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जाति और चुनावी लहर ही रही हावी

चंदौली संसदीय सीट का अधिकांश हिस्सा ग्रामीण अंचलों से घिरा है। खेतीबाड़ी ही यहां के मतदाताओं के जीविका का प्रमुख साधन है। पूर्व मुख्यमंत्री पंडित कमलापति त्रिपाठी के बाद किसी भी राजनेता ने सिंचाई...

जाति और चुनावी लहर ही रही हावी
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 03 Apr 2014 08:55 PM
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चंदौली संसदीय सीट का अधिकांश हिस्सा ग्रामीण अंचलों से घिरा है। खेतीबाड़ी ही यहां के मतदाताओं के जीविका का प्रमुख साधन है। पूर्व मुख्यमंत्री पंडित कमलापति त्रिपाठी के बाद किसी भी राजनेता ने सिंचाई संसाधन के लिए कोई ठोस पहल नहीं की। इसके बाद भी चुनाव के समय यह मुद्दा गायब हो जाता है। लोग भले ही आम समस्याओं से परेशान हैं लेकिन जातिवाद और क्षेत्रवाद चुनाव पर हावी है। इसी का परिणाम है कि 17 साल पहले जिला बनने के बाद भी अब तक जिला मुख्यालय तक का निर्माण नहीं हो सका है।

चंदौली संसदीय सीट देश के पहले चुनाव के समय से ही अस्तित्व में है। 1997 से पहले तक चंदौली वाराणसी जिले का हिस्सा था। लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने वाराणसी से पृथक कर चंदौली जनपद का सृजन किया। जिले का नक्सल प्रभावित चकिया विधानसभा क्षेत्र पड़ोसी राबर्ट्सगंज सीट में समाहित है। जबकि चंदौली संसदीय सीट में मुगलसराय, सकलडीहा व सैयदराजा के अलावा वाराणसी की अजगरा व शिवपुर विधानसभाएं शामिल हैं। कृषि प्रधान जनपद होने से पूरे जिले में नहरों का संजाल है। पंडित कमलापति त्रिपाठी की कर्मभूमि रहे जिले को दूसरे पंडितजी की आज भी तलाश है।


जिले में न तो कृषि, न रोजगार, न शिक्षा, न स्वास्थ्य और न ही पर्यटन को बढ़ावा मिल सका। अशिक्षा और गरीबी के कारण अधिकांश युवा या तो महानगरों में पलायन कर रहे हैं, या फिर मनरेगा के भरोसे परिवार का पेट पालने को विवश हैं। जिले के शिक्षित युवाओं को भी रोजगार का कोई अवसर नहीं मिलता है। इससे उन्हें भी बड़े शहरों की ओर कूच करना पड़ता है। राजनीति उठापटक की भेंट चढ़ा जिला मुख्यालय का निर्माण हाल फिलहाल में शुरू हुआ, लेकिन मात्र चहारदीवारी के अलावा कुछ भी नहीं बन सका। शिक्षा के नाम पर दो राजकीय कॉलेज को छोड़कर अधिकांश निजी महाविद्यालय ही हैं।

सैयदराजा महिला डिग्री कॉलेज जमीन की तलाश पूरी न होने से अधर में है। आईटीआई कॉलेज पांच वर्षो से निर्माणाधीन है। जिला अस्पताल में वर्षो की खींचतान के बाद ब्लड बैंक की सुविधा शुरू हो सकी। रेलवे ओवरब्रिज की मांग वर्षो से उठ रही है, लेकिन अब तक पहल नहीं हो सकी। हजारों की बुनकर आबादी भुखमरी की शिकार हो रही है।

यूपी बिहार की सीमा पर बसे चंदौली में चुनाव के समय विकास के मुद्दे दूसरी लहरों में हवा हो जाते हैं। इसी का परिणाम रहा कि शुरुआती दो चुनाव में समाजवाद के पुरोधा डा. राममनोहर लोहिया तक को चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। 1989 के चुनाव में कांग्रेस और जनता पार्टी के बीच घमासान देखने को मिला। जबकि 1991 से 98 तक भाजपा की लहर ने हैट्रिक मारी। वहीं 1999 से 2004 के तक चुनाव में जातिगत वोट की लड़ाई में सपा व बसपा के बीच ही उठापटक देखने को मिलता रहा।

लोकसभा क्षेत्र का लेखा जोखा :
0 जिला सृजन के 17 साल बाद भी नहीं हुआ जिला मुख्यालय का निर्माण।
0 यूपी और बिहार की सीमा को जोड़ना है चंदौली जनपद
0 संसदीय सीट में तीन विधानसभा चंदौली जबकि दो वाराणसी जिले में हैं।
0 पंडित कमलापति त्रिपाठी के बाद सिंचाई संसाधन के लिए नहीं हुई कोई पहल।
0 एक दशक से चंदौली सकलडीहा मोड़ पर रेलवे फ्लाईओवर ब्रिज की मांग अभी भी अधर में है।
0 पर्यटन के दृष्टिकोण से चंदौली काफी महत्वपूर्ण है, लेकिन इसके उत्थान के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया।
0 रोजगार के अवसर नहीं मिलने से युवाओं को महानगरों की ओर करना पड़ता है पलायन।

कब कौन जीता :
1952             त्रिभुवन नारायण सिंह (कांग्रेस)
1957                त्रिभुवन नारायण सिंह (कांग्रेस)
1962             बालकृष्ण सिंह (कांग्रेस)
1967             निहाल सिंह (संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी)
1971             सुधाकर पांडेय (कांग्रेस)
1977                नरसिंह यादव (जनता पार्टी)
1980             निहाल सिंह (जनता पार्टी)
1984                चंद्रा त्रिपाठी (कांग्रेस)
1989                कैलाशनाथ सिंह (जनता दल)
1991                आनंदरत्न मौर्या (भाजपा)
1996             आनंदरत्न मौर्या (भाजपा)
1998             आनंदरत्न मौर्या (भाजपा)
1999                जवाहरलाल जायसवाल (सपा)
2004                कैलाशनाथ सिंह यादव (बसपा)
2009             रामकिशुन यादव (सपा)

कुल मतदाता : 15,99,182
पुरुष :  10,75,242
महिला : 08,62,844

चंदौली संसदीय के अंतर्गत विधानसभा सीट :
मुगलसराय
सकलडीहा
सैयदराजा
शिवपुर
अजगरा

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