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मुन्नार, बैक वॉटर्स और अरब सागर यानी केरल की सैर

सर्दी में भी हरियाली भरे हिल स्टेशन पर घूमने की तमन्ना रखते हैं तो केरल के मुन्नार से बेहतर भला क्या हो सकता है। यहां के चाय बागान, बैक वॉटर्स और अरब सागर की मनमोहक खूबसूरती आपको यादगार अनुभव दे...

मुन्नार, बैक वॉटर्स और अरब सागर यानी केरल की सैर
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 21 Nov 2014 10:46 AM
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सर्दी में भी हरियाली भरे हिल स्टेशन पर घूमने की तमन्ना रखते हैं तो केरल के मुन्नार से बेहतर भला क्या हो सकता है। यहां के चाय बागान, बैक वॉटर्स और अरब सागर की मनमोहक खूबसूरती आपको यादगार अनुभव दे जाएगी, बता रही हैं सुमिता

केरल को क्यों माना जाता है ‘ईश्वर की अपनी धरती, उसका अपना स्थान, उसकी अपनी जगह’, यह वहां जाने, रहने और कुछ अरसे के लिए समय को भूल जाने के बाद ही समझा जा सकता है। चाय बागान के विस्तार, बैक वॉटर्स, खामोश घने जंगल और समुद्र का भीगता हुआ शोर, अगर ईश्वर को वाकई किसी ठिकाने की जरूरत है तो वह इस जगह को छोड़ कर कहीं और रह ही कैसे सकते हैं?

मुन्नार
हम अपने सफर पर दरअसल मुन्नार के लिए निकले थे, मगर कोच्चि से मुन्नार तक की सड़क यात्रा के बीच ही स्थिति उस खोए हुए मुसाफिर की-सी हो गई थी, जो फिर कभी वापस नहीं लौटना चाहता हो। मुन्नार यानी पश्चिमी घाट पर चाय के बागों के बीच केरल का एक छोटा-सा हिल स्टेशन। समुद्र तल से 1,600 मीटर की ऊंचाई पर बसा एक हिल स्टेशन।

एक समय यह दक्षिण भारत में बसे ब्रिटिश वासियों के लिए गर्मियों की राहत था और अब केरल और देश-विदेश के सैलानियों के लिए एक खुली और ताजी सांस की तरह है, जो तन ही नहीं, मन के भीतर भी गहराई तक चली जाती है। इसे ‘नेशनल ज्योग्राफिक ट्रैवलर’ ने दुनिया के पहले 10 महत्वपूर्ण पर्यटक स्थलों में से एक माना है।

मुन्नार में ही 2695 मीटर की वह पहाड़ी चोटी भी है, जो दक्षिण भारत की सबसे ऊंची पहाड़ी चोटी मानी जाती है। यहां आकर कहीं जाने और बहुत कुछ देखने की कोशिश न करें, तब भी आप खुद-ब-खुद एक दूसरी दुनिया में रहने लगते हैं। 97 वर्ग किलोमीटर में बसे इरावीकुलम नेशनल पार्क में हम यूं ही जा पहुंचे थे। उस दिन हमने कहीं न जाने का विचार किया था। बेहद खूबसूरत पार्क था वह। धुंध के बीच नीचे चाय के बाग और उनके बीच से गुजरती कोई सड़क कभी दिख जाती थी तो कभी छुप जाती थी।

मुन्नार के आसपास
मत्तुपेटी
मुन्नार से 13 किलोमीटर दूर मत्तुपेटी है। यहां डैम और लेक के किनारे पैदल चहलकदमी सकते हैं। दूर तक जाने के लिए कुछ देर हम एक बोट पर भी रहे। चाय के शौकीन हों या न हों, टी म्यूजियम अपने आप में एक अनुभव है। वही रोज की एक प्याली चाय। चाय की पत्तियों की बाग से लेकर अपने कप तक की महीनों की यात्रा यहां कुछ देर में ही समझ आ जाती है। इतनी महकती हुई ताजी चाय पहली बार पी रहे हैं, ऐसा लगा। इसके अलावा चाय बागानों का इतिहास भी नल्लथन्नी टी एस्टेट के इस म्यूजियम की इमारत, इसके कमरों और इसकी दीवारों पर नजर आता है।

कुमरकोम
केरल से बैक वॉटर्स देखे बिना नहीं लौटा जा सकता। मुन्नार से कुमरकोम तक का सफर हमने तमाम उन जंगलों के बीच से किया जहां मसालों की महक बसी थी। काली मिर्च से लेकर दालचीनी तक का नाम लें, ये मसाले वही हैं, जिन्होंने तमाम विदेशियों को मालाबार के इन तटों की ओर आकर्षित किया और हमारा इतिहास बदल दिया।

अलप्पी
कुमरकोम से अल्लपुझा या अलप्पी के लिए हमने सड़क की जगह बैकवॉटर्स को चुना। बैकवॉटर्स यानी समुद्र की लहरों के साथ आया वह पानी जो झील के रूप में बदल गया। वेम्बनाड़ लेक में मोटरबोट से तकरीबन दो घंटे की इस यात्रा का रोमांच हमेशा के लिए हमारे साथ रह जाने वाला था। अरब सागर के किनारे-किनारे बनी इसी लेक में केरल की प्रसिद्घ बोट रेस का आयोजन भी हर साल होता है। दूर दिखाई देते चर्च, पानी के बीच लगे साइन बोर्ड, लेक के बीच उभरा जमीन का कोई हरा-भरा टुकड़ा, उस पर नारियल के पेड़ों के नीचे एक झोंपड़ी और पानी बंधी हवा में हिलती छोटी-सी नाव। ‘अलप्पी को पूर्व का वेनिस’ ऐसे ही नहीं कहा जाता।

हमारा सामान सड़क के रास्ते लाकर लेक के बीच बने उस होटल में पहले ही पहुंचाया जा चुका था, जहां हम अगले कुछ दिन रहने जा रहे थे। यूं हाउसबोट, जिसे मलयालम में यहां केतुवेल्लम कहा जाता है, में भी ठहरने की व्यवस्था रहती है, मगर कई दिन तक बोट में ही रहने का इरादा व्यक्तिगत रूप से हम लोगों का नहीं बन पाया।
 
अलप्पी बैकवॉटर्स के लिए प्रसिद्घ है, मगर यहां के छोटे से समुद्रतट पर आप अरब सागर के विस्तार कभी नहीं भूलेंगे। बीच पर ही बनी किसी कॉफी शॉप में देर तक बैठें, वहीं बेशक दक्षिण भारतीय खाना खाएं, सोने के जगमगाते गहनों के बाजारों से गुजरें और जेटी पर इंतजार करती बोट से होते हुए अपने रात के ठिकाने पर लौट आएं। रात को पानी के बीच बसी दुनिया की जलती-बुझती रोशनियां होती हैं, कोई देर से घर लौटती नाव या होता है सन्नाटा। सैलानियों की बोट से कभी-कभी उठता संगीत किसी दूसरी दुनिया से आता लगता है।

लौटने का दिन एक बार फिर आ पहुंचा था। वही दिन, जो अकसर हम नहीं चाहते। मगर आगे का आकर्षण और उत्सुकता भी कम नहीं थी। इस बार हम समुद्र के ज्यादा करीब जा रहे थे।

कोवलम
अलप्पी से कोवलम का सफर केरल की बस्तियों और शहरों के बीच का सफर था। नारियल के झुरमुटों में बसे खूबसूरत घर। यूं बाजारों में उन्हीं ब्रैंड की होर्डिंग्स, जो आज देश और दुनिया के किसी भी कोने में नजर आते हैं। हम प्रसिद्घ कोवलम तट से आगे चौवारा तट पर ठहरे थे। समुद्र तट पर लोग यहां कम थे और लहरें ज्यादा पास लगती थीं। डूबता सूरज और लहरों का उठता-जाता शोर। बाकी की शाम बिताने हम कोवलम तट पर चले आए। यहां लोग थे, दुकानें थीं और था समुद्र का बेहद खूबसूरत तट। एक जीवंत शाम। हर तट पर समुद्र अलग चेहरे के साथ होता है।

फिर भी बहुत पहचाना-सा। बचपन की भूगोल की किताबों से निकल कर मालाबार तट सामने आ खडम हुआ था। तटों पर उतरते वे मसालों के सौदागर, उनके जहाज, अजनबी परिवेश, उनकी दुनिया और हमारी दुनिया बदलती चली गई।

सारी रात लहरें आ-आ कर लौटती रही थीं। नींद उनकी तरह हमारे लिए भी गैर जरूरी-सी हो गई थी। सुबह सूरज ने आकर उन्हें और हमें जागते हुए ही पाया था। रात की धुंधली लहरें अब धूप में चमक रही थीं, मछुआरे समुद्र में उतर पड़े थे, समुद्र के ऊपर बहती हवा कुछ ज्यादा ताजी थी और हमें लौटना था। वापसी तिरुअनंतपुरम से थी, जहां कुछ घंटे बिताने के बाद घर की ओर चल पड़े थे। बेशक फिर आने के लिए।

कैसे पहुंचें
निकटतम रेलवे स्टेशन:
आलुवा: 108 किलोमीटर और अंगमाली: 109 किलोमीटर
निकटतम एयरपोर्ट: कोच्चि, जहां से मुन्नार 108 किलोमीटर दूर है।

बनाएं योजना
कम-से-कम 10 दिन की योजना बना कर केरल जाएं।
मुन्नार में हलके गर्म कपड़े रात के लिए रख लें। ज्यादा नहीं, बस एक काफी है।
पहले सोच कर जाएं कि जितना समय आपके पास है, उसमें क्या-क्या देखना है, क्योंकि यहां देखने को बहुत कुछ है।
ठहरने के लिए बुकिंग पहले कराएं तो बेहतर।
जरूरत महसूस करें तो www.keralatourism.org की मदद लें। वहां से आपको तमाम जानकारी मिल जाएगी।

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