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वृद्धावस्था का दबाव झेलने में महिलाएं ज्यादा कुशल

एक कहावत है कि महिला संवेदना की दृष्टि से पुरुष की तुलना में ज्यादा मजबूत होती है। लेकिन यह कहावत एक सर्वेक्षण से भी सही साबित हुई है। सर्वेक्षण में खुलासा हुआ है कि महिलाएं अपनी आंतरिक शक्ति की वजह...

वृद्धावस्था का दबाव झेलने में महिलाएं ज्यादा कुशल
एजेंसीFri, 17 Sep 2010 03:09 PM
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एक कहावत है कि महिला संवेदना की दृष्टि से पुरुष की तुलना में ज्यादा मजबूत होती है। लेकिन यह कहावत एक सर्वेक्षण से भी सही साबित हुई है। सर्वेक्षण में खुलासा हुआ है कि महिलाएं अपनी आंतरिक शक्ति की वजह से पुरुषों की तुलना में वृद्धावस्था के दबावों को ज्यादा कुशलतापूर्वक झेल जाती हैं।

करीब 46 प्रतिशत वृद्ध महिलाएं धैर्य, परिवार और समाज के साथ बेहतर तालमेल जैसी आंतरिक शक्तियों की वजह से अपने आपको वृद्ध पुरुषों की तुलना में कम अलग थलग पाती हैं। इस तरह की आंतरिक शक्तियों वाले वृद्ध पुरुषों का प्रतिशत महज 31 है।

एक गैर सरकारी संगठन एजवेल फाउंडेशन ने वृद्धों के अलग थलग पड़ने के कारणों और इसकी वजह से उनकी सेहत पर पड़ने वाले प्रभावों के लिए 20 राज्यों में अध्ययन किया और यह निष्कर्ष निकाला।

मनोचिकित्सक संजय चुग के अनुसार महिलाओं में पुरुषों की तुलना में ज्यादा संवेदनशीलता और सहिष्णुता होती हैं। उन्होंने कहा कि न केवल वृद्ध महिलाएं बल्कि सभी उम्र की महिलाएं पुरुषों की तुलना में संवदेना की दृष्टि से ज्यादा मजबूत होती हैं। फाउंडेशन के संस्थापक हिमांशु रथ कहते हैं, दरअसल महिला को समाज में जिस तरह का जीवन जीना होता है वह पुरुष से भिन्न होता है। दैनिक जीवन में मुश्किलें उन्हें पुरुष की तुलना में मजबूत बना देती हैं।

हेल्प एज इंडिया के अध्यक्ष मैथ्यू चेरियन भी इस बात से सहमत हैं कि दैनिक जीवन को चलाने के प्रयास में महिलाएं मजबूत हो जाती हैं। उधर, चुग का कहना है कि महिलाएं पुरुष की तुलना में अवसाद का जल्दी शिकार हो सकती है। उन्होंने कहा कि जब बच्चे घर से दूर रहने लगते हैं तो घर खाली खाली सा लगने लगता है। चूंकि मां को पिता की तुलना में अपने बच्चों से ज्यादा लगाव होता है, इसलिए वह अवसादग्रस्त हो सकती हैं।

सर्वेक्षण के दौरान 71 प्रतिशत वृद्ध लोगों ने कहा कि वह परिवार के वित्तीय मामलों और सामाजिक जिम्मेदारियों में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं, उनके पास मूल रूप से संपत्ति का बड़ा हिस्सा है लेकिन फिर भी घर के युवा उन्हें नजरअंदाज करते हैं।

शहरों में 73.5 प्रतिशत वृद्धों के पास सीमित सामाजिक संवाद है ऐसे में आत्मसम्मान की कमी महसूस करते हुए, उनमें वैयक्तिक संवाद में कमी आ जाती है। करीब 39 प्रतिशत वृद्धों की शिकायत है कि वे परिवार में संवाद नहीं कर पाते हैं।

करीब 86 प्रतिशत वृद्धों का कहना था कि वृद्धावस्था में अलग-थलग पड़ जाना काफी गंभीर होता है। इसकी वजह से उनमें अवसाद घर कर जाता है और वे मानसिक और शारीरिक बीमारियों से घिर जाते हैं। जावेद अली की 65 वर्षीय विधवा शाहदरा में अकेली रहती है जबकि उनके बेटे और बेटी उन्हें छोड़कर अलग रह रहे हैं।

वह कहती हैं कि मैं किसी तरह अपनी दैनिक जरूरतें पूरी कर लेती हूं। हालांकि मुझे कोई बड़ी बीमारी नहीं है लेकिन मैं पारिवारिक समर्थन के अभाव में अवसाद महसूस करती हूं। जब मैं अपने पोते पोतियों के पास जाती हूं तब मैं खुश और संतुष्ट महसूस करती हूं। रथ का कहना है, वृद्धावस्था में अवसाद से लड़ने के लिए जरूर है कि उससे ग्रस्त व्यक्ति और उसका परिवार साथ आएं और सुनहरे दिनों को वापस लाएं।

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