ने वाले इस तथ्य का खुलासा, घटना को अंजाम दिलाने वाले तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर फैड्रिक हेनरी कूपर की किताब से ही हुआ। घटना के कुछ समय बाद लिखी गई कूपर की किताब में इस घटनाक्रम का पूरा विवरण दर्ज है। इस किताब को पढ़ने के बाद ही सुरेंद्र कोछड़ ने इन शहीदों का पता लगाने की जद्दोजहद शुरू की।

अवध क्षेत्र के थे क्रांतिकारी
इतिहास सुरेंद्र कोछड़ का कहना है कि विस्तृत अध्ययन के बाद पता चला है कि यह क्रांतिकारी पंजाब के नहीं थे। यह लोग अवध क्षेत्र लखनऊ के हिन्दू थे। इसलिए इनकी अस्थियों को गंगा में विसजिर्त किया गया।

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