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ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आना

एस.डी. बर्मन की याद में हर दिल अजीज संगीतकार सचिन देव बर्मन कामधुर संगीत आज भी श्रोताओं को भाव विभोर करता है। उनके जाने के बाद भी संगीत प्रेमियों के दिल से एक ही आवाज निकलती है, 'ओ जाने वाले हो...

ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आना
एजेंसीFri, 31 Oct 2014 11:42 AM
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एस.डी. बर्मन की याद में

हर दिल अजीज संगीतकार सचिन देव बर्मन कामधुर संगीत आज भी श्रोताओं को भाव विभोर करता है। उनके जाने के बाद भी संगीत प्रेमियों के दिल से एक ही आवाज निकलती है, 'ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आना।' 
           
सचिन देव बर्मन का जन्म वर्ष 1906 में त्रिपुरा के शाही परिवार में हुआ। उनके पिता जाने-माने सितार वादक और ध्रुपद गायक थे। बचपन के दिनों से ही सचिन देव बर्मन का रुझान संगीत की ओर था और वह अपने पिता से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा लिया करते थे। इसके साथ ही उन्होनें उस्ताद बादल खान और भीष्मदेव चट्टोपाध्याय से भी शास्त्रीय संगीत की तालीम ली।
       
अपने जीवन के शुरुआती दौर में सचिन बर्मन ने रेडियो से प्रसारित पूर्वोतर लोकसंगीत के कार्यक्रमों में काम किया। वर्ष 1930 तक वह लोकगायक के रूप में अपनी पहचान बना चुके थे। बतौर गायक उन्हें वर्ष 1933 में प्रदर्शित फिल्म 'यहूदी' की लड़की में गाने का मौका मिला लेकिन बाद मे उस फिल्म से उनके गाये गीत को हटा दिया गया। उन्होंने 1935 मे प्रदर्शित फिल्म 'सांझेर पिदम' में भी अपना स्वर दिया लेकिन वह पाश्र्वगायक के रूप में कुछ खास पहचान नहीं बना सके।
       
वर्ष 1944 मे संगीतकार बनने का सपना लिये सचिन देव बर्मन मुंबई आ गये जहां सबसे पहले उन्हें 1946 में फिल्म 'एट डेज़' मे बतौर संगीतकार काम करने का मौका मिला लेकिन इस फिल्म के जरिये वह कुछ खास पहचान नहीं बना पाये। इसके बाद 1947 में उनके संगीत से सजी फिल्म 'दो भाई' के पाश्र्वगायिका गीतादत्त के गाये गीत 'मेरा सुंदर सपना बीत गया' की कामयाबी के बाद वह कुछ हद तक बतौर संगीतकार अपनी पहचान बनाने में सफल हो गये।

बर्मन दा की फिल्मजगत के किसी कलाकार या गायक के साथ शायद ही अनबन हुई हो लेकिन 1957 में प्रदर्शित फिल्म 'पेइंग गेस्ट' के गाने 'चांद फिर निकला' के बाद लता मंगेशकर और उन्होंने एक साथ काम करना बंद कर दिया। दोनों ने लगभग पांच वर्ष तक एक दूसरे के साथ काम नहीं किया। बाद में बर्मन दा के पुत्र आर.डी. बर्मन के कहने पर लता मंगेशकर ने बर्मन दा के संगीत निर्देशन में फिल्म 'बंदिनी' के लिये 'मेरा गोरा अंग लइ ले' गाना गाया।
     
संगीत निर्देशन के अलावा बर्मन दा ने कई फिल्मों के लिये गाने भी गाये। इन फिल्मों में 'सुन मेरे बंधु रे सुन मेरे मितवा मेरे साजन है उस पार' और 'अल्लाह मेघ दे छाया दे' जैसे गीत आज भी श्रोताओं को भाव विभोर करते हैं।
      
एस.डी.बर्मन को दो बार फिल्म फेयर के सर्वश्रेष्ठ संगीतकार से नवाजा गया है। एस.डी.बर्मन को सबसे पहले 1954 मे प्रदर्शित फिल्म 'टैक्सी ड्राइवर' के लिये सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का फिल्म फेयर पुरस्कार दिया गया। इसके बाद वर्ष 1973 मे प्रदर्शित फिल्म 'अभिमान' के लिये भी वह सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के फिल्मफेयर पुरस्कार से नवाजे गये।
      
फिल्म मिली के संगीत 'बड़ी सूनी सूनी है' की रिकॉर्डिंग के दौरान एस.डी.बर्मन अचेतन अवस्था में चले गये। हिन्दी सिने जगत को अपने बेमिसाल संगीत से सराबोर करने वाले सचिन दा 31 अक्टूबर 1975 को इस दुनिया को अलविदा कह गये।

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