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कमाल के बिजनेसमैन ये बच्चे

परीक्षाओं के खत्म होने और छुट्टियों की शुरुआत में अब ज्यादा दिन नहीं बचे हैं। तुम चाहो तो इन छुट्टियों में कंप्यूटर और मोबाइल के अपने शौक को फायदे में बदलने की कुछ योजना बना सकते हो। तुम्हारी तरह कुछ...

कमाल के बिजनेसमैन ये बच्चे
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 18 Mar 2015 04:45 PM
ऐप पर पढ़ें

परीक्षाओं के खत्म होने और छुट्टियों की शुरुआत में अब ज्यादा दिन नहीं बचे हैं। तुम चाहो तो इन छुट्टियों में कंप्यूटर और मोबाइल के अपने शौक को फायदे में बदलने की कुछ योजना बना सकते हो। तुम्हारी तरह कुछ बच्चे हैं, जिन्होंने अपने इसी शौक की बदौलत खूब नाम कमाया है। बता रहे हैं प्रसन्न प्रांजल

अब परीक्षाएं समाप्त होने में कुछ दिन ही बचे हैं। आने वाले दिनों में तुम्हें खूब खाली वक्त मिलेगा। तो क्यों न इसका सदुपयोग करो। तुम्हारी तरह के कुछ बच्चे हैं, जिन्होंने कंप्यूटर पर महारत हासिल कर मिसालें कायम कर दी हैं। आओ तुम्हें बताते हैं ऐसे कुछ बच्चों के बारे में-

ऐप बनाने में मास्टर
जिस उम्र में बच्चे मोबाइल पर गेम्स के ऐप्लीकेशन डाउनलोड करना सीखते हैं, उस उम्र में श्रवण कुमारन और संजय कुमारन ने ऐप डेवलपिंग में मास्टरी हासिल कर ली थी। चेन्नई के रहने वाले ये दोनों भाई महज 14 और 12 साल की उम्र में गेम्स, एजुकेशन और एंटरटेनमेंट से संबंधित दस से ज्यादा ऐप बना चुके हैं और अपने घर में खुद की मोबाइल ऐप डेवलपिंग फर्म बना कर लगातार नए ऐप बनाने में जुटे हुए हैं। ‘गो डाइमेंशन ऐप डेवलपमेंट यूनिट’ बनाने वाले दोनों भाइयों ने दस बरस की उम्र से ही इसकी शुरुआत कर दी थी। उनके सभी ऐप दुनिया की प्रतिष्ठित मोबाइल कंपनी एपल के एपल ऐप स्टोर और गूगल प्ले स्टोर पर हजारों बार डाउनलोड किए जा चुके हैं। दोनों भाइयों को भारत के सबसे कम उम्र के सीईओ होने का गौरव भी मिल चुका है। वे अपने सभी ऐप लोगों को फ्री में मुहैया कराते हैं। ऐप में आने वाले विज्ञापन से उन्हें जो मुनाफा होता है, उसका कुछ हिस्सा वे गरीब बच्चों की पढमई पर भी खर्च कर रहे हैं।

साइबर सिक्योरिटी के उस्ताद
नन्हा रूबेन पॉल केवल नौ साल का है। लेकिन उसका कारनामा तो देखो। पिछले साल इंटरनेट पर होने वाले अपराधों के सिलसिले में उसने नई दिल्ली में हुई एक साइबर सिक्योरिटी कॉन्फ्रेंस में बतौर स्पीकर हिस्सा लिया था। रूबेन की अपनी एक कंपनी है प्रूडेंटगेम्सडॉटकॉम। वह उसका सीईओ भी है। अमेरिका में रहने वाले रूबेन को कंप्यूटर की विभिन्न भाषाओं में उसके पिता मानो पॉल ने ट्रेंड किया है। वह कुंगफू में ब्लैकबेल्ट भी है। रूबेन ऐप भी डिजाइन करता है। रूबेन इस दुनिया को साइबर क्राइम से मुक्त करने की इच्छा रखता है। है न नन्हे सीईओ की बड़ी सोच।

ऐप को बनाया स्टेथोस्कोप 
अमेरिका में पढ़ रहे भारतीय मूल के 16 साल के सुमन मुलुमुडी ने ऐप के साथ खेलत-खेलते ‘स्टेथ आईओ’ नामक एक ऐसे आईफोन केस का निर्माण किया है, जो स्मार्टफोन और आईफोन को स्टेथोस्कोप में बदल देता है। यह आईफोन केस दिल की धड़कनों की एकदम सही गिनती करता है। दरअसल स्टेथ आईओ केस फोन को स्टेथोस्कोप के रूप में बदलता है और उसके बाद यह हार्ट रेट मॉनिटर करने का काम करने लगता है। सुमन के पापा कार्डियोलॉजिस्ट हैं। अपने डॉक्टर पापा को दिल की बीमारी का इलाज करते देखते-देखते सुमन को ऐसी टेक्नोलॉजी बनाने का ख्याल आया, जो दिल से जुड़ी हो और इसी का सफल परिणाम बनकर सामने आयी स्टेथ आईओ टेक्नोलॉजी। सुमन ने इस टेक्नोलॉजी से ज्यादा से ज्यादा निर्माण के लिए स्टेथोसाइंटिफिकडॉटइंक नाम के स्टार्टअप की नींव भी रखी है और वह इस स्टार्टअप का सीईओ और को-फाउंडर है।

मार्था बन गई फूड क्रिटिक
वेस्टर्न स्कॉटलैंड में रहनेवाली मार्था पाएने लिटिल फूड क्रिटिक के रूप में आज दुनियाभर में मशहूर है। तीन साल पहले महज नौ साल की उम्र में स्कूल में लंच में मिलने वाले खाने की खराब क्वालिटी से ऊबकर मार्था ने इसके खिलाफ जंग छेड़ने के लिए ब्लॉग का सहारा लिया।
नेवरसेकेंड्सडॉटब्लॉगस्पॉट के नाम से उसने ब्लॉग बनाया और उस पर फूड क्रिटिक के रूप में पोस्ट डालना शुरू कर दिया। महज डेढ़-दो महीने में ही उसके ब्लॉग पर उसे दो- तीन मिलियन हिट्स मिले और ब्लॉग काफी पॉपुलर हो गया। मार्था तो मशहूर हो ही गई, उसके स्कूल में खाना भी अच्छा मिलने लगा। अपने ब्लॉग की पॉपुलैरिटी को देखते हुए उसने ब्लॉग में ‘मैरी मील’ नाम से एक चैरिटी फर्म भी बनाई है। आप चाहें तो उसमें कुछ दान दे सकते हैं। इसका पैसा अफ्रीका के स्कूलों में स्वादिष्ट और सेहतमंद खाना भेजने के लिए एक सप्लाई चेन शुरू करने में लगाया जाएगा।

नई उम्मीद जगाते शुभम 
कैलिफोर्निया के सांता क्लारा में रहने वाले भारतीय मूल के शुभम बनर्जी ने दृष्टिहीनों की मदद के लिए ‘लेगो रोबोटिक्स ब्रेल प्रिन्टर्स’ का आविष्कार किया है। उन्होंने ‘ब्रेगो लैब’ नामक लैब और कंपनी भी शुरू की है, जिसमें ब्रेल प्रिंटर का निर्माण किया जाएगा। 13 साल के शुभम के मन में यह जानने की इच्छा जागी कि जो देख नहीं सकते, वे कैसे पढ़ते हैं? पिछले साल जब अपने पापा से इस सवाल का उत्तर जानना चाहा, तो पापा ने सिर्फ इतना कहा, ‘गूगल पर सर्च कर लो।’ ऑनलाइन सर्च करते हुए उन्हें दृष्टिहीनों की ब्रेल लिपि के बारे में पता चला और यह भी पता चला कि उस लिपि में चीजें छापने वाला ब्रेल प्रिन्टर कम से कम दो हजार डॉलर का आता है। उसका वजन भी बहुत ज्यादा होता है। तभी उन्होंने फैसला कर लिया कि वह सस्ता और हल्का ब्रेल प्रिंटर बनाकर रहेगा। फिर उन्होंने लेगो रोबोटिक्स के साथ ब्रेल प्रिन्टर किट बनाई। इस किट को अपने स्कूल के साइंस फेयर प्रोजेक्ट में दिखाया और वहां छा गया। ‘ब्रैगो लैब’ की शुरुआत के लिए पापा ने भी उनकी मदद की। उनके बेहतरीन आइडिया और काम को देखने के लिए बड़ी अंतरराष्ट्रीय कंपनी ‘इंटेल’ ने उनकी लैब का निरीक्षण भी किया। शुभम सबसे कम उम्र के एंटरप्रेन्योर हैं, जिन्हें इंटेल ने सहयोग दिया है।

टॉय रिव्यूअर भाई-बहन
साढ़े आठ साल के इवान को वीडियो गेम्स बहुत पसंद रहे हैं। लेकिन यही आदत उसे दुनियाभर में नाम और शोहरत दे देगी, उसके घरवालों को भी पता नहीं था। आज अमेरिका के इवान  का टॉय रिव्यूअर और वीडियोगेम्स रिव्यूअर के रूप में दुनियाभर में जाना-पहचाना नाम है। दो-तीन साल पहले अपने डैड के साथ एंग्री बर्डस स्टॉप मोशन क्ले वीडियो देखते हुए उसे यह इतना अच्छा लगा कि अपने दोस्तों को दिखाने के लिए उसने डैड से बोलकर इसे यूटय़ूब पर अपलोड कर दिया, अपलोड करते ही उसे इतने अधिक लोगों ने देखा और उस पर इतने अधिक कम्प्लीमेंट्स आए कि इवान हर महीने ऐसे वीडियो अपलोड करने लगा। इस काम में उसकी बहन जिलियन ने भी खूब मदद की। बचपन से ही डैड के साथ अपने फेवरेट गेम्स और खिलौनों की खूबियां और कमियां बताना यानी रिव्यू करना उसकी आदतों में शुमार था। फिर इस आदत को वह वीडियो कैमरे में कैद कर यूटय़ूब पर  अपलोड करने लगा। यूटय़ूब पर लगातार मिलने वाली शाबाशी से उत्साहित होकर इवान ने इवानटय़ूबएचडी नाम से यूटय़ूब चैनल लॉन्च किया। दुनियाभर में एक लाख से ज्यादा लोग इस चैनल के सब्सक्राइबर हैं।

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