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पलामू टाइगर रिजर्व में आधी हुई बाघों की संख्या

झारखंड का पलामू टाइगर रिजर्व खतरे में है। तीसरे चरण की टाइगर एसेसमेंट रिपोर्ट में पीटीआर में बाघों की संख्या घट कर तीन बताई गई है, जबकि देश में बाघों की संख्या में इजाफा हुआ है। पीटीआर में पिछले साल...

पलामू टाइगर रिजर्व में आधी हुई बाघों की संख्या
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 21 Jan 2015 07:08 PM
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झारखंड का पलामू टाइगर रिजर्व खतरे में है। तीसरे चरण की टाइगर एसेसमेंट रिपोर्ट में पीटीआर में बाघों की संख्या घट कर तीन बताई गई है, जबकि देश में बाघों की संख्या में इजाफा हुआ है। पीटीआर में पिछले साल एक मादा बाघ ने दो शावकों को जन्म भी दिया, फिर भी संख्या में कमी कई सवाल खड़े करती है।

पलामू में ही विश्व में पहली बार 1932 में बाघों की गणना हुई थी। 2006 में पहले चरण के एसेसमेंट में देश में बाघों की संख्या 1411 थी, जबकि पलामू में गणना ही नहीं हो पाई थी। 2010 में दूसरे चरण की रिपोर्ट में यह संख्या देश स्तर पर बढ़ कर 1706 हो गई थी, परंतु पलामू में यह 10 से 14 अनुमानित की गई थी। 2014 में तीसरे चरण के रिपोर्ट में यह आंकड़ा देश स्तर पर बढ़कर 2226 हो गया, लेकिन पलामू में घट कर तीन हो गया।

पीटीआर के फील्ड डायरेक्टर अरुण सिंह रावत ने कहा कि यह आंकड़ा केवल पलामू टाइगर रिजर्व का है। वह भी केवल स्कैट अर्थात मल के आधार पर गणना से संबंधित है। पीटीआर में काफी डिस्टरबेंस है। बाघ शांतिप्रिय वन्यप्राणी है और 150 किलोमीटर के दायरे में विचरण करता है। डिस्टरबेंस की स्थिति में वह पलायन भी कर सकता है।

गत वर्ष फरवरी-मार्च के बाद पीटीआर में बाघ की मौजूदगी के चिन्ह मिलने बंद हो गए थे, परंतु अक्तूबर-नवंबर से चिन्ह मिलने लगे। एक महीना पहले पलामू क्षेत्र से ही निकटवर्ती कैमूर क्षेत्र में बाघ के चले जाने की रिपोर्ट मिली थी। इसके अलावा पलामू टाइगर रिजर्व का एरिया छत्तीसगढ़ के जंगल से सटा है। इस इलाके से बाघ के पलायन की रिपोर्टिग ही नहीं हो पाती है।

पांच इलाके में पलायन कर सकते हैं पलामू के बाघ
नेशनल टाइगर कंजरवेशन ऑथरिटी के अनुसार पीटीआर के बाघ बांधवगढ़ नेशनल पार्क, बादलगढ़-अचानकमार के रास्ते कान्हा नेशनल पार्क, लावालौंग-हजारीबाग के रास्ते गया इलाके के जंगल, गढ़वा होते हुए कैमूर अभ्यारण्य और गुमला-पालकोट होते हुए सारंडा जंगल की ओर पलायन कर सकते हैं। इसके लिए अनुकूल वातावरण मौजूद है।

महज 414 वर्ग किलोमीटर के कोर एरिया वाले 1130 वर्ग किमी में फैले पीटीआर में बाघ सहित 39 प्रजाति के स्तनधारी, 170 प्रजाति के पक्षी और आठ प्रजाति के सरिसृप की रिपोर्टिंग दर्ज की जा चुकी है। परतु यह क्षेत्र 1990 से वामपंथी उग्रवादियों की गतिविधि से बुरी तरह प्रभावित है।

पीटीआर क्षेत्र में शिकारी और टिंबर माफिया भी काफी सक्रिय हैं। स्थानीय लोगों से मिल कर शिकारी बडे़ वन्यप्राणियों का शिकार कर रहे हैं। वहीं टिंबर माफियाओं पर अंकुश ही नहीं लग पा रहा है। निजी कब्जे से मुक्त कराकर लाए गए हिरण की शिकारियों ने पिछले साल प्रकृति व्याख्या केंद्र में ही हत्या कर दी थी। हालांकि बाद में दो शिकारियों को पीटीआर प्रबंधन ने गिरफ्तार कर लिया था। इसके अलावा भी अक्सर शिकारियों की गिरफ्तारी होती रही है।

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