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आया रंग-रंगीला रिपब्लिक डे

उत्साह, रोमांच और गर्व का राष्ट्रीय त्योहार। जी हां, हम बात कर रहे हैं 26 जनवरी यानी कि गणतंत्र दिवस की। यूं तो गणतंत्र दिवस सबके लिए खास है, पर दिल्ली में इसका रंग ज्यादा निराला हो जाता है। बता रहे...

आया रंग-रंगीला रिपब्लिक डे
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 21 Jan 2015 02:51 PM
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उत्साह, रोमांच और गर्व का राष्ट्रीय त्योहार। जी हां, हम बात कर रहे हैं 26 जनवरी यानी कि गणतंत्र दिवस की। यूं तो गणतंत्र दिवस सबके लिए खास है, पर दिल्ली में इसका रंग ज्यादा निराला हो जाता है। बता रहे हैं अनिल जायसवाल

हर साल 26 जनवरी का दिन दिल्ली क्या, पूरे भारत के लोगों के लिए किसी मेले से कम नहीं होता। लोगों का रेला उस स्थान की ओर पैदल कूच करता है, जहां मनाया जा रहा होता है गणतंत्र दिवस। दिल्ली में तो यह और भी खास हो जाता है, क्योंकि भारतीय गणतंत्र को चलाने वाली सरकार का मुख्यालय दिल्ली में ही है, इसलिए राजधानी दिल्ली में बड़े भव्य स्तर पर गणतंत्र दिवस समारोह का आयोजन किया जाता है। दिल्ली के विजय चौक से राजपथ होते हुए इंडिया गेट तक सड़क के दोनों ओर बड़े-बूढ़े, युवा, बच्चे सभी सूर्योदय के पहले से ही ठिठुरन के बीच अपनी सीट पर आकर बैठने लगते हैं। जिन्हें सीट नहीं मिलती, वे खड़े होकर यह आयोजन देखते हैं। करीब तीन घंटे के इस समारोह के बहाने दुनिया भारत के सैन्य पराक्रम और भविष्य की तैयारियों की एक झलक देखती है। प्रधानमंत्री इंडिया गेट के अमर जवान ज्योति पर पहुंचकर देश के लिए बलिदान हुए भारतीय सैनिकों को श्रद्धांजलि देते हैं।

पर सिर्फ सेना ही क्यों! इस परेड में दिल्ली के स्कूलों के बच्चे भी परेड करते हैं और सर्वश्रेष्ठ मार्चपास्ट करने वाले स्कूलों को पुरस्कार भी मिलता है। भारत के अधिकांश राज्य और केंद्र शासित प्रदेश अपना विजन झांकियों के द्वारा पूरे देश के सामने पेश करते हैं और अंत में भारतीय वायुसेना के हवाई लड़ाकू विमानों से करतब दिखलाते हैं तो लोग दिल थामे रह जाते हैं।

गणतंत्र की शुरुआत
भारत 1947 में जब आजाद हुआ, तो ‘इंडिया इंडिपेंडेंस एक्ट 1947’ के द्वारा भारत का शासन चला। भारतीय संविधान बनाने का काम 28 अगस्त 1947 को डॉं. भीमराव अंबेडकर की देखरेख में शुरू हुआ। 26 नवंबर 1949 को संविधान को पास कर दिया गया, पर यह लागू हुआ 26 जनवरी 1950 को। इस दिन को इसलिए भी चुना गया क्योंकि देश की गुलामी के दौरान 26 जनवरी 1930 को पूर्ण स्वराज का नारा दिया गया था।

पहला जश्न
भारत के गणतंत्र होने का पहला जश्न 26 जनवरी 1950 को मनाया गया। उन दिनों आज के राष्ट्रपति भवन को गवर्नमेंट हाउस कहा जाता था। इस भवन के दरबार हॉल में 26 जनवरी 1950 की सुबह दस बजे भारत को गणतंत्र घोषित किया गया और डॉंक्टर राजेंद्र प्रसाद को भारत के पहले राष्ट्रपति की शपथ दिलाई गई। इसके बाद 31 तोपों का सलामी से लोगों को उस घटना की खबर पहुंचाई गई थी। भारत के प्रथम राष्ट्रपति के साथ सभी लोग एक जुलूस के रूप में इर्विन स्टेडियम (आज के मेजर ध्यानचंद स्टेडियम) पहुंचे और वहां भारत का पहला गणतंत्र दिवस मनाया गया। करीब 15 हजार से ज्यादा लोगों ने इस समारोह में हिस्सा लिया था। इस पहले गणतंत्र दिवस में विदेशी मेहमान के रूप में इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो ने हिस्सा लिया था। पहले चार साल इसका आयोजन नेशनल स्टेडियम के अलावा किंग्सवे, लालकिला और रामलीला ग्राउंड पर हुआ। 1955 से इसे राजपथ पर आयोजित किया जा रहा है। इस साल अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में आ रहे हैं।

दिल्ली से बाहर हर राज्य और केंद्रशासित प्रदेश अपने स्तर पर गणतंत्र दिवस का आयोजन करते हैं। पिछले साल मुंबई के मेरिन ड्राइव  पर दिल्ली की तरह गणतंत्र दिवस समारोह का आयोजन किया गया। गणतंत्र दिवस समारोह 26 को आरंभ होता है और 29 जनवरी को बीटिंग रिट्रीट के साथ समापन होता है। 29 तारीख की शाम को विजय चौक पर इस समारोह का आयोजन होता है। इसके मुख्य अतिथि भारत के राष्ट्रपति होते हैं। उनके सामने सेना के तीनों अंग-थल सेना, वायु सेना व नौसेना के बैंड अपने संगीत से लोगों का मन मोह लेते हैं। इन चार दिनों तक विजय चौक के आसपास की सभी इमारतों पर लाइटिंग की जाती है और दूर-दूर से लोग रात को इसे देखने आते हैं।

राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार
26 जनवरी को बच्चों को झांकियों के अलावा जिस क्षण का सबसे ज्यादा इंतजार रहता है, वह है वीरता पुरस्कार प्राप्त बच्चों को देखने का। हर साल कुछ चुने हुए उन बच्चों को भी परेड में शामिल किया जाता है, जिन्होंने अद्भुत बहादुरी दिखाई है। इस पुरस्कार के शुरू होने की कहानी भी दिलचस्प है। 2 अक्तूबर 1957 को दिल्ली के रामलीला मैदान में एक समारोह के दौरान टेंट में आग लग गई थी। उस समारोह में भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भी शामिल थे। एक 14 साल के स्काउट हरीशचंद्र ने बहादुरी दिखाकर अपने चाकू से टेंट को चीरकर हजारों लोगों को बाहर निकलने का रास्ता दिया था और उनकी जान बचाई थी। इस घटना को देखने के बाद नेहरू जी के सुझाव पर बच्चों के लिए इस पुरस्कार की शुरुआत की गई और पहला सम्मान हरीशचंद्र को मिला।

पुरस्कार में बच्चों को एक मेडल, सर्टिफिकेट और नकद राशि दी जाती है। इन बच्चों को स्कॉलरशिप भी दी जाती है, ताकि उनकी पढा़ई ठीक से हो सके और वे एक बेहतर नागरिक बनें।

बग्घी की जगह बुलेटप्रूफ कारों ने ली
एक समय था जब गणतंत्र दिवस परेड में भारत के राष्ट्रपति अपने विदेशी मेहमान के साथ छह घोड़ों द्वारा खींची जाने वाली बग्घी में बैठकर समारोह स्थल तक पहुंचते थे। उनका सुरक्षा दस्ता भी घोड़े पर सवार होता था। परंतु 1984 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सुरक्षा कारणों से बग्घी की जगह बुलेटप्रूफ कारों ने ले ली। हालांकि पिछले साल बीटिंग रिट्रीट में राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने इस बग्घी का प्रयोग कर लोगों को खुश कर दिया था।

इस बार के 66वें
गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य आकर्षण
पहली बार दिल्ली की रिपब्लिक डे परेड में भारतीय सेना की महिलाएं भी मार्चपास्ट करेंगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा महिलाओं को आगे लाने की मुहिम के तहत इस बार यह निर्णय लिया गया है।

इसी तरह पहली बार दिल्ली के राजपथ पर दुनिया के सबसे तेज ‘कोबरा कमांडो’ की टीम लोगों के सामने होगी। इस टीम के सदस्य बिना किसी मदद के जंगलों में 11 दिनों तक लड़ाई जारी रख सकते हैं। भारत के जंगलों और नक्सली इलाकों में लड़ाकों से लोहा लेने के लिए इस दल का गठन किया गया है।

लोगों का सम्मान
26 जनवरी का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है कि देशसेवा और देश का नाम ऊंचा करने वाले लोगों के लिए पद्म पुरस्कारों के साथ-साथ सैनिकों और पुलिस का भी सम्मान किया जाता है।

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