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यमराज को प्रसन्न कर पाएं अकाल मृत्यु पर विजय

दिवाली के एक दिन पहले कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को छोटी दिवाली मनाई जाती है। इसे नरक चौदस, नर्क चतुर्दशी, रूप चतुर्दशी और नर्का पूजा भी कहते हैं। यह पांच पर्वों की सीरीज के मध्य वाला त्योहार है।...

यमराज को प्रसन्न कर पाएं अकाल मृत्यु पर विजय
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 23 Oct 2014 09:48 AM
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दिवाली के एक दिन पहले कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को छोटी दिवाली मनाई जाती है। इसे नरक चौदस, नर्क चतुर्दशी, रूप चतुर्दशी और नर्का पूजा भी कहते हैं। यह पांच पर्वों की सीरीज के मध्य वाला त्योहार है। सबसे पहले धनतेरस, फिर नरक चतुर्दशी और इसके बाद दिवाली। अंतिम दिन गोवर्धन पूजा और भैया दूज। इस दिन अकाल मृत्यु से बचने और स्वास्थ्य की रक्षा के लिए नर्क के देवता यमराज का पूजन किया जाता है। इस पर्व पर विधि-विधान से पूजन करने वाला पापों से मुक्त होकर स्वर्ग प्राप्त करता है।

सुबह करें स्नान

आचार्य गुरु रमन ने बताया कि दक्षिण भारत में सूर्योदय से पहले पूरे शरीर पर तेल लगाकर अपामार्ग (चिचड़ी) की पत्तियां पानी में डालकर स्नान की परंपरा है। वहीं, उत्तर भारत में सरसों का उबटन बनाकर लगाकर स्नान करते हैं। इसके बाद कई जगहों पर दक्षिण मुख करके यमराज का तर्पण करके तीन अंजलि जल अर्पित करने का विधान है। इसके बाद विष्णु या कृष्ण मंदिर में दर्शन करना पुण्यदायक होता है।

शाम की पूजन विधि
शाम को सर्वप्रथम थाल सजाकर उसमें एक चौमुख दीप घर के बीच में यानी बह्म स्थान पर जलाते हैं। साथ में 13 छोटे दीप और जलाएं। सरसों के तेल और सिंदूर मिलाकर इन दीप का पूजन करें। बाद में सभी दीपों को घर में अलग-अलग जगहों पर रख दें। याद रखें कि घर के बाहर वाला दीप बुझने के बाद ही वहां से हटें। इस दीप को फोड़ भी देना चाहिए। इसके बाद घर जाकर गणेश और लक्ष्मी की मूर्ति के आगे धूप दीप जलाएं। वहीं, रात में घर से एक पुराना सामान जैसे झाड़ू घर से बाहर फेंक आना चाहिए।

स्कंद पुराण विधि

स्कंद पुराण में कहा गया है कि शाम को दक्षिण की ओर तिल के तेल का दीपक जलाकर दीपदान करने से अकाल मृत्यु का भय मिट जाता है। घर के मुख्य दरवाजे पर अन्न के ढेर के बीच कच्चा दीपक जलाने से सुख और खुशहाली की प्राप्ति होती है।

हर राज्य में अलग परंपरा
गोवा में नर्क चतुर्दशी पर दानव नर्कासुर के पुतले बनाए जाते हैं। इन पुतलों को सड़कों और गलियों में घुमाया जाता है और फिर बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में जला दिया जाता है। दक्षिण भारत में लोग कुमकुम और तेल से उबटन तैयार करते हैं जिसे स्नान से पहले माथे पर लगाया जाता है। पश्चिम भारत में यह त्यौहार फसल कटाई के मौसम का भी प्रतीक है। इस दिन कुटे और अधपके चावल पोहा से व्यंजन बनाए जाते हैं। यह चावल नई फसल से लिया जाता है। बंगाल में यह दिन काली चौदस के रूप में और मां काली के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है।

कहानी नर्क चतुर्दशी की
आज के दिन ही भगवान श्रीकृष्ण और महारानी सत्यभामा ने असुर नरकासुर का वध करके उसके बंदी गृह से सोलह हजार कन्याओं को मुक्त कराया था। बाद में श्रीकृष्ण ने इन कन्याओं से विवाह कर लिया था। एक अन्य कथा के अनुसार रन्ति देव नामक एक पुण्यात्मा और धर्मात्मा राजा से जीवन में सिर्फ एक पाप हुआ था और वह भी अनजाने में। उन्होंने नर्क चतुर्दशी का व्रत करके ब्राह्मणों को भोजन कराया और इस पाप से मुक्ति होकर स्वर्ग प्राप्त किया था। इस दिन महिलाएं बुरी नजर से बचने के लिए बाल धोकर आखों में काजल लगाती हैं।

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