अनियंत्रित मूत्राशय की समस्या, इलाज है आसान
आप बाजार घूम रहे हैं या सिनेमा देख रहे हैं और मूत्र का रिसाव हो जाए तो आपका मूड खराब हो जाता होगा। अगर आप इस समस्या से पीडित हैं तो परेशान न हों। इस समस्या को बोलचाल की भाषा में मूत्र पर अनियंत्रण की...
आप बाजार घूम रहे हैं या सिनेमा देख रहे हैं और मूत्र का रिसाव हो जाए तो आपका मूड खराब हो जाता होगा। अगर आप इस समस्या से पीडित हैं तो परेशान न हों। इस समस्या को बोलचाल की भाषा में मूत्र पर अनियंत्रण की समस्या कहा जाता है, जिसका इलाज अब आसान हो गया है। बता रही हैं विनीता झा
क्या आपके साथ ऐसा हुआ है कि फिल्म देखते समय बीच-बीच में कई बार टॉयलेट जाने की जरूरत पड़ी हो। कभी ऐसा भी हुआ होगा कि बाजार गए खरीदारी करने, लेकिन टॉयलेट ढूंढ़ने में समय लगाना पड़ा हो। कभी-कभी तो छींकने मात्र से भी यह समस्या हो जाती है और आपको शर्मिदा होना पड़ता है। इस समस्या से पीडित लोग पैड तक इस्तेमाल करने लगते हैं। दरअसल ये ओवर एक्टिव ब्लेडर यानी यूरीनरी इन्कॉन्टीनेंस (यूआई) समस्या है, जिसे आम बोलचाल की भाषा में मूत्र पर अनियंत्रण की समस्या कहते हैं। अकसर लोग इस बीमारी को पहचान ही नहीं पाते, जिससे समय पर डॉक्टर से परामर्श नहीं ले पाते।
ओवर एक्टिव ब्लेडर कोई असामान्य बीमारी नहीं है, बल्कि बुजुर्ग लोगों में यह समस्या होना आम बात है। लोगों को लगता है कि इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है। इस कारण लोग अकसर इस बीमारी की वजह से शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना से गुजरते रहते हैं। लोग इस बीमारी के प्रति अंजान हैं। इसी वजह से वे जान ही नहीं पाते कि उन्हें यूरीनरी इन्कॉन्टीनेंस की समस्या है। यह शारीरिक जटिलता की बजाए मानसिक रूप से प्रताडित करने वाली बीमारी ज्यादा है। यूआई से पीडित लोगों का सामाजिक मेलजोल, बाहर घूमना-फिरना कम हो जाता है, जिससे उनमें डिप्रेशन की समस्या तक आ जाती है।
ओवर एक्टिव ब्लेडर दो तरह के होते हैं
बार-बार मूत्र जाने की जरूरत महसूस होना (तत्कालिक आवृत्ति)
मूत्र को रोक न पाना (मूत्र असंयम)
एक सर्वे के अनुसार लखनऊ की किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में 3000 महिलाओं ने स्त्री रोग विशेषज्ञ ओपीडी से परामर्श लिया। 3000 महिलाओं में से 656 महिलाएं मूत्र असंयम से पीडित थीं। इसका मतलब तकरीबन 21.8 प्रतिशत महिलाओं ने हॉस्पिटल के स्त्री रोग विशेषज्ञ से सलाह ली। 60 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं में भी यह समस्या काफी पाई जाती है।
हालांकि यह बीमारी आम होने के बावजूद बहुत कम रजिस्टर होती है। इसमें खासतौर से महिलाएं शामिल हैं, जो शर्म के कारण इस बीमारी के बारे में नहीं बतातीं। गर्भधारण या मांसपेशियों में परेशानी की वजह से महिलाओं को मूत्र रिसाव की समस्या हो जाती है। कई बार मांसपेशियों की बजाए यह समस्या न्यूरो संबंधित होती है। कई बार दिमाग और सेक्रल तंत्रिकाओं का आपसी तालमेल सही नहीं बैठता और यूआई की समस्या हो जाती है। सेक्रल तंत्रिकाएं मूत्राशय थैली के चारों तरफ फैली तंत्रिकाएं होती हैं, जो मूत्र रिसाव इत्यादि को नियंत्रित करती हैं। अगर समस्या न्यूरो से जुड़ी है, तो आधुनिक तकनीकों से इसका इलाज संभव है।
शुरुआत में बिहेवियर थेरेपी से इलाज किया जाता है, जिसके तहत खान-पान में बदलाव और विभिन्न व्यायामों का उपयोग शामिल होता है। जिन रोगियों को इससे आराम नहीं मिलता, उन्हें दवाएं दी जाती हैं। हालांकि इनका प्रभाव तो पड़ता है, लेकिन कब्ज, धुंधला दिखने और मुंह सूखने जैसे इसके दुष्प्रभाव भी दिख सकते हैं।
आधुनिक तकनीकों में इंटरस्टिम थेरेपी काफी प्रभावी है, जिससे इस समस्या का इलाज किया जा सकता है। इंटरस्टिम को सेक्रल न्यूरो मोडय़ूलेशन भी कहा जाता है, क्योंकि इसमें त्वचा के भीतर एक प्रोग्राम स्टिमुलेटर लगाया जाता है, जो काफी हद तक हृदय संबंधी पेसमेकर जैसा होता है। ये सौम्य इलेक्ट्रिक स्पंदन की मदद से मूत्राशय के ब्लैडर (सेक्रल तंत्रिकाओं) को नियंत्रित करता है। इस थेरेपी में रोगी इसे प्रत्यारोपित करवाने से पहले जांच भी सकता है कि उसके लिए फायदेमंद है या नहीं।
सेक्रल तंत्रिकाएं मूत्राशय थैली और मूत्र से संबंधित मांसपेशियों को नियंत्रित करती हैं। अगर दिमाग और सेक्रल तंत्रिकाओं का आपस में सही संपर्क नहीं होता तो मूत्राशय थैली संबंधी समस्याएं हो जाती हैं। इंटरस्टिम थेरेपी में न्यूरो स्टिमुलेटर की मदद से सेक्रल तंत्रिकाओं को सौम्य इलेकिटक स्पंदन से नियंत्रित किया जाता है। इससे दिमाग और तंत्रिकाओं को आपस में सही संपर्क करने में मदद मिलती है और इस समस्या मे सुधार होता है।
(फोर्टिस मैमोरियल रिसर्च इंस्टीटय़ूट में यूरोलॉजी एंड रेनल ट्रांसप्लान्टेशन के डायरेक्टर डॉं संजय गोगोई से बातचीत पर आधारित)