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'अप्रैल फूल' बनाएं, पर शब्दों के बाण न चलाएं

हंसी, ठहाके और मज़ाक तो ज़िंदगी का हिस्सा है और मज़ाक के साथ लोग एक-दूसरे को मूर्ख़ बनाने की भी कोशिश करते हैं। हास्य-व्यंग्य से जुड़े दिग्गजों का कहना है कि ख़ुशनुमा माहौल के लिए तो किसी को मूर्ख़...

'अप्रैल फूल' बनाएं, पर शब्दों के बाण न चलाएं
एजेंसीWed, 31 Mar 2010 01:18 PM
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हंसी, ठहाके और मज़ाक तो ज़िंदगी का हिस्सा है और मज़ाक के साथ लोग एक-दूसरे को मूर्ख़ बनाने की भी कोशिश करते हैं। हास्य-व्यंग्य से जुड़े दिग्गजों का कहना है कि ख़ुशनुमा माहौल के लिए तो किसी को मूर्ख़ बेशक बनाया जा सकता है लेकिन यह ख़्याल रखना भी ज़रूरी है कि आपकी किसी बात से सामने वाले शख़्स का दिल न दुखे।
     
हास्य की दुनिया के मशहूर कवि ओम व्यास के मुताबिक, भारत में लोगों का मिजाज़ बड़ा मस्तमौला है और लोग एक दूसरे के साथ जमकर मज़ाक भी करते हैं। उन्होंने कहा कि तनाव और भागदौड़ भरी ज़िंदगी में दो पल का हंसी-मज़ाक कोई बुराई नहीं है, लेकिन इसका मकसद सही होना चाहिए ताकि किसी के दिल को ठेस नहीं पहुंचे।
     
दुनिया को ज़िंदगी जीने के तरीके सिखाने वाली संस्था 'आर्ट ऑफ लीविंग' से जुड़े मोहन वैश्य कहते हैं कि बेहतर जिंदगी जीने के लिए हंसना और हंसाना दोनो ज़रूरी है। इसके लिए ज़रूरी नहीं कि आप सच्ची बातों का ही सहारा लें।
     
वैश्य कहते हैं, "यदि आपको लगता है कि झूठ बोलकर किसी को मूर्ख़ बनाया जा सकता है और हंसी-मज़ाक का माहौल भी बनाया जा सकता है तो निश्चित तौर पर इसकी मदद लेनी चाहिए।

जानेमाने हास्य कवि सुरेंद्र शर्मा भी मूर्ख दिवस मनाने और लोगों को मूर्ख कहने में कोई बुराई नहीं मानते, लेकिन वह भी यही कहते हैं कि आप अपनी गुदगुदाती हरकतों से माहौल में खुशी लाने के लिए ऐसा करते हैं तो अच्छा है वरना किसी को शब्द बाणों से नहीं भेदना चाहिए।
     
इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन "इप्टा" से जुड़े रंजीत शर्मा ने मज़ाकिया अंदाज़ में कहा कि लोग हर दिन खुद को और दूसरों को मूर्ख बनाते हैं और इसके लिए एक अप्रैल जैसे किसी दिन की ज़रूरत नहीं जब हम किसी को बहकाकर कहें कि अप्रैल फूल बना दिया।
     
शर्मा कहते हैं कि हंसी-ठहाके, मज़ाक, व्यंग्य सरीखे शब्द सुनने में तो ठिठोली वाले लगते हैं पर हैं बहुत संजीदगी से भरे और इन्हें इस्तेमाल करने का मक़सद भी गंभीर होना चाहिए।

भारत सहित पूरी दुनिया में एक अप्रैल को मूर्ख़ दिवस मनाने का चलन है। इसका कोई ख़ास इतिहास तो नहीं है, पर 1582 में फ्रांस से इसकी शुरुआत मानी जाती है। फ्रांस में नए साल का जश्न 25 मार्च से शुरू होकर पहली अप्रैल तक चलता था। एक अप्रैल वहां बड़े धूमधाम और हंसी-ठहाके के साथ मनाया जाता था।
     
बाद में नए कैलैंडर के मुताबिक नया साल एक जनवरी को मनाया जाने लगा और एक अप्रैल को मूर्ख दिवस या अप्रैल फूल डे का नाम दे दिया गया।

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