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सस्ते में ‘ब्रांडेड’ के मजे

इधर ब्रांडेड व डिजाइनर कपड़े व एक्सेसरीज पहनने का चलन काफी बढ़ गया है। पहले इन्हें पहनने की हैसियत सिर्फ बड़े लोगों में ही हुआ करती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब बड़े-बड़े ब्रांडों की कॉपी किए कपड़े व...

सस्ते में ‘ब्रांडेड’ के मजे
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 22 Mar 2011 04:35 PM
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इधर ब्रांडेड व डिजाइनर कपड़े व एक्सेसरीज पहनने का चलन काफी बढ़ गया है। पहले इन्हें पहनने की हैसियत सिर्फ बड़े लोगों में ही हुआ करती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब बड़े-बड़े ब्रांडों की कॉपी किए कपड़े व एक्सेसरीज बाजार में सस्ते दामों पर हैं। इन्हें पहन छोटी हैसियत के लोग भी अब अपने को ऊंचा समझने लगे हैं। क्या बुरा है!

सरोजिनी नगर मार्केट की एक संकरी गली के कोने में बैठा एक दुकानदार जब आपसे कहे कि आप इस टी-शर्ट को देखें, यह एलेन सोली की है और यह मदामे की, एकदम ऑरिजनल है। और मैं आपको स्पेशल डिस्काउंट पर सिर्फ 250 रुपए में दे दूंगा, तो ज्यादा हैरान होने की जरूरत नहीं है। जब उसका सामान आप देखने लगेंगे तो पता चलेगा कि केवल यही ब्रांड नहीं, उसके पास एम्पोरियो अरमानी, डीकेएनवाई, टॉमी हिलफिगर आदि भी हैं। जब आप खरीदारी करने जाते हैं तो कौन-सी चीज सबसे ज्यादा आपका ध्यान खींचती है- फैशन डिजाइनरों की ड्रेसेज या ब्रांडेड लेबल या फिर प्राइज टैग?

जाहिर है, जो लोग लाखों की चीजें नहीं खरीद सकते, उनके लिए कीमत ही मायने रखती है। उन लोगों के लिए बेशक वह माल सस्ता होता है, लेकिन जो चीज पहनने के बाद उन्हें खुशी दे और उन्हें भी लगे कि वे भी ब्रांडेड चीजें पहन सकते हैं तो जाहिर है वे यही कहेंगे कि सस्ता है, पर मस्त है। फिर चाहे वह दूसरे से कहे कि यह डिजाइनर ड्रेस है और मैंने एक लाख की ली है। रोलेक्स की घड़ी या रेबेन के सनग्लास 400-500 रुपए में मिल जाते हैं तो कौन नहीं खरीदना चाहेगा। आखिर बात स्टाइल और शो करने की भी होती है।

मिलती है खुशी
गुची की स्किवेंस ड्रेस 375 रुपए में, गुची का लेडीज छोटा पर्स 100 रुपए में, ब्रांडेड जूते, सैंडिल 699 रुपए में, शैनेल का क्लच बैग 675 रुपए में, नाइकी की टी-शर्ट 150 रुपए में, परादा का बैग 300 में- यह कोई फैशन ट्रैंड के दीवानों का सपना नहीं है, न ही चौंकाने वाली बात है, बल्कि यह दिल्ली के बाजार की सचाई है। ट्रैंडी, ब्रांडेड व डिजाइनर वियर, जिन्हें एक ऐसा तबका पहनता है, जिसके लिए पांच लाख का लहंगा या 32 लाख की साड़ी खरीदना कोई बड़ी बात नहीं है, उन्हें पहनने की चाह आम लोगों को कॉपी किए गए डिजाइनर परिधान या एक्सेसरीज खरीदने पर मजबूर करती है।

इन्हें वे लोग खरीदते हैं, जो महंगे डिजाइनर या ब्रांडेड चीजें नहींखरीद सकते, पर उन्हें पहनने की चाह रखते हैं। वे ऐसी ब्रांडेड चीजों को पहनकर खुशी महसूस करते हैं और उन्हें इस बात से संतुष्टि मिलती है कि उन्होंने वही पहना, जो बड़े-बड़े लोग, सिलेब्रिटीज, सोशलाइट या फिल्मी सितारे आदि पहनते हैं।
 
फैशन के दीवाने जब रैंप पर चलती मॉडल द्वारा पहने डिजाइनर ड्रेसेज देखते हैं या बड़े-बड़े स्टोर या बुटीक में लगी ड्रेस देखते हैं तो उनके अंदर भी उन्हें पहनने की चाह पैदा होती है, पर जेब इसकी अनुमति नहीं देती। पर वे भी तो भीड़ से अलग कुछ मस्त दिखना चाहते हैं, इसलिए बतौर विकल्प नकल को अपनाते हैं और वैसी ही खुशी महसूस करते हैं, जो उन्हें डिजाइनर ड्रेस पहनकर महसूस होती। इसकी एक वजह यह भी है कि हमारा समाज फैशन को एक तरह दिखावा करने की अभिव्यक्ति मानता है और यही वजह है कि नकल कर तैयार की गई डिजाइनर चीजें सस्ते में जब मिलती हैं तो वह खरीदने से पीछे नहीं हटता। 

हर चीज में है नकल
सरोजिनी नगर, चांदनी चौक, वसंत विहार के फुटपाथ और लाजपत नगर जैसी मार्केट में ऐसे कॉपी की हुई सस्ती डिजाइनर चीजें मिल जाएंगी, जिन पर बड़े-बड़े डिजाइनरों के परिधानों के कॉपी किए डिजाइन तो मिल ही जाएंगे, साथ ही ब्रांडेड चीजों के लेबल भी उन पर चिपके मिल जाएंगे। इस तरह की चीजों में सबसे लोकप्रिय चीजें हैं बैग, जूते, चप्पल, परिधान व ज्वैलरी। इसके अतिरिक्त ब्रांडेड चीजों की कॉपी आपको बेल्ट, स्कार्फ, क्लिप आदि में भी मिल जाएंगी।

एक बड़े ब्रांड के सेल्स एक्जिक्यूटिव कहते हैं कि नकल कर बनाए गई चीजें 90 प्रतिशत एक जैसी होती हैं, पर फर्क आसानी से पता चल जाता है। जैसे लग्जरी ब्रांड का कोई एक चेन वाला वॉलेट बनाता है तो नकल में दो चेन लगी होती हैं। जिस तरह से लग्जरी और डिजाइनर कपड़ों, फुटवियर, ज्वैलरी, साड़ियां, सनग्लास और लेदर की चीजों की मांग बढ़ रही है, वैसे-वैसे लोकल मार्केट में इन ब्रांडेड चीजों की नकल की ब्रिकी में भी बढ़ोतरी हुई है।

डिजाइनर अंजु मोदी के अनुसार, ‘हमारे डिजाइंस की जो नकल करते हैं, वे मेन्युफैक्चर्स होते हैं, लेकिन वे इतनी बुरी तरह नकल करते हैं कि अंतर साफ नजर आ जाता है। वे यह काम डिजाइन या एम्ब्रॉयडरी या वर्क मशीन से करते हैं, जबकि हमारा काम सारा हाथ से होता है, क्योंकि उन्हें थोक में ऑर्डर मिलता है, इसलिए कंप्यूटर का इस्तेमाल भी उन्हें करना पड़ता है, जिससे काम में सफाई आ ही नहीं सकती है। कलर कॉम्बिनेशन की नकल बेशक हो जाती है, पर सही कलर नहीं आ पाता है, न ही वर्क में बारीकी आ पाती है। लेकिन थोक में इसे बनाने के कारण वे चूंकि इन्हें सस्ते दामों में बेच पाते हैं, इसलिए ऐसी नकल की मांग बहुत बढ़ गई है।

आखिर हर कोई तो डिजाइनर वियर अफोर्ड नहीं कर सकता है। हमें जहां एक ड्रेस बनाने में एक से दो महीने लग जाते हैं, वे लोग 10 दिनों में थोक में माल तैयार कर लेते हैं। ऐसे लोगों का पूरा नेटवर्क है, जो फैशन के दीवानों की मांगों की पूर्ति करता है। जयपुर, कोलकाता में ऐसे कारीगर भरे हुए हैं, क्योंकि वहां प्रोडक्शन कॉस्ट बहुत कम आती है। इतना ही नहीं, इंटरनेशनल डिजाइनरों की ड्रेसेज की भी नकल होती है, जो चीन में सबसे ज्यादा होती है। यह एक ट्रैंड बन गया है और जिसकी एक बहुत बड़ी मार्केट है।

सस्ता बिकता है
डिजाइनर रेणु डडलानी का मानना है, ‘हम जो कपड़े बनाते हैं, उसमें फैब्रिक से लेकर एम्ब्रॉयडरी, वर्क, एम्बैलिशमेंट सिलाई और डिजाइनिंग सबमें एक क्वालिटी होती है और इसमें बहुत मेहनत लगती है, पर नकल कर तैयार की गई चीजों में हाथ से नहीं, बल्कि मशीन से डिजाइन तैयार किए जाते हैं, इसलिए क्वालिटी नहीं आती। लेकिन उनकी कीमत बहुत कम हो जाती है और सस्ता माल जल्दी बिकता है, क्योंकि उसे खरीदने से पहले दस बार सोचना नहीं पड़ता।

अगर लाखों की चीज 100-200 में मिल जाए तो कौन नहीं खरीदना चाहेगा। हम लोग हर डिजाइनर ड्रेस का केवल एक पीस बनाते हैं, पर ये रिटेलर्स व छोटे-छोटे स्टोर के मालिक हजारों की संख्या में एक डिजाइन को बनाते हैं। ऐसे में सस्ता बेचना मुमकिन है।’

बन गया है ट्रैंड
महंगी चीजें खरीदना हर किसी के वश में नहीं है और इसीलिए इस तरह की सस्ती चीजों की मांग लगातार बढ़ रही है, जिसे पहनकर कहा जाता है कि हम भी डिजाइनर स्टफ पहनते हैं। यही वजह है कि डिजाइनर स्टोरों की तुलना में इस तरह के बाजारों में लोग डिजाइनर चीजों की अधिक मांग करते हैं। आश्चर्य की बात तो यह है कि इस तरह की कॉपी की गई चीजों की मांग केवल वही लोग नहीं करते, जो महंगे ब्रांडेड चीजें खरीदने की हैसियत नहीं रखते हैं, बल्कि उन लोगों में भी इनका क्रेज है, जो इन्हें खरीदने की हैसियत रखते हैं।

मानसी जो साउथ एक्स जैसे पॉश इलाके में रहती हैं, वह हमेशा इसी तरह के परिधान खरीदती हैं। वह कहती हैं, ‘ट्रैंड हर दो महीने में बदल जाता है और मैं नियमित पार्टियों और क्लब में जाती हूं, इसलिए मुझे हमेशा नए कपड़े और एक्सेसरीज की आवश्यकता होती है, लेकिन मैं ऐसे टॉप पर 20,000 रुपए नहीं खर्च सकती हूं, जिसे शायद मैं एक बार पहनूं।

कॉपी किए डिजाइनर कपड़े और बैग्स आसानी से उपलब्ध हैं और वे बिल्कुल असली लगते हैं, इसलिए मैं उन्हें खरीदती हूं और दो-तीन महीने बाद उन्हें फेंक देती हूं।’ डिजाइनर या लग्जरी ब्रांड के साथ इन युवाओं को नकल कर तैयार की गई चीजों को मिक्स एंड मैच करके पहनने से कोई भी परहेज नहीं है। इस तरह लग्जरी ब्रांड ज्यादा अफोर्डेबल हो जाते है।

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