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किरण बेदी ने नहीं इन्होंने काटा था वो 'खास चालान'

1982 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की गाड़ी का चालान काटने का मामला इन दिनों फिर सुर्खियों में है। उस वक्त चर्चा चली थी कि यह चालान तत्कालीन डीसीपी (ट्रैफिक) किरण बेदी ने काटा था और उन्होंने काफी...

किरण बेदी ने नहीं इन्होंने काटा था वो 'खास चालान'
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 01 Feb 2015 11:43 AM
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1982 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की गाड़ी का चालान काटने का मामला इन दिनों फिर सुर्खियों में है। उस वक्त चर्चा चली थी कि यह चालान तत्कालीन डीसीपी (ट्रैफिक) किरण बेदी ने काटा था और उन्होंने काफी सुर्खियां भी बटोरी थीं।

लेकिन अब खुलासा हो रहा है कि चालान उन्होंने नहीं, बल्कि ट्रैफिक सबइंस्पेक्टर निर्मल सिंह घुम्मन ने काटा था। बेदी उस वक्त मौके पर मौजूद भी नहीं थीं। यह भी सामने आ रहा है कि जिस गाड़ी का चालान काटा गया था वह प्रधानमंत्री कार्यालय की थी।

इस विवाद पर निर्मल सिंह पहली बार खुद मीडिया के सामने आए। हिन्दुस्तान से विशेष बातचीत में उन्होंने घटना के तथ्यों को सामने रखा। अनुराग मिश्र और अमित झा के साथ हुई उनकी बातचीत के अंश..

1982 में प्रधानमंत्री कार्यालय की गाड़ी उठाने वाली घटना किस तरह से घटित हुई थी?

अगस्त 1982 में उस समय मैं संसद मार्ग थाने का जोनल ऑफिसर (एसआई ट्रैफिक) था। मिंटो रोड के समीप यार्क होटल के सामने कार एक्सेसरीज की दुकानें थी। दुकानदार गाड़ियां सड़क पर खड़ी कर उनमें एसेसरीज लगाते थे, जिसके चलते आउटर सर्किल में जाम रहता था।

मैं अक्सर वहां पर गाड़ियों का चालान करता था। इसके चलते दुकानदार की एसोसिएशन ने कांग्रेसी नेता रमेश हांडा से मेरी शिकायत की थी। एक दिन मेरे पास हांडा ने संदेश भिजवाया कि आज वहां गाड़ियों का चालान करके दिखाओ।

शाम लगभग पांच बजे मैं गश्त करने निकला तो देखा सड़क पर सफेद रंग की एंबेसडर कार खड़ी है। उसका नंबर डीएचडी 1718 था। मैंने वहां जाकर इस गाड़ी के ड्राइवर के बारे में पूछा। जब जवाब नहीं मिला तो मैंने क्रेन मंगवाकर उस गाड़ी को उठवा लिया।

रमेश हांडा ने मेरे पास आकर कहा कि तुम जानते हो यह किसकी गाड़ी है। मैंने जवाब दिया कि यह गाड़ी प्रधानमंत्री कार्यालय की है और कानून सबके लिए बराबर है। यह गाड़ी मैं जब क्रेन से ले जाने लगा तो आगे रमेश हांडा आ गए। उन्होंने गाड़ी को छोड़ने के लिए कहा। मैंने 100 रुपये का चालान करने के बाद गाड़ी को छोड़ दिया था।

इस पूरे प्रकरण में किरण बेदी का क्या रोल था?

गाड़ी छोड़ने के बाद मैंने मैडम (किरण बेदी) को फोन कर बताया कि मैंने प्रधानमंत्री कार्यालय की गाड़ी का चालान कर दिया है। इस पर उन्होंने मुझे कहा कि तुमने ठीक किया। हालांकि बाद में इस घटना को लेकर खलबली मच गई।

मुझे वरिष्ठ अधिकारियों ने कई बार पेशी के लिए बुलाया। उन्होंने मुझसे पूछा कि तुमने प्रधानमंत्री कार्यालय की गाड़ी का चालान क्यों किया। महज एक सप्ताह के भीतर मेरा तबादला कर मुझे एयरपोर्ट सिक्योरिटी में जाने को कहा गया।

हालांकि लगभग दो माह तक मैडम बेदी ने मुझे रोके रखा। इसके बाद उनका भी तबादला गोवा कर दिया गया। उनके तबादले के बाद मैं एयरपोर्ट सिक्योरिटी में चला गया था।

आपको नहीं लगता कि इसका श्रेय आपको नहीं किरण बेदी को मिला?

मैंने प्रधानमंत्री कार्यालय की गाड़ी का चालान किसी श्रेय के लिए नहीं किया था। सड़क किनारे खड़ी गाड़ी का चालान करना मेरा फर्ज था। मैंने केवल अपना काम किया।

जहां तक किरण बेदी को श्रेय मिलने की बात है तो उस बारे में मैं कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता। मैं वर्ष 1977 में दिल्ली पुलिस में बतौर एसआई भर्ती हुआ था। मुझे अपना काम ईमानदारी के साथ करना था।

प्रधानमंत्री कार्यालय की गाड़ी का चालान करने से पूर्व मैंने हाईकोर्ट के जज का भी चालान काटा था।

कौन हैं निर्मल सिंह घुम्मन

दक्षिणी दिल्ली में रहने वाले निर्मल सिंह घुम्मन दिल्ली पुलिस से सेवानिवृत एसीपी हैं। उन्होंने पंजाब से बीएससी की पढ़ाई पूरी की। वह डॉक्टर बनना चाहते थे, लेकिन किस्मत ने साथ नहीं दिया।

यूपीएससी द्वारा आयोजित परीक्षा देकर वह वर्ष 1977 में दिल्ली पुलिस में एसआई भर्ती हुए थे। उनका नाम सुर्खियों में तब आया जब उन्होंने पीएमओ की एंबेसडर का चालान कर दिया था। 2013 में वह मध्य जिले के एसीपी ऑपरेशन रहते हुए सेवानिवृत हुए।

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