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साहसी सौरभ

गांव से बाईं तरफ एक संकरी पगडंडी जंगल की ओर जाती थी। उस पगडंडी पर पचास कदम आगे जाकर दाहिनी ओर अगर झाडियों को हटाकर आगे बढ़े तो एक बड़ा सा आम का पेड़ था। मौसम आने पर वह सदा बड़े-बड़े पीले रसीले आमों...

साहसी सौरभ
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 10 Dec 2014 10:55 AM
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गांव से बाईं तरफ एक संकरी पगडंडी जंगल की ओर जाती थी। उस पगडंडी पर पचास कदम आगे जाकर दाहिनी ओर अगर झाडियों को हटाकर आगे बढ़े तो एक बड़ा सा आम का पेड़ था। मौसम आने पर वह सदा बड़े-बड़े पीले रसीले आमों से लदा रहता था। यह आम का पेड़ पगडंडी से आने-जाने वालों को साफ दिखाई देता था। पर आमों से लदा होने पर भी उसके समीप जाने का साहस कोई नहीं करता था। गुजरने वाले लोग, जिनमें अधिकतर चरवाहे और जंगल में लकड़ी बीनने जाने वाले बच्चे और औरतें होतीं, उस पेड़ की तरफ देखते भी नहीं थे। जब भी पेड़ के समीप आते तो उनकी चाल तेज हो जाती और सब लगभग भागते हुए रास्ते का वह भाग पार करते थे। ऐसा सब इसलिए करते थे, क्योंकि वह जानते थे कि आम के पेड़ पर रहने वाली चुडै़ल किसी को नहीं छोड़ती। जिसने भी आज तक उधर जाने का साहस किया, वह रास्ते पर बेहोश पड़ा मिला और घर लाने पर उसे बुखार हो जाता था।

गांव का शरारती से शरारती बच्चा भी उधर नहीं जाता था। सुमन और सौरभ शहर में अपने माता-पिता के साथ रहते थे, पर उनके बाबा-दादी उसी गांव में रहते थे। अक्सर बाबा-दादी छुट्टियों में उनके पास रहने शहर आते थे, पर इस बार बच्चों ने तय किया कि वह गांव में छुट्टियां बिताने जायेंगे। बच्चों के मन में बहुत उत्साह था। छुट्टियां आरम्भ होते ही वह गांव पहुंच गये। उन्हें गांव में बहुत मजा आ रहा था। खुला वातावरण, शुद्ध हवा व खान-पान उन्हें बहुत अच्छा लग रहा था। गांव के कुछ बच्चे उनके दोस्त बन गये, जिनके साथ वह दिन भर खेलते थे। एक दिन उनके दोस्त जंगल में लकड़ी बीनने जाने वाले थे, तो सुमन और सौरभ भी उनके साथ हो लिये। रास्ते में जब आम का पेड़ पड़ा तो सारे बच्चे भागने लगे, पर सुमन और सौरभ को पेड़ ने बहुत आकर्षित किया, क्योंकि पेड़ पीले पके आमों से लदा हुआ था। यह देखकर उनके मुंह में पानी आ गया। वे जैसे ही पेड़ की तरफ बढ़े, गांव के बच्चे उनका नाम पुकारकर अपनी ओर बुलाने लगे और उस तरफ न जाने को कहने लगे। सुमन और सौरभ मन मारकर बच्चों की ओर बढ़ गये। आगे जाकर इस सबका जब कारण उन्होंने पूछा, तब उन्हें सारी बात जानकर बहुत आश्चर्य हुआ। शाम को घर आकर उन्होंने दादी को सारी घटना बताई, तब दादी ने भी यही कहा, ‘पेड़ के पास कभी नहीं जाना, वहां की चुडै़ल तुम्हें मार डालेगी’। सुमन और सौरभ को दादी की बताई बात हजम नहीं हुई, क्योंकि कक्षा में उनकी मैडम ने बताया था कि भूत और चुड़ैल कुछ नहीं होते, यह तो सब मन का वहम है। सौरभ ने सुमन से कहा कि वह तो आम तोड़ने अवश्य जायेगा। सुमन ने कहा, ‘दादी ने मना किया है, मत जाओ’। पर जब सौरभ नहीं माना तब सुमन भी साथ चलने को तैयार हो गया।

अगले दिन दोनों सुबह नहा-धोकर बिना किसी को बताए पेड़ की तरफ चल दिये। किसी के भी न आने-जाने के कारण झाडियां काफी बड़ी हो गई थीं। फिर भी किसी तरह झाडियों को हटाकर वे दोनो पेड़ की तरफ बढ़ने लगे। अब वह पेड़ के काफी नजदीक आ गये थे, तभी एक भयावह आकृति पेड़ के पीछे से अचानक प्रकट हो गई। सुमन डर से चिल्लाने लगा, फिर बेहोश होकर गिर गया। सौरभ भी काफी डर गया था, फिर भी उसने हिम्मत नहीं हारी और पास पड़ी एक पेड़ की मजबूत टहनी उठा ली और जोर से बोला, ‘कौन हो तुम, पास आओ, नहीं तो डंडे से तुम्हारा सिर फोड़ दूंगा।’ इतना सुनते ही आकृति कराह कर बोली, ‘मुझे मत मारो। मैं तो पहले से ही बहुत बीमार हूं।’ सौरभ का डर कुछ कम हुआ तो उसने पूछा, ‘तुम कौन हो, सामने आओ।’ तभी एक बुढिया फटे-पुराने, मैले-कुचैले कपड़ों में सामने आई। सौरभ ने देखा, वह काफी बदसूरत थी। ऐसा लगता था कि वह काफी समय से बीमार है। बुढिया रोने लगी और बोली, ‘दो-तीन साल पहले मैं काफी बीमार हो गई, तब सब गांव वालों ने मुङो धक्के मारकर गांव से बाहर निकाल दिया और कहा कि तुम्हें ईश्वर का श्राप लगा है, हम तुम्हे इस गांव में नहीं रख सकते, नहीं तो पूरा गांव श्रापित हो जायेगा।’ बुढिया ने आगे बताया, ‘मेरे पास रहने का कोई ठिकाना नहीं था। तभी से मैं इस पेड़ के पीछे झोपड़ी बनाकर रहने लगी और कोई इधर न आये, इसलिये सबको डराकर भगा देती थी। रात होने पर गांव में जाकर कुछ खाने-पीने का सामान चुरा लाती थी और पेड़ के रसीले आम खाकर भी अपना गुजारा करती थी।’ अब तक सुमन को भी होश आ गया था और उसे भी सारी बात समझ आ गई थी।

उन दोनों को बुढिया अम्मा पर बहुत दया आई। सौरभ ने कहा, ‘अब आपको ऐसे नहीं रहना पडेगा और आपका इलाज भी होगा। आप अवश्य ठीक हो जायेंगी।’ सौरभ ने अपना मोबाइल फोन निकाला और पिता को फोन पर सारी बात समझाई। पिता ने उसको वहीं रुकने के लिये कहा, थोड़ी देर में वह शहर से एम्बुलेंस लेकर आ गये। तब तक गांव में भी बात फैल चुकी थी और वहां काफी भीड़ जमा हो गई थी। बीमार बूढ़ी अम्मा को एम्बुलेंस में बिठाकर शहर के अस्पताल भेज दिया गया। सारा गांव सौरभ और सुमन की तारीफ कर रहा था। उन्होंने पेड़ वाली चुडै़ल की गुत्थी जो सुलझा दी थी।

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