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लालची बूढ़ा सारस

एक बूढ़ा सारस नदी किनारे रहता था। वह सारस इतना बूढ़ा हो चला था कि भरपेट भोजन जुटा पाना भी उसके लिए मुश्किल हो गया था। मछलियां अगल-बगल से तैरकर निकल जातीं, लेकिन कमजोर होने के कारण वह उन्हें पकड़ नहीं...

लालची बूढ़ा सारस
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 12 Nov 2014 03:50 PM
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एक बूढ़ा सारस नदी किनारे रहता था। वह सारस इतना बूढ़ा हो चला था कि भरपेट भोजन जुटा पाना भी उसके लिए मुश्किल हो गया था। मछलियां अगल-बगल से तैरकर निकल जातीं, लेकिन कमजोर होने के कारण वह उन्हें पकड़ नहीं पाता था।

एक दिन वह बहुत भूखा था, क्योंकि पिछले कुछ दिनों से उसे खाने को कुछ भी नहीं मिला था। उदास होकर वह नदी किनारे बैठ गया और रोने लगा। एक केकड़ा वहां से गुजर रहा था। उसने सारस को रोते देख कारण पूछा। तभी अचानक सारस के दिमाग में विचार आया कि वह केकड़े को बहला-फुसलाकर खा ले तो कितना मजा आए। उसने केकड़े को कुछ देर शांत रहने को कहा ताकि वह अपनी खुशी को छिपा सके। केकड़ा चुपचाप बैठ गया। इस बीच चालाक सारस ने ऐसा नाटक किया मानो सच में वह दुखी हो। वह बोला, ‘शायद तुम नहीं जानते कि इस नदी के जंतुओं पर कैसी समस्या आने वाली है, सबके सब मारे जाएंगे। नदी का पानी खत्म होने वाला है।’

‘क्या?’ सुनकर केकड़ा हैरान रह गया।
सारस बोला, ‘हां। मुझे एक ज्योतिषी ने बताया है कि जल्दी ही यह नदी सूख जाएगी और इसमें रहने वाले सभी प्राणी मारे जाएंगे। ऐसी भविष्यवाणी सुनकर तो मेरा मन कांप उठा है।’

फिर कुछ देर रुककर सारस बोला, ‘यहां से कुछ ही दूरी पर एक झील है। बड़े जलजीव जैसे मगरमच्छ, कछुए व मेंढक आदि तो खुद ही चलकर वहां पहुंच सकते हैं, लेकिन मुझे मछलियों जैसे उन जीवों की चिंता सता रही है, जो चलना जानते ही नहीं। बिना पानी के तो वे मर जाएंगे। यही कारण है कि मैं इतना उदास व दुखी हूं, मैं उनकी मदद करना चाहता हूं।’

सारस की ये बातें नदी में रहने वाले सभी जीव-जंतु चुपचाप सुन रहे थे। लेकिन वे यह सोचकर खुश भी थे कि उनकी मदद को सारस वहां आ चुका है। तभी सारस बोला, ‘यहां से कुछ दूर पानी से लबालब भरी झील है। मैं सभी जीवों को अपनी पीठ पर बैठाकर वहां ले जाऊंगा और उन्हें सुरक्षित उस झील में छोड़ दूंगा।’

सारस के इस प्रस्ताव पर सभी जीव-जंतु खुश हुए और उन्होंने हामी भर दी। उधर सारस भी अपनी योजना को पूरा करने के लिए तैयार था। पहल उसने मछलियों से की और उन्हें पीठ पर लादकर ले चला। लेकिन उन्हें झील तक पहुंचाने के बजाय एक पहाड़ी के पीछे ले गया और मारकर खा लिया। इस तरह से रोज सारस कई मछलियों को खा जाता था। कुछ ही दिनों में उसकी सेहत सुधर गई और वह हट्टा-कट्टा हो गया।

एक दिन केकड़ा सारस से बोला, ‘दोस्त, लगता है तुम मुझे भुला चुके हो। मेरा तो विचार था कि उस झील तक जाने वालों में मेरा नंबर पहला होगा। लेकिन अब मुझे लगता है कि तुम्हें मेरा जरा भी ख्याल नहीं है।’

‘नहीं, मैं तुम्हें भूला नहीं हूं’, सारस बोला। वह भी रोज-रोज मछलियां खाते-खाते ऊब चुका था। वह इसमें बदलाव चाहता था, इसलिए वह केकड़े से बोला, ‘नाराज मत हो दोस्त! आओ मेरी पीठ पर बैठ जाओ।’

यह सुनते ही केकड़ा सवार हो गया सारस की पीठ पर और सारस चल दिया झील की ओर। सारस की गतिविधियां केकड़े को पहले दिन से ही गलत लग रही थीं और आज केकड़े को लग रहा था उसका शक बिल्कुल सही था।

जब चलते हुए काफी देर हो गई तो केकड़े ने पूछा, ‘अभी कितनी दूर है वह झील?’

सारस ने सोचा कि केकड़ा चुप रहने वाला सीधा-सादा जीव है और उसके इरादों को कभी जान नहीं पाएगा।
कुछ देर चलने के बाद सारस गुस्से में बोला, ‘मूर्ख! तुम क्या समझते हो कि मैं तुम्हारा नौकर हूं। यहां आसपास कोई दूसरी झील नहीं है। मेरी यह योजना तो तुम सभी को अपना आहार बनाने के लिए थी। अब तुम भी तैयार हो जाओ मरने के लिए।’

यह सुनकर केकड़े ने अपनी हिम्मत नहीं तोड़ी। उसने तुरंत अपने तीखे पंजे सारस की गरदन पर गढ़ा दिए और उससे नदी की ओर लौट चलने को कहा। उसने यह भी कहा कि अगर उसने ऐसा नही किया तो वह अपने तीखे पंजों से उसकी गरदन तोड़ देगा।

अब नदी की ओर लौट चलने के अलावा सारस के पास और कोई रास्ता न था। नदी किनारे पहुंचते ही केकड़ा उछलकर सारस की पीठ से उतरा और नदी के बचे जीवों को सारस की कारस्तानी से अवगत कराया। यह सुनकर सभी को गुस्सा आ गया और उन्होंने आक्रमण कर सारस को मार डाला।
सीख - लालच बुरी बला है।
(‘पंचतंत्र की प्रेरक कथाएं’ से साभार)

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