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धूमधाम से सम्पन्न हुआ रक्षाबन्धन का त्योहार

संतकबीरनगर। निज संवाददाता।  श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन जिले में रक्षाबन्धन का त्योहार धूमधाम से मनाया गया। बहनों ने भाइयों की कलाई पर स्नेह की डोर बांधी। बदले में भाइयों ने बहनों की रक्षा...

धूमधाम से सम्पन्न हुआ रक्षाबन्धन का त्योहार
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 10 Aug 2014 11:46 PM
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संतकबीरनगर। निज संवाददाता।  श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन जिले में रक्षाबन्धन का त्योहार धूमधाम से मनाया गया। बहनों ने भाइयों की कलाई पर स्नेह की डोर बांधी। बदले में भाइयों ने बहनों की रक्षा का संकल्प दोहराया। लोगों के चेहरे पर इस पर्व को लेकर काफी उल्लास देखा गया। चाहे बच्चे हों या फिर बुजुर्ग, सभी इस त्योहार पर खुशी से ओत प्रोत दिखे।

सावन के अन्तिम दिन बहनें अपने भाइयों की कलाइयों पर नेह की डोर बांधती हैं। इसके साथ ही वह अपने भाइयों के दीर्घायु की कामना करती हैं। भाई भी इसके बदले ताउम्र अपनी बहनों की रक्षा का वचन लेते हैं। बहनों को इस पर्व पर आश्वस्त किया जाता है कि उनके भाई उनके हर सुख-दुख में भागीदार बनेंगे। सावन की पूर्णिमा तिथि भाई-बहनों के पवित्र रिश्तों को बल देने के लिए जानी जाती है। बहनें अपने भाइयों को इस तिथि पर राखी बांधती हैं।

इसीलिए यह त्योहार रक्षाबंधन के नाम से भी मशहूर है। इसके इतिहास में झांकने पर यह धर्म के बंधन से भी आगे है। क्योंकि हुमायूं को महारानी कर्मवती ने राखी भेजकर अपना धर्म भाई बनाया था और मुगल बादशाह ने अपनी फौज के साथ अपनी बहन की रक्षा की थी। जिला मुख्यालय खलीलाबाद के साथ ही साथ मेंहदावल, धनघटा, पौली, सेमरियांवा, महुली, नाथनगर, कालीजगदीशपुर, मैनसिर, गंगादेवरिया, बखिरा, तामेश्वरनाथ धाम, सांथा, धर्मसिंहवा, कांटे, दुधारा समेत अन्य स्थानों पर राखी का त्योहार धूमधाम से मनाया गया।

कहीं पर यह त्योहार भद्रा के चलते दोपहर 1.38 बजे के बाद मनाया गया तो कहीं पर सुबह ही बहने भाइयों की कलाई पर राखी बांधी। कुछ विद्वानों का मत था कि भद्रा तो स्वर्गलोक में था। पृथ्वी लोक में भद्रा नहीं था। जो नहीं जा पाए उन्होंने खुद ही बांधी राखी राखी के अवसर पर कुछ लोग अपनी बहनों के घर पहुंच कर राखी बंधाई तो कुछ ने खुद ही राखी खरीदकर अपनी बहनों के नाम से संकल्प किया और अपने ही हाथ से राखी बांध ली।

जिनकी राखी डाक से आई थी उन्होंने भी राखी अपने हाथ से ही बांध ली। पृथ्वी लोक में नहीं स्वर्ग लोक में था भद्रा राखी के पवित्र बंधन को भद्रा के भय से दोपहर बाद कर दिया गया। इससे यह पवित्र त्यौहार कहीं सुबह तो कहीं दोपहर बाद शुरू हुआ। इस बारे में आचार्यों ने अपने मत कुछ इस तरह से प्रस्तुत किए। पौली के खर्चा निवासी आचार्य गणेश दत्त ने बताया कि भद्रा तो था लेकिन यह स्वर्ग में लोक में था जिसका दुष्प्रभाव पृथ्वी पर नहीं पड़ता।

उन्होंने वेदों की कुछ पंक्तियों के माध्यम से कहा कि... मेष, मकर, वृष, कर्कट स्वर्गे। कन्या, मिथुन, तुला, धनु नागे। कुम्भ, मीन, अलि(वृश्चिक), केसर(सिंह)। विचरत भद्रा त्रिभुवन मध्ये। अर्थात मेष, मकर, बृष और कर्क राशियों पर चन्द्रमा के रहने पर भद्रा स्वर्ग लोक में होता है। जबकि कन्या, मिथुन, धनु और तुला राशियों पर चन्द्रमा के होने पर भद्रा का निवास नागलोक होता है। इसी तरह कुम्भ, मीन, वृश्चिक और सिंह राशियों पर चन्दमा के रहने से भद्रा तीनों लोकों में विचरण करता है।

उन्होंने यह भी बताया कि स्वर्गे भद्रां शुभम् कुर्यात,पाताले च धनागमन। मृत्यु लोके यदा भद्रा,सर्व कार्यं विनीशिनी। स्वर्ग का भद्रा शुभ फलदाई है। पाताल में भद्रा के होने से धन का आगमन होता है जबकि भद्रा का निवास धरती पर होने से सभी कार्यों का विनाश होता है। इसलिए राखी का त्योहार सुबह से होने में कोई परेशानी नहीं थी।

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