फोटो गैलरी

Hindi Newsअवार्ड की घोषणा के बाद घरवालों संग शायराना हुए मुनव्वर

अवार्ड की घोषणा के बाद घरवालों संग शायराना हुए मुनव्वर

लहजा शायरी की मिठास से तर तो आंखें कई जमानों के तजुर्बे से चमकती हुई। सरापा मुकम्मल मोहब्बत का और अदा मासूमियत के पैरहन में लिपटी सिमटी सी कुछ अल्हड़ तो कुछ शिकायती। यह हैं अपने शहर के हर दिल अजीज और...

अवार्ड की घोषणा के बाद घरवालों संग शायराना हुए मुनव्वर
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 19 Dec 2014 09:39 PM
ऐप पर पढ़ें

लहजा शायरी की मिठास से तर तो आंखें कई जमानों के तजुर्बे से चमकती हुई। सरापा मुकम्मल मोहब्बत का और अदा मासूमियत के पैरहन में लिपटी सिमटी सी कुछ अल्हड़ तो कुछ शिकायती। यह हैं अपने शहर के हर दिल अजीज और देश दुनिया में मशहूर मोतबर शायर मुनव्वर राना। मां और मुहाजिरनामे जैसे शायरी के पैकर बनाने वाले इस अजीम शायर को जब शुक्रवार को साहित्य अकादमी अवार्ड मिला तो उनके घर की फिजा में खुशियों की महक का घुलना लाजिमी था। खुद मुनव्वर राना भी इस महक से लहक रहे थे। इसीलिए घर के हर शख्स का तार्रूफ बड़े शायराना ढंग से करा रहे थे।

मसलन इनसे मिलिए . यह मेरी बिटिया है नायला। यों तो मेरे बेटे से इसका निकाह हुआ है इसलिए बहू कहना चाहिए मगर हमारे यहां बहू को बेटी कहने की रवायत है। इसके निकाह में मैं इसकी तरफ से गवाह था ताकि कभी नाइंसाफी न कर पाऊं और यह हैं मेरी अहलिया यानी शरीकेहयात रानिया। करीब 39 साल का साथ है मेरा इनका। मुफलिसी के दिनों में यह मेरे साथ यों रही हैं जैसे किताब में मोर के पंख रहा करते हैं। मुनव्वर साहब का पोता बिलाल और पोती आयजा पूरे घर में दादू जान जिंदाबाद का नारा लगाते हुए घूम रहे थे। मुनव्वर साहब आयजा को गोद में उठाते हुए कहते हैं कि इस घर में हम दोनों की हालत एक जैसी है। हमारी बात तब तक नहीं सुनी जाती जब तक हम रोना न शुरू कर दें।

इन बातों के बीच मोबाइल बजता है और मुनव्वर राना मुबारकबाद लेने लगते हैं। किसी बात के जवाब में कहते हैं कि आप जैसे बड़ों की जूतियां सीधी की हैं शायद उसी मिप्ती की खुशबू हाथ में रह गई जो इतना लिख सका। फिर अपना लिखा एक शेर पढ़ते है कि जितना लिख दिया उसने इज्जत दे दी . जो नहीं लिखा वह लिख देते तो कयामत होती। शायद उधर से किसी ने अवार्ड की रकम के मुताल्लिक कोई सवाल पूछा तो मुनव्वर साहब ने जवाब दिया कि रकम कितनी और कैसे मिलेगी मुङो नहीं पता। उनके फोन रखते ही घर की घंटी बजती है और शायर सैफ बाबर उन्हें मुबारकबाद देने के लिए घर में दाखिल होते हैं। वह भी तमाम किस्म की मिठाइयों और मुनव्वर साहब की सेहत का खयाल रखते हुए डायट कोक के साथ।

मुनव्वर साहब की अहलिया रानिया और बेटी फौजिया भी मेज पर वेज कटलेट, बेसन के लड्ड, काजू की बर्फी और कई तरह के नाश्ते लगा देती हैं। उनकी अहलिया रानिया बताती हैं कि अभी शाम से कई लोगों के फोन आ चुके हैं घर आने के लिए। तमाम रिश्तेदार भी आने वाले हैं। बस उसकी ही तैयारियां चल रही हैं। यह पूछने पर कि खुद उन्हें मुनव्वर साहब की कौन सी गजल सबसे ज्यादा पसंद है? रानिया जवाब देती हैं कि वह गजल इन्होंने छपवाई नहीं है! मुनव्वर साहब बीच में बोलते हैं कि वह गजल मैंने इनके लिए लिखी है। मैं इनके साथ इनके मायके बलरामपुर जा रहा था और रास्ते में गजल नाजिल हुई थी। इस खुशगवार फिजा में कुछ हवाएं माजी के गलियारे से भी आ रही थीं। मसलन रानिया और मुनव्वर दोनों का अपने वालिद को याद करना।

मुनव्वर साहब फरमाते हैं कि जब मैंने शायरी शुरू की तो अब्बा नाराज रहा करते थे। लोग मेरे बाबत पूछते तो कहते कि बात मत करो वह साहब कुछ शायर वायर बन गए हैं। फिर जब थोड़ी शोहरत और कामयाबी मिली तो वह लोगों के दरमियां कहा करते कि हां . मुनव्वर शायर है तो मैं भी तो शायर का बाप हूं। आज वह और मेरे उस्ताद मरहूम शायर वाली आसी होते तो बहुत खुश होते। इस पूरे माहौल में रायबरेली का जिक्र न आता तो किस्सा मुकम्मल न होता। रायबरेली और मुनव्वर साहब के दरमियां भले कुछ तल्खियां रही हों लेकिन वह यह कहने से नहीं कतराते कि आखिरी पनाह रायबरेली में ही लेंगे।

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें