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सेहत की ये अनदेखी अच्छी नहीं

छोटे-छोटे लक्षणों को अनदेखा करने की आदत कई बार हमें गंभीर बीमारी का शिकार बना देती है। गर्भाशय के साथ भी ऐसा ही है। इससे जुड़ी बीमारियों के लक्षण यूं तो नजर नहीं आते, पर हर चार में तीन महिला को...

सेहत की ये अनदेखी अच्छी नहीं
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 12 Jun 2014 02:02 PM
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छोटे-छोटे लक्षणों को अनदेखा करने की आदत कई बार हमें गंभीर बीमारी का शिकार बना देती है। गर्भाशय के साथ भी ऐसा ही है। इससे जुड़ी बीमारियों के लक्षण यूं तो नजर नहीं आते, पर हर चार में तीन महिला को गर्भाशय से जुड़ी कोई-न-कोई परेशानी होती है। क्या है गर्भाशय से जुड़ी आम बीमारियां और कैसे गर्भाशय को रखें सेहतमंद, बता रही हैं शमीम खान

गर्भाशय महिलाओं के प्रजनन तंत्र का एक महत्वपूर्ण भाग है। आंकड़ों की मानें, तो हर चार में से तीन महिला गर्भाशय की किसी न किसी समस्या से ग्रस्त होती हैं। लेकिन अधिकांश महिलाओं को पता ही नहीं चलता कि उनके गर्भाशय में कोई समस्या है, क्योंकि केवल 10 प्रतिशत महिलाओं में ही इसकी असामान्यता के लक्षण दिखाई देते हैं। ये लक्षण अनियमित पीरियड्स से लेकर बांझपन तक हो सकते हैं। इन छोटे-छोटे लक्षणों को गंभीरता से लेना चाहिए, क्योंकि यह किसी गंभीर बीमारी के संकेत भी हो सकते हैं। गर्भाशय से संबंधित किसी समस्या का पता लगाने के लिए अल्ट्रासाउंड सबसे बेहतर उपाय है, इससे कोई संक्रमण भी नहीं होता है।

गर्भाशय का कैंसर  
गर्भाशय का कैंसर गर्भाशय से संबंधित सबसे गंभीर समस्या है। प्रथम स्तर पर तो इसके कोई लक्षण दिखाई नहीं देते हैं, लेकिन धीरे-धीरे ये लक्षण गंभीर होते जाते हैं। इसमें गर्भाशय की सामान्य कोशिकाएं आसामान्य रूप से विकसित होकर टय़ूमर बना लेती हैं। अल्ट्रासाउंड और बायोप्सी के द्वारा गर्भाशय के कैंसर का पता लगाया जाता है। अगर नियमित रूप से स्क्रीनिंग और टेस्ट करवाया जाए तो इस खतरे से बचा जा सकता है। शुरुआती स्तर पर गर्भाशय कैंसर का कोई लक्षण नहीं दिखाई देता है। जब कैंसर अधिक विकसित होता है तो पीरियड्स के दौरान असामान्य ब्लीडिंग, युरीन पास करते वक्त या शारीरिक संबंध बनाते वक्त दर्द या ब्लीडिंग और मेनोपॉज के बाद भी ब्लीडिंग जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।

कई लोगों के साथ शारीरिक संबंध, स्मोकिंग, गर्भ निरोधक गोलियों का सेवन, कम उम्र में शारीरिक संबंध बनाना, मोटापा, बांझपन, 12 वर्ष की आयु से पहले पीरियड्स शुरू होना और 55 के बाद मेनोपॉज होना, गर्भाशय कैंसर का पारिवारिक इतिहास और हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी इस बीमारी के प्रमुख कारण हैं।

क्या है उपचार     
गर्भाशय के कैंसर का उपचार उसके स्टेज और ट्य़ूमर के आकार पर निर्भर करता है। रेडिएशन थेरेपी और हिस्टरेक्टमी इसके सबसे प्रचलित उपचार हैं। प्रथम स्तर के कैंसर के लिए इसका उपयोग किया जाता है। हालांकि रेडिएशन थेरेपी दर्द रहित होती है, पर इसके साइड इफेक्ट हो सकते हैं। इसके कारण दर्द, उल्टी, चक्कर आना और डायरिया या यूरिनरी समस्याएं हो सकती हैं। हिस्टरेक्टमी में पूरा गर्भाशय निकाल दिया जाता है। हिस्टरेक्टमी कराने वाली महिला कभी मां नहीं बन सकती, क्योंकि इसमें पूरा गर्भाशय निकाल दिया जाता है।

गर्भाशय का ट्य़ूमर है फाइब्रॉएड्स
फाइब्रॉएड्स गर्भाशय की मांसपेशीय परत में होने वाला एक कैंसर रहित ट्य़ूमर है। फाइब्रॉएड्स का आकार मटर के दाने से लेकर तरबूज के बराबर हो सकता है। कभी-कभी इन टय़ूमर में कैंसरग्रस्त कोशिकाएं भी विकसित हो जाती हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि 77 प्रतिशत महिलाएं फाइब्रॉएड्स से पीडित होती हैं, जिनमें से 70 प्रतिशत में इसका कोई लक्षण नजर नहीं आता है। यह समस्या 18 से 50 आयु वर्ग की महिलाओं को होता है, जिसमें से 30 से ज्यादा उम्र की महिलाओं को यह समस्या सबसे ज्यादा होती है।

वैसे तो फाइब्रॉएड्स के स्पष्ट कारणों का पता नहीं है, लेकिन विशेषज्ञों की राय है कि किसी महिला के रिप्रोडक्डिव वर्षों में उसके शरीर में एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रेन का उच्च स्तर फाइब्रॉएड्स के बनने के लिए रिस्क फैक्टर है। इसके अलावा अनुवांशिक कारक भी फाइब्रॉएड्स के खतरे को बढ़ा देते हैं। ये अपने आप बनते हैं। ऐसा कुछ नहीं है कि किसी विशेष चीज को खाने या नहीं खाने या एक्सरसाइज से इसे रोका जा सकता है।

नजरअंदाज न करें इन लक्षणों को
अधिकतर महिलाओं में फाइब्रॉएड्स के कोई लक्षण दिखाई नहीं देते हैं, इसलिए उन्हें पता ही नहीं चलता कि उन्हें फाइब्रॉएड्स है। कई महिलाओं में फाइब्रॉएड्स की मौजूदगी एनीमिया, कमर और पैरों में दर्द, कब्ज और पेट के निचले हिस्से मे दर्द, बार-बार पेशाब आना, सेक्स के दौरान दर्द, गर्भधारण करने में समस्या और बार-बार गर्भपात जैसे लक्षणों से पता चलती है।

गर्भाशय में सूजन
गर्भाशय का आकार बढ़ने के कई कारण हो सकते हैं, जिसका समय रहते उपचार जरूरी है। गार्भाशय के आसामान्य आकार के दो सबसे प्रमुख कारण हैं, युटेराइन फाइब्रॉइड और एडेनोमियोसिस। एडेनोमियोसिस में गर्भाशय मोटा हो जाता है और यह तब होता है, जब वह उत्तक जो सामान्य तौर पर गर्भाशय की सबसे भीतरी परत बनाते हैं, वह उसकी बाहरी दीवार में चले जाते हैं और वहां विकसित होकर एक मोटी परत बना लेते हैं, जिसे एडेनोमायोमा कहते हैं।

हालांकि एडेनोमियोसिस के कारणों का पता नहीं है। वैसे यह समस्या तीस वर्ष से अधिक उम्र की उन महिलाओं में देखी जाती है जो मां बन चुकी होती हैं। अगर डिलेवरी सिजेरियन हुई हो तो इसकी आशंका और बढ़ जाती है। गर्भाशय का आकार बढ़ने के अन्य कारण पेल्विक कंजेशन सिंड्रोम, गर्भ निरोधक गोलियों का प्रयोग और गर्भाशय कैंसर है। गर्भाशय की सूजन में इसका आकार बढ़ने के अलावा पीरियड्स के दौरान ज्यादा ब्लीडिंग, दर्द, शारीरिक संबंध बनाने पर दर्द, पेट के निचले भाग में दर्द और पेट भारी लगना आदि लक्षण भी दिखाई देते हैं।

क्या है उपचार
अधिकतर महिलाओं में गर्भाशय के सूजन की समस्या मेनोपॉज के बाद होती है। इसमें किसी तरह के उपचार की आवश्यकता नहीं पड़ती है क्योंकि इसके कारण सामान्य जीवन किसी भी तरह से प्रभावित नहीं होता। कई महिलाओं को लक्षणों को गंभीर होने से रोकने के लिए दवाइयां भी दी जाती हैं। मेडिकेशन के बाद भी अगर स्थिति नियंत्रित नहीं होती है तो सर्जरी के द्वारा गर्भाशय निकाल दिया जाता है।

क्या है उपचार     
अगर कोई लक्षण न नजर आए और फाइब्रॉएड्स के कारण रोजमर्रा का जीवन प्रभावित न हो तो किसी उपचार की आवश्यकता नहीं है। अगर किसी महिला को पीरियड्स के दौरान ज्यादा ब्लीडिंग हो, लेकिन उसकी जीवनशैली प्रभावित न हो, तब भी इसके उपचार की आवश्यकता नहीं है। लेकिन गंभीर लक्षण दिखाई देने पर दवाइयों से इसे ठीक करने का प्रयास किया जाता है, जब दवाइयां भी असर नहीं दिखाती, तब सर्जरी कराने की सलाह दी जाती है।

गर्भाशय रहेगा हमेशा स्वस्थ
अगर आपके साथ-साथ आपके गर्भाशय की सेहत अच्छी है तो इससे जुड़ी बीमारियों की आशंका आपको काफी कम हो जाएगी। सेहतमंद गर्भाशय के लिए जरूरी है, सभी पोषक तत्वों से भरपूर डाइट और नियमित व्यायाम। शारीरिक रूप से सक्रिय न रहने, एक्सरसाइज न करने से गर्भाशय और दूसरे प्रजनन अंगों में रक्त का उचित प्रवाह नहीं होता है। शारीरिक सक्रियता की कमी के कारण गर्भाशय की मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं। इसलिये रोजाना 30 मिनट तक व्यायाम करें या पैदल चलें। योग भी गर्भाशय की मांसपेशियों को लचीला और शक्ितशाली बनाए रखने में कारगर है। इसके अलावा पौष्टिक और संतुलित भोजन लें। तनाव न पालें। नियमित रूप से गाइनेकोलॉजिस्ट के पास जाएं और स्क्रीनिंग कराती रहें, ताकि बीमारी के गंभीर होने से पहले ही उसका उपचार किया जा सके।
(स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉं. गुंजन, डॉं. नुपुर गुप्ता और डॉं. अभिलाषा पाठक से बातचीत पर आधारित)

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