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ललित बाबू के हत्यारों को मिलनी चाहिए थी फांसी की सजा

पूर्व रेलमंत्री स्व. ललित नारायण मिश्र की 39 वर्ष पूर्व हुई हत्या के मामले में दिल्ली की कड़कड़डूमा न्यायालय से चार दोषियों को उम्र कैद की सजा सुनाये जाने से ललित बाबू के पैतृक गांव बलुआ में लोगों ने...

ललित बाबू के हत्यारों को मिलनी चाहिए थी फांसी की सजा
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 18 Dec 2014 09:15 PM
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पूर्व रेलमंत्री स्व. ललित नारायण मिश्र की 39 वर्ष पूर्व हुई हत्या के मामले में दिल्ली की कड़कड़डूमा न्यायालय से चार दोषियों को उम्र कैद की सजा सुनाये जाने से ललित बाबू के पैतृक गांव बलुआ में लोगों ने मिलीजुली प्रतिक्रिया दी है। आरोपियों को फांसी की सजा की अपोक्षा रख रहे लोगों ने निराशा जाहिर की है। लोगों ने कहा कि अब इस मामले को सुप्रीम कोर्ट ले जाया जाएगा।

गुरुवार को ललित बाबू के पैतृक गांव बलुआ बाजार में 39 साल बाद आ रहे फैसले को लेकर उत्सुकता तो थी लेकिन उनके घर पर पर सन्नाटा पसरा था। हालांकि सर्व ज्ञान निकेतन स्कूल, दिल्ली चौक, पटना चौक, गोलम्बर चौक पर तरह-तरह की चर्चा चल रही थी। लोग अपने घरों में टीवी पर टकटकी लगाये दोषियों को सजा सुनाये जाने की प्रतीक्षा कर रहे थे।

दोपहर 3.10 बजे बजे टीवी पर खबर आयी कि स्व. ललित बाबू के हत्या के मामले में दोषी करार दिये गये चारों व्यक्ति को उम्र कैद की सजा सुनायी गयी है। इस फैसले के बाद राजनीतिक सूझबूझ रखने वाले प्रभात मिश्र का कहना था कि 39 वर्ष बाद न्यायालय द्वारा चार दोषियों को उम्र कैद की सजा का ऐलान बलुआ वासियों को पच नहीं रहा है।

यहां के लोगों को लग रहा था कि सभी दोषियों को फांसी की सजा मिलेगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसका उन्हें खेद है। बलुआ पैक्स अध्यक्ष अजय कुमार मिश्र ने कहा कि 3 जनवरी 1975 को ललित बाबू के हत्या के मामले में चारों दोषियों को उम्र कैद की सजा दिये जाने से वह हतप्रभ हैं। जल्द ही इस हत्याकांड की पुन: जांच के लिए उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया जाए।

समाजसेवी उदय मंडल ने कहा कि लगभग चालीस वर्षो के बाद तारीख पर तारीख सुनते-सुनते आज चार दोषियों को उम्र कैद की सजा से हताशा हुई  है। हम इस हत्याकांड की पुनर्जाच की मांग करते हैं। भाजपा के वरिष्ठ नेता लेखानंद मिश्र रुंआसे लहजे में कहते हैं कि ललित बाबू की हत्या हमारे क्षेत्र के विकास के ताने-बाने की हत्या थी।

इस हत्याकांड में चालीस वर्षो के बाद केवल चार व्यक्ितयों को उम्र कैद का ऐलान संतोष नहीं दे रहा है। पूर्व मुखिया जयकृष्ण गुरमैता कहते हैं कि आशा के विपरीत केवल उम्र कैद की सजा का ऐलान नृशंस हत्याकांड को रोकने के लिए पर्याप्त नहीं कहा जा सकता है। क्योंकि न्यायिक निर्णय का प्रतिकात्मक महत्व होता है। इस फैसले से गुनाहगारों के बीच ऐसा संदेश जाएगा ऐसा प्रतीत नहीं होता है।

सर्व ज्ञान निकेतन के प्राचार्य दीपक कुमार मिश्र ने इस फैसले पर  कहा कि चालीस वर्ष पुराने मामले में केवल उम्र कैद की सजा पर्याप्त नहीं कही जा सकती। लग रहा था कि कम से कम दोषियों को फांसी की सजा मुकर्रर की जाएगी। लेकिन ऐसा नहीं किया गया। बुच्चू कुमार झा कहते हैं कि हालांकि ललित बाबू के हत्या के समय उनका जन्म भी नहीं हुआ था। लेकिन उनके द्वारा कोसी और मिथिला की जो रूपरेखा तैयार की गयी थी वह उनकी हत्या के साथ ही दफन हो गई।

इसलिए उनके हत्यारों को कोसी और मिथिला का हत्यारा कहकर क्षेत्र के लोग उन्हें मौत की सजा दिये जाने की मांग कर रहे थे। रंजीत मिश्र कहते हैं कि ललित बाबू के हत्यारे को केवल उम्रकैद की सजा देना कोसी क्षेत्र के लोगों के साथ नाइंसाफी है। दवा व्यवसायी सुनील पौद्दार ने कहा कि कि उम्रकैद की सजा सुनकर वह निराश हैं। लेकिन इस फैसले को बलुआ के लोग उच्चतम न्यायालय में चुनौती देंगे। मुखिया प्रवीण कुमार कहते हैं कि लंबे इंतजार के बाद केवल उम्र कैद की सजा अटपटी सी लगती है।

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