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पांच दशक में बदल गई दिल्ली की पंजाबी हिन्दी

नई दिल्ली, अनुराग मिश्र दिल्ली-एनसीआर में बीते पांच दशक में पंजाबी प्रभाव वाली हिन्दी पूरी तरह बदल गई। अब यह पहले की तुलना में अधिक समृद्ध हो गई। यहां की पंजाबी प्रभाव वाली हिन्दी पर यूपी और बिहार के...

पांच दशक में बदल गई दिल्ली की पंजाबी हिन्दी
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 17 Jul 2014 10:43 PM
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नई दिल्ली, अनुराग मिश्र दिल्ली-एनसीआर में बीते पांच दशक में पंजाबी प्रभाव वाली हिन्दी पूरी तरह बदल गई। अब यह पहले की तुलना में अधिक समृद्ध हो गई। यहां की पंजाबी प्रभाव वाली हिन्दी पर यूपी और बिहार के प्रभाव वाली हिन्दी का दबदबा हो गया। द पीपुल्स लिंग्विस्टिक सर्वे आफ इंडिया की रिपोर्ट में यह बात सामने आई है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हिन्दी बोलने और समझने वालों की तादाद तेजी से बढ़ रही है। अंग्रेजी के बढ़ते प्रचलन के बावजूद हिन्दी मजबूती से प्रमुख संचार भाषा के रूप में उभर कर सामने आई है।

हालांकि तेजी से बदलते समाज में लोकभाषाओं के विलुप्त होने का बड़ा खतरा पैदा हो गया है। वहीं दुनिया भर में हिन्दी दूसरी भाषा के तौर पर तेजी से बढ़ी है। भारतीय भाषा संस्थान, वडोदरा के प्रमुख डा. गणेश सेवी कहते हैं कि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार के लोग बड़ी संख्या में दिल्ली आए। जिसकी वजह से दिल्ली में पंजीकृत हिन्दी पहले की तुलना में मजबूत हो गई। चूंकि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार से हिन्दी का उद्भव हुआ है ऐसे में यहां के लोगों की बसावट ने पंजाबी हिन्दी को मजबूत करने का काम किया है।

उन्होंने बताया कि कुछ आम शब्द जो कि कुछ दशकों पहले पंजाबी में बोले जाते थे उनको शुद्ध करने का काम हुआ है। जैसे कि की हाल है, क्या हाल है हो गया, हुकुम करो, हुक्म करो हो गया, बेनती, विनती हो गई, दियो, देना हो गया और साब, साहब बोला जाने लगा। अंग्रेजी और हिन्दी दोनों भाषाओं का प्रभाव समान रूप से समाज में दिखाई दे रहा है। साथ ही दोनों भाषाओं को बोलने वाले लोगों का दूसरे लोगों पर बराबर का असर होता है।

बदलते दौर में मैथिली और भोजपुरी दोनों क्षेत्रीय भाषाएं तेजी से फैल रही है। जबकि सैकड़ों ऐसी भाषाएं है जो कहीं न कहीं से हिन्दी से जुड़ी है उनको बोलने वालों की संख्या तेजी से घट रही है। इन लोकभाषाओं को बोलने वाले अपने क्षेत्र की भाषा से जुड़ रहे हैं या फिर हिन्दी की तरफ रूख कर रहे हैं। सेवी कहते हैं कि अंग्रेजी से हिन्दी को खतरा नहीं है बल्कि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार आदि राज्यों में हिन्दी से जुड़ी अन्य भाषाओं के लोगों की संख्या में कमी होना खतरनाक है।

नया नजरिया हिन्दी का दबदबा कमजोर पड़ रहा है यह कह हमेशा कोसा जाता है। बदलते जमाने के साथ हिन्दी में सकारात्मक बदलाव भी आया है। इसने समय के मुताबिक खुद को बदला है और अधिक संचारी बना है। जरूरत है कामयाब कोशिश करने की और भाषा को समृद्ध और सबका बनाने की।

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