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आस्था और ऐतिहासिक पवित्रता

मध्य-कर्नाटक में हम्पी एक छोटा सा गाँव है, जो पर्यटन के बोझ में शहर बनने की कोशिश कर रहा है। इस गाँव की स्थायी आबादी 2000 से अधिक नहीं है, लेकिन किसी भी समय यहाँ कम से कम 1000 पर्यटक और तीर्थयात्री...

आस्था और ऐतिहासिक पवित्रता
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 01 Nov 2010 12:28 AM
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मध्य-कर्नाटक में हम्पी एक छोटा सा गाँव है, जो पर्यटन के बोझ में शहर बनने की कोशिश कर रहा है। इस गाँव की स्थायी आबादी 2000 से अधिक नहीं है, लेकिन किसी भी समय यहाँ कम से कम 1000 पर्यटक और तीर्थयात्री अवश्य बने रहते हैं। सर्दियों में, जो पर्यटन और तीर्थयात्रा के लिये सबसे अच्छा समय माना जाता है, यहाँ प्रतिदिन पर्यटकों की संख्या 2000 से ऊपर पहुँच जाती है और लगभग हर घर का एक हिस्सा गेस्टहाउस बन जाता है।

गली के नुक्कड़ पर मैं जिस छोटे से गेस्टहाउस में ठहरा था, वहाँ से ‘विरुपक्ष मंदिर’ का एक सुंदर दृश्य नज़र आता था, लेकिन इस विशाल मंदिर से न ही किसी लाउडस्पीकर की आवाज़ आ रही थी और न ही जोर-जोर से घंटियों की। दरअसल सारे हम्पी में मुझे लाउडस्पीकर की आवाज़ कहीं नहीं मिली, मिली तो हम्पी के बाहर एक राम मंदिर में। उसकी चर्चा बाद में।

मैं जब सुबह उठकर गली से होते हुए बाज़ार की तरफ नाश्ता करने के लिए निकला, तो गली के हर घर के सामने अल्पना बनी हुई थी। बाज़ार विरुपक्ष मंदिर के सामने एक बहुत बड़े प्लाज़ा में फैला हुआ था, जहाँ विजयनगरम साम्राज्य के ज़माने में मंडी लगा करती थी। अब यहाँ लगभग हर दूसरी दुकान पर्यटकों के लिए खानपान की दुकान है, जहाँ कन्नड खाने से लेकर यूरोपीय, लातिन अमेरिकी, चीनी और इस्रायली आदि सब प्रकार के पकवान मिलते हैं। इससे पता लगता है कि हम्पी में कहाँ-कहाँ से पर्यटक आते हैं। इसी प्लाज़ा के अंत में एक जगह पुलिस थाना भी बना हुआ है। इमारत पुरानी, थाना नया।

मैं एक दुकान पर नाश्ता करने के लिये बैठ गया। सड़क से लगी मेज़ पर चार पर्यटक बैठे हुए थे, जिनमें तीन विदेशी और एक भारतीय था। बातचीत के दौरान पता लगा कि वे सब बंगलुरू में मैनेजमेंट कॉलेज में पढ़ रहे हैं। विदेशी लोग मिल्क शेक के साथ टोस्टेड सैंडविच खा रहे थे। भारतीय जवान सैंडविच के साथ कोका-कोला पी रहा था। आधुनिकता के कई रूप और विद्रूप हैं। सुबह के वक्त कोका-कोला और सैंडविच भी उनमें से एक है। 

नाश्ता करने के बाद मैं विरुपक्ष मंदिर की तरफ चल निकला। विरुपक्ष शिव का रूप है। पम्पा और भुवनेश्वरी देवियों के साथ वही यहाँ के इष्टदेव हैं। मैं नास्तिक तो नहीं हूँ, परंतु मुझमें देवी-देवताओं के लिए आस्था की कुछ कमी है। इसके बावजूद मैं बहुत श्रद्धा से मंदिर में गया। उत्तर भारत के मंदिरों के मुकाबले वहाँ न कोई शोर-शराबा था, न गंदगी और न ही पंडे-पुजारी। मंदिर का शिल्प अत्यंत सुंदर था, जो अपने आप मन में आस्था उत्पन्न करता था। उसके पास बहती तुंगभद्र नदी का जल अभी भी निर्मल था।

ऐसा माना जाता है कि तुंगभद्र नदी के किनारे स्थित यह मंदिर सातवीं शताब्दी में स्थापित किया गया था और तभी से यह एक बहुत बड़ा तीर्थस्थल बन गया। जब चौदहवीं शताब्दी के मध्य में यहाँ हरिहर और बुक्का ने विजयनगरम् राज्य की स्थापना की तो उसके बाद कई राजाओं ने इस मंदिर का विस्तार किया।

विजयनगरम् राज्य लगभग दो सौ साल तक यानी सोलहवीं शताब्दी के मध्य तक फला-फूला। जब यह राज्य शिखर पर था तो इसकी सीमाएं कृष्णा नदी के किनारे से शुरू होकर एक तरफ बंगाल की खाड़ी और दूसरी तरफ अरब सागर तक फैली हुई थीं। दरअसल यह एक राज्य नहीं, एक साम्राज्य था। इसी साम्राज्य की राजधानी के अवशेष हम्पी के आसपास लगभग दस किलोमीटर के दायरे में फैले हुये हैं।

मैंने जब हम्पी जाने का फैसला किया था तो कई मित्रों ने कहा कि मैं वहाँ दो दिन से ज़्यादा नहीं बिता पाऊँगा। मैंने अकेले वहाँ छह दिन बिताए फिर भी तृष्णा लगी रही कि यदि दो-एक दिन और होते तो अच्छा होता।

दरअसल हम्पी केवल देखने की जगह नहीं, रहने की जगह है। हम्पी और उसके आसपास के अवशेषों को वर्ल्ड हैरिटेज साइट यानी विश्व सांस्कृतिक धरोहर का दर्जा मिला हुआ है, परंतु जैसा हाल ही में कॉमनवेल्थ खेलों के संदर्भ में हम सब ने महसूस किया, हम किसी भी काम को ज़िम्मेदारी से करने में लगभग असमर्थ हो चुके हैं। हम्पी के अवशेषों की देखभाल भी कुछ उदासीन ढंग से ही हो रही है।

प्राकृतिक दृश्यों के अलावा हम्पी के आसपास देखने के लिए बहुत सारे ऐतिहासिक अवशेष हैं जैसे कृष्ण मंदिर, कदालेकालू गणेश, ससिवेकालू गणेश, वीरभद्र मंदिर, भोजनशाला, कमल महल, जनाना महल, हाथीशाला, जैन मंदिर आदि। मुझे हैरानी इस बात से हुई कि यहाँ रामायण से जुड़ी कई जगह हैं और राम के नाम से कई मंदिर। पुराने ज़माने में इस इलाके का नाम किष्किंधा था। तुंगभद्र नदी के पार एक पहाड़ी पर हनुमान का मंदिर है, जिसे हनुमान का जन्मस्थान माना जाता है। इस हनुमान मंदिर के आसपास ही बाली और सुग्रीव के प्रसंग से जुड़ी हुई कई पहाड़ियाँ हैं।

विजयनगरम् साम्राज्य के अवशेषों में कई राम मंदिर हैं। इन्हीं में से एक ‘हज़ारा रामा’ यानी हज़ार रामों वाला मंदिर है, जो विजयनगरम के राजा देवराया-एक ने पंद्रहवीं शताब्दी के शुरू में खास अपने लिए बनवाया था। इस मंदिर के चारों तरफ पत्थर पर ‘रिलीफ’ तकनीक में रामायण के दृश्य बनाए गए हैं। रामायण के अलावा युद्ध संबंधी दूसरे भी दृश्य हैं, जिनमें कहीं-कहीं घोड़ों के साथ मुसलमान सैनिक भी नज़र आते हैं।

राम का सबसे भव्य मंदिर माल्यवंत पहाड़ी पर स्थित रघुनाथ मंदिर है। इस मंदिर के गर्भगृह में चट्टान से काटकर रामायण का एक दृश्य बनाया गया है, जिसमें राम-सीता बैठे हुए और लक्ष्मण उनके साथ खड़े हुए नज़र आते हैं। जिस चट्टान को काटकर यह दृश्य बना है, वह मंदिर के शिखर से निकलकर अभी भी ऊपर नज़र आती है। मुख्य मंदिर के साथ ही सीता की रसोई है। पूरब और दक्षिण की तरफ मंदिर तक पहुँचने के लिये भव्य द्वार बने हुए हैं।

हम्पी और उसके आसपास के अवशेषों में यह पहला मंदिर था, जहाँ मुझे लाउडस्पीकर की आवाज़ सुनाई दी। गर्भगृह के सामने वाले हिस्से में कुछ पंडित पीले पर्दे-वर्दे लगाकर और राम की तस्वीरें सजाकर पूजा कर रहे थे। पूछने पर एक पंडित ने मुझे बताया कि यह पूजा 24 घंटे चलती है और वह स्वयं बिहार से कुछ ही दिन पहले वहाँ आये हैं। क्या धार्मिक आस्था के साथ-साथ हम एक इमारत की ऐतिहासिक पवित्रता बचाकर नहीं रख सकते?

kbikramsingh@bol.net.in

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