फोटो गैलरी

Hindi Newsकाउंसलिंग: तैयार करे भविष्य का रोडमैप

काउंसलिंग: तैयार करे भविष्य का रोडमैप

करियर की प्लानिंग में काउंसलिंग अहम भूमिका निभाती है। इससे छात्र का लक्ष्य स्पष्ट होता है और उसकी मंजिल आसान हो जाती है। काउंसलिंग क्यों जरूरी है? क्या हैं इसके फायदे? इस बारे में जानकारी दे रही है...

काउंसलिंग: तैयार करे भविष्य का रोडमैप
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 05 May 2015 02:57 PM
ऐप पर पढ़ें

करियर की प्लानिंग में काउंसलिंग अहम भूमिका निभाती है। इससे छात्र का लक्ष्य स्पष्ट होता है और उसकी मंजिल आसान हो जाती है। काउंसलिंग क्यों जरूरी है? क्या हैं इसके फायदे? इस बारे में जानकारी दे रही है हमारे प्रतिनिधि की यह रिपोर्ट

सीबीएसई बोर्ड से इस बार बारहवीं की परीक्षा देने वाली नोएडा की सुषमा तिवारी तनाव की स्थिति में हैं। उनका मन आगे चल कर डॉंक्टर बनने का है, जबकि उनके पापा उन्हें बायोटेक्नोलॉजी का विकल्प दे रहे हैं। गहरे असमंजस में पड़ी सुषमा अब यह नहीं समझ पा रही हैं कि वह अपने मन की सुनें या अपने पापा की इच्छाओं का सम्मान करें। वहीं आजमगढ़ के राहुल ने यूपी बोर्ड से बारहवीं की परीक्षा दी है। उनका मन किसी मेट्रो सिटी से बीबीए, फिर एमबीए करने का है, लेकिन उन्हें कोई गाइड करने वाला नहीं है कि वे किस शहर की ओर रुख करें।

ये दोनों उदाहरण भले ही दो प्रकृति के हों, लेकिन उनकी जड़ एक ही है, क्योंकि अक्सर ऐसा देखा गया है कि छात्र परीक्षा में अव्वल नंबर से पास तो हो जाते हैं, परन्तु उन्हें आगे क्या चुनना है, इसे लेकर उनमें भ्रम की स्थिति बनी रहती है। उनके इसी भ्रम को दूर करती है काउंसलिंग। काउंसलिंग की जरूरत छात्रों को सिर्फ परीक्षा से पहले ही नहीं, बल्कि उसके बाद भी पड़ती है। छात्र चाहे किसी भी स्ट्रीम अथवा कोर्स के हों, यदि उन्हें सही काउंसलिंग दी जाए तो विषयों के चयन, कॉलेज या विश्वविद्यालय के चयन, एडमिशन प्रक्रिया, सिलेबस आदि के बारे में उन्हें पर्याप्त जानकारी हो जाती है। दरअसल डॉंक्टर बनने के बारे में तो छात्र को पता होता है, लेकिन उस डॉंक्टरी में भी कई शाखाएं या संबंधित क्षेत्र हैं, इसकी जानकारी शायद छात्रों को नहीं होती।

समय की मांग है काउंसलिंग
तेजी से सामने आती संभावनाओं के बीच छात्र अपने लिए विकल्प चुनने में खुद को असहज समझने लगते हैं। उन्हें यह डर सालता है कि कोर्स या कॉलेज चुनने के लिए उठाया गया उनका कदम आगे चल कर गलत न साबित हो जाए। कुछ हद तक उनकी परेशानी जायज भी है, क्योंकि अमूमन 17-18 साल की उम्र तक बच्चे इतने परिपक्व नहीं होते कि वे यह तय कर सकें कि उनके लिए कौन-सा प्लेटफॉर्म उपयुक्त होगा। पेरेन्ट्स यदि सक्रिय हैं तो उनकी परेशानी का इलाज निकल आता है, अन्यथा वह भंवर जाल में उलझते चले जाते हैं। यह दिक्कत न आए, इसके लिए यह जरूरी हो जाता है कि छात्र बोर्ड की परीक्षाएं खत्म होते ही निश्चिंत न हो जाएं, बल्कि जो भी खाली समय मिलता है, उसमें अपने लिए सही कोर्स, कोचिंग सेंटर अथवा कॉलेज का चयन करें। अपने इस काम को वे काउंसलर्स, टीचर्स, इंटरनेट एवं पत्र-पत्रिकाओं के जरिए आसान बना सकते हैं।

छात्रों की होती है परख
काउंसलिंग को लेकर छात्रों के मन में कई तरह का भ्रम होता है। उन्हें लगता है कि इस प्रक्रिया के दौरान उनका टेस्ट लिया जाएगा और उत्तर न बता पाने की स्थिति में उनकी खिंचाई होगी या बेइज्जती होगी, जबकि हकीकत में होता कुछ और है। इसमें सबसे पहले छात्र से उसके मन की बात जानने की कोशिश की जाती है कि उसकी रुचि किस विषय में है, वह आगे क्या करना चाहता है, उसकी सोच किस तरह की है, उसकी विश्लेषणात्मक क्षमता कैसी है और वह कितनी फीस भर पाने में सक्षम है। कई बार बातचीत से काउंसलर किसी निष्कर्ष तक नहीं पहुंच पाते तो वे बच्चे का एप्टिटय़ूड टेस्ट लेते हैं। काउंसलर उसकी बातों और रुचि को गंभीरता से आकलन करते हैं और उसके बाद ही किसी निष्कर्ष तक पहुंचते हैं।

कई रास्ते हैं काउंसलिंग के
पहले छात्रों को काउंसलर्स नहीं मिलते थे और इंटरनेट को लेकर भी उनमें जागरूकता नहीं थी। ऐसे में किसी ने जो भी सुझा दिया, वही अच्छा लगने लगता था। इस वजह से कई बार उनका फैसला उल्टा भी साबित हो जाता था। पर इस समय काउंसलर्स एवं इंटरनेट पर सुझाव देने वालों की भरमार है। पत्र-पत्रिकाओं के जरिए छात्र अपनी जिज्ञासाओं का समाधान कर सकते हैं। कई प्रमुख बोर्ड तो परीक्षा के बाद टेलीकाउंसलिंग अथवा ईमेल के जरिए छात्रों की परेशानियों को दूर करने की कवायद में लग जाते हैं। छात्र इस काउंसलिंग सेवा का फायदा विभिन्न विकल्पों, कोचिंग सेंटरों, प्रमुख संस्थानों, जॉब के अवसरों एवं अन्य कई जानकारियों को जुटाने में उठा सकते हैं।

छात्रों को राहत पहुंचाने के उद्देश्य से सीबीएसई भी हर साल 15 दिन की काउंसलिंग सेशन कराता है। इस बार यह सेशन 1-15 मई का है।
बड़े शहरों में तो काउंसलिंग की सुविधा तत्काल उपलब्ध हो जाती है, लेकिन छोटे शहरों के छात्रों को काउंसलिंग के लिए टेलीफोन, ईमेल अथवा पत्र-पत्रिकाओं का सहारा लेना पड़ता है।

चुनते हैं समुद्र में से मोती
वैसे तो काउंसलिंग को किसी खास कक्षा तक सीमित नहीं रखा जा सकता, लेकिन बारहवीं के बाद इसका विशेष महत्व होता है, क्योंकि इस दहलीज पर छात्र कोर्स-कॉलेज के चयन को लेकर असमंजस की स्थिति में रहते हैं। यदि कॉमर्स में पढ़ाई करने वाला छात्र एमबीए या सीए में से एक करियर चुनने की बात करे तो उस दौरान काउंसलर उसे स्टेप-बाई-स्टेप सही जानकारी देते हुए उसकी दुविधा को दूर सकता है। किसी भी क्षेत्र में संभावनाओं की लम्बी फेहरिस्त होती है। कोई जरूरी नहीं कि छात्रों को उस सब के बारे में पता ही हो। काउंसलर की मदद से वे उन विभिन्न विकल्पों पर विचार कर सकते हैं।

छात्रों के सामने सवाल यह नहीं होता कि अंक कैसे आये हैं या आएंगे। सोचने का विषय यह होता है कि उनके लिए जरूरी क्या है। कम अंकों के बावजूद तमाम रास्ते होते हैं, जिनसे होकर गुजरा जा सकता है। जरूरत उन रास्तों अथवा मंजिलों को सिर्फ पहचानने की होती है, क्योंकि एक बार सही दिशा मिल जाए तो फिर मंजिल कठिन नहीं रह जाती। काउंसलर की मदद से वे अपने भविष्य का रोडमैप तैयार कर सकते हैं।

दोस्तों की पसंद पर न जाएं
छात्रों के बीच प्रतिस्पर्धा का दौर भी खूब चलता है। यदि कोई मित्र बारहवीं में मैथ्स के बाद आगे चल कर अपने लिए मैकेनिकल इंजीनियरिंग में संभावनाएं देखता है तो उसका दूसरा साथी भी उसी नाव पर सवार होना चाहता है, यह जानते हुए भी कि वह सिविल इंजीनियरिंग में बेहतर कर सकता है।

कई बार दोस्तों के बहकावे में आकर भी छात्र अपनी अभिरुचि को खूंटी पर टांग देते हैं। इसके पीछे उनकी भावनात्मक कमजोरी होती है। वे  भावनात्मक रूप से फैसला लेते हैं। आपके दोस्त का मजबूत पक्ष मैकेनिकल हो सकता है, पर आप भी उसमें पारंगत हों, यह जरूरी नहीं। आप उसी को आधार बना कर आगे बढ़ें, जिसमें आपकी पकड़ हो। ऐसा करके आप सफलतापूर्वक अपने मुकाम तक पहुंच सकेंगे।

पेरेन्ट्स को भी लें भरोसे में
परीक्षा के बाद छात्र की जो भी ख्वाहिशें हैं, उनसे पेरेन्ट्स को भली-भांति अवगत होना जरूरी है। अब यह छात्र पर निर्भर करता है कि वह अपने पेरेन्ट्स को भरोसे में ले पाता है या नहीं। आपको ऊंचा मुकाम हासिल करना है, लेकिन पिता के सपनों व अरमानों को रौंद कर नहीं। यदि किसी कोर्स अथवा कॉलेज पर आप और आपके पिता में मतभेद है तो उनके साथ बैठ कर उस पर अपनी सोच व मजबूत बिन्दुओं से उन्हें अवगत कराएं। हो सकता है उन्हें आपकी बात सही लगे और वे आपके फैसले का समर्थन करें। अक्सर पेरेन्ट्स की यह कमजोरी होती है कि जो कुछ वह अपने समय में हासिल नहीं कर पाए होते, वह बच्चे के माध्यम से पाना चाहते हैं। इन्हीं मनोभावों को लेकर वे बच्चे पर अपनी पसंद थोपते हैं। आप उनका भरोसा बनाए रखते हुए उन्हें इस मनोस्थिति से बाहर ला सकते हैं।

अंतिम फैसला छात्र का ही
काउंसलर छात्रों के दिमाग को फिल्टर करते हुए उनके अंदर चल रहे भटकाव को दूर करने का काम करते हैं। इससे छात्रों का लक्ष्य स्पष्ट होता है और वे गलत करियर चुनने से बच जाते हैं। कई बार काउंसलर्स आपके चुने गए क्षेत्र की दर्जनों संभावनाओं के बीच में से आपकी पसंद की कोई एक स्ट्रीम सामने ला देते हैं, लेकिन अंतिम फैसला आपको ही करना चाहिए।

जाहिर है यह फैसला आपकी जिंदगी का एक अहम फैसला होता है, इसलिए इसमें कोई जल्दबाजी या हड़बड़ाहट न दिखाएं। शांत दिमाग से फैसला लें और उसके लिए प्रतिबद्धता भी दर्शाएं।

एक्सपर्ट कमेंट
परखते हैं छात्र की क्षमता
जब भी छात्र अपने लिए बेहतर करियर चुनने पर सलाह मांगते हैं तो बतौर काउंसलर सबसे पहले मैं उनकी क्षमता को परखता हूं, क्योंकि यह जानना जरूरी है कि छात्र ने जिस क्षेत्र को चुना है, वास्तव में वह उसके फॉर्मेट में फिट बैठ पा भी रहा है कि नहीं। कहीं उसका फैसला किसी और द्वारा प्रेरित अथवा थोपा गया तो नहीं है। इस दौरान आम तौर पर हम यह पाते हैं कि अधिकांश बच्चे किसी के बताए या किसी और के फैसले पर कदम बढ़ाए हुए होते हैं।
- प्रो. आर.के. गुप्ता, करियर काउंसलर

काउंसलिंग से पहले रुचि जानें
कई बार छात्र अपने लिए सुनहरे सपने तो देखते हैं, लेकिन उन्हें पूरा करने की क्षमता और कोशिश उस स्तर की नहीं होती, लिहाजा उन्हें निराशा हाथ लगती है। इसलिए छात्रों को यही सलाह दी जाती है कि सबसे पहले वे अपनी रुचि तलाशें। इसके बाद अपनी क्षमता परखते हुए काउंसलिंग में जाएं। इस मामले में बिना कोई जल्दबाजी दिखाए कई जगह अपनी जिज्ञासा का समाधान करें।
पूजा यादव सचदेवा, काउंसलिंग साइकोलॉजिस्ट

माता-पिता दोनों की काउंसलिंग जरूरी
सही तौर पर देखा जाए तो काउंसलिंग की जरूरत छात्र और उसके माता-पिता दोनों को होती है, क्योंकि हमारे पास जो भी केस आते हैं, उनमें माता-पिता की शिकायत होती है कि बच्चे हमारी बात नहीं मानते, जबकि बच्चे को पेरेन्ट्स से शिकायत होती है कि वे अपनी पसंद उन पर थोपते हैं। इससे दोनों के बीच में कटुता घर कर जाती है।
-जितिन चावला, करियर काउंसलर

सिलेबस व कंटेंट पहले देख लें
काउंसलिंग हर लिहाज से छात्रों को लाभ पहुंचाती है। कई बार छात्र कोर्स के नाम और उससे जुड़े अवसरों से तो वाकिफ होते हैं, लेकिन कोर्स का स्ट्रक्चर क्या है, उसके बारे में उन्हें पता नहीं होता। यह आगे चल कर परेशानी का सबब बन सकता है। जिस कोर्स के बारे में छात्र ने अपनी सहमति दी है, बेहतर होगा कि वह उससे जुड़े सिलेबस और उसके कंटेंट को पहले ही देख ले। इसके बाद उसे कुछ और करने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
कविता अरोड़ा, सीबीएसई काउंसलर

कितना आता है खर्च
करियर काउंसलर गीतांजलि कुमार का कहना है कि काउंसलिंग की फीस उसके स्वरूप पर निर्भर करती है। यदि छात्र फोन अथवा इंटरनेट के जरिए काउंसलिंग करा रहा है तो उसका खर्चा इंटरनेट या फोन के खर्च तक ही सीमित होता है, लेकिन यदि छात्र काउंसलर के पास जाकर काउंसलिंग कराना चाहता है तो उसे करीब 1000-2000 रुपए तक भुगतान करना पड़ सकता है। इसमें एक प्रक्रिया टेस्टिंग की भी है। इसमें छात्रों का टेस्ट लेकर उन्हें बारीकी से परखा जाता है। ऐसे में उन्हें 1500-5000 रुपए तक भुगतान करना पड़ सकता है। विभिन्न समाचार पत्र-पत्रिकाओं में काउंसलिंग से जुड़े कॉलम आते हैं, चाहें तो वहां पत्र या ईमेल भेज कर अपनी दुविधा को कम खर्च में समाप्त कर सकते हैं। कई ऐसी वेबसाइट्स भी हैं, जहां आप ऑनलाइन पेमेंट करके चैट के जरिए काउंसलिंग करा सकते हैं।

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें